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यूरोप में ‘छुट्टी’ और चीनी घुट्टी

भारत में ‘राजनीतिक पर्यटन’ के बाद राहुल गांधी चुपचाप छुट्टी मनाने यूरोप जाते हैं। इस बार भी उन्होंने वहां देश को नीचा दिखाया और बीजिंग को झुककर सलाम किया। उन्होंने जो बातें कीं, वे खतरनाक, तथ्यों से परे हैं और चीन की भयानक सचाइयों पर परदा डालती हैं। कौन-सी टूलकिट पढ़ रहे थे राहुल?

by प्रशांत बाजपेई
Mar 15, 2023, 07:56 am IST
in भारत
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने दुनिया के सामने भारत को नीचा दिखाया

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने दुनिया के सामने भारत को नीचा दिखाया

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‘‘भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं और शासन-प्रशासन कुछ नहीं करता। भारत में सरकार ने हर चीज पर एकाधिकार कर लिया है। किसान परेशान हैं। अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं। प्रेस पर पाबन्दी है।

ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में राहुल गांधी भारत की छवि बिगाड़ रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘भारत में महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं और शासन-प्रशासन कुछ नहीं करता। भारत में सरकार ने हर चीज पर एकाधिकार कर लिया है। किसान परेशान हैं। अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं। प्रेस पर पाबन्दी है। मेरे मोबाइल में जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस था (राहुल ने अपना मोबाइल जांच एजेंसियों को नहीं दिया था), विपक्ष को जेल में डाला जा रहा है। अमेरिका में मेरा पासपोर्ट चेक नहीं होता, पर भारत में होता है’’, इत्यादि। फिर उन्होंने चीन की छवि गढ़ी। बोले, ‘‘चीन ने मेरे विचारों को आकार दिया है। अमेरिका व्यक्तिगत स्वतंत्रता की कद्र करता है, चीनी सद्भाव-सामंजस्य को महत्व देते हैं, क्योंकि वे बहुत दर्द से गुजरे हैं। उन्होंने गृहयुद्ध झेला है। वहां सांस्कृतिक क्रांति हुई है। चीन की दमनकारी कम्युनिस्ट तानाशाही को राहुल ने नया नाम दिया- ‘अमेरिका लोकतांत्रिक व्यवस्था से आगे बढ़ा है और चीन सद्भाव से।’ कैम्ब्रिज में राहुल ने क्या बातें कीं? वैसी ही बातें कीं, जो राहुल गांधी की पहचान हैं। वे लगातार विरोधाभासी बातें करते रहे। अधकचरी बातें करते रहे। तथ्यों को तोड़ते-मरोड़ते रहे, लेकिन एजेंडे के साथ।

पीली नदी पर ‘गुलाबी’ हुआ ‘राजकुमार’
राहुल ने बताया कि ‘‘चीन की प्रसिद्ध पीली नदी हिमालय से निकलती है।’’ वास्तव में पीली नदी हिमालय से नहीं, तिब्बत की कुनलून पर्वतमाला से निकलती है। बकौल राहुल, एक चीनी कम्युनिस्ट ने उनसे कहा कि ‘‘पीली नदी में असीमित ऊर्जा है। यदि चीनी सभ्यता खुद को प्रभावी ढंग से संगठित करती है, जो कि चीन ने तटों पर किया है, तो वह इसकी शक्ति का उपयोग कर सकती है।’’ राहुल इस ‘महान वाक्य’ से बहुत प्रभावित हो गए। फिर बोले कि ‘‘पश्चिम में कोई राजनीतिज्ञ ऐसे नहीं सोचता। मैंने इस प्रकार की कोई बात कभी नहीं सुनी।’’

फिर उन्होंने चीन के विशाल बांधों की चर्चा की। उपरोक्त नदी के ‘तर्क’ के आधार पर कहा कि ‘‘आप चीन में जो आधारभूत ढांचा देखते हैं, जैसे कि रेलवे, हवाईअड्डे, बांध, वे चीनी मन में नदी से उभरते हैं। चीन खुद को प्रकृति की शक्ति के रूप में देखता है। वह प्रकृति में गुंथा हुआ है, जबकि अमेरिका ऐसा नहीं देखता। वह खुद को प्रकृति के ऊपर देखता है।’’ राहुल कथित रूप से चीनी कम्युनिस्ट की इस बात से भी बड़े ‘प्रभावित’ हुए कि ‘‘दुनिया में खोज होनी चाहिए पर पेटेंट नहीं होना चाहिए।’’

चीन की उद्योग नीति को समझाते हुए उन्होंने कहा कि चीन ने तय किया कि ‘‘हम पश्चिम की तरह उद्योग खड़े करेंगे, लेकिन उसके अंदर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी होगी और यही चमत्कारी तरकीब (मैजिक ट्रिक) है। इसके कारण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को उनके देश में सूचनाओं पर पूर्ण एकाधिकार मिलता है, जो अमेरिका के पास नहीं है, भारत में नहीं है। इससे चीन को कृत्रिम बुद्धिमता और साइबर युद्ध में बहुत लाभ मिलता है।’’ क्या होता है साइबर युद्ध? दूसरे देश के औद्योगिक, वैज्ञानिक, सैन्य और नागरिक राज चुराना, उसे व्यासायिक क्षति पहुंचाना। यह है चीनी ‘सद्भाव और सामंजस्य’ की चमकती मिसाल। राहुल व्याख्या करते हैं कि उनका ‘‘चीन स्वयं को शांतिकाल की प्रतिस्पर्धी, प्रभावी ताकत के रूप में देखता है’’ और फिर चीन पर अपनी बात को समेटते हुए कहते हैं कि ‘‘भारत और पश्चिम में लोग और मीडिया के स्वार्थी लोग जो कह रहे हैं, उसमें बहुत अंतर है। भारत और यूरोप में असमानताएं हैं, बेरोजगारी है।’’

अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राहुल टुकड़े-टुकड़े गैंग की सदस्य स्वरा भास्कर और हिंदू विरोधी पादरी जॉर्ज पोनैया (लाल घेरे में ) से मिले थे

इस ‘आइडिया’ में विचार कहां है?
अपने पूरे भाषण में चीन की क्रूर तानाशाही का महिमामंडन करने के बाद, उपसंहार में, यूक्रेन समस्या के समाधान की बात करते हुए राहुल दो ‘आइडिया’ सुझाते हैं। पहला, दुनिया में व्यवस्था बने जो तय करे कि क्या समस्याएं हैं और उनका समाधान करे। दूसरा, हम ऐसी दुनिया में नहीं रह सकते, जो लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को पैदा नहीं करती। दूसरे ‘आइडिया’ को समझाते हुए वह कहते हैं कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को परिणाम देना होगा, जो कि बलपूर्वक चलाई जाने वाली संस्था से बिलकुल अलग है, जिसमें सामाजिक-राजनीतिक शक्तियां जुड़ी होती हैं। श्रम और पूंजी के बीच बात होनी चाहिए। फैक्ट्रियों में लोकतंत्र होना चाहिए। इस पूरी बातचीत का सिर-पैर निकालने का काम पाठकों के विवेक पर छोड़ आगे बढ़ते हैं।

वामपंथी पाठशाला का ‘रट्टू छात्र ’
इस तरह, जब उनका भाषण हो गया तो सवालों दौर शुरू हुआ। पूछा गया कि ‘दक्षिणपंथ की समस्या से कैसे निपटा जाए?’ इस पर राहुल उत्तर दिया कि ‘‘समस्या तीन कारणों से है। पहला, कुछ लोगों के हाथ में धन है। दूसरा, मीडिया पर उनका नियंत्रण है और तीसरा, भारत में उत्पादन नहीं हो रहा है। यदि फैक्ट्रियों में उत्पादन हो, तो श्रमिक फैक्ट्रियों में जाएंगे। तब फैक्ट्रियों में श्रमिकों को राजनीतिक रूप से संगठित किया जा सकता है। फिर इस ताकत से दक्षिणपंथ का मुकाबला किया जाएगा।’’ उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना आदि के संबंध में एक अन्य प्रश्न के उत्तर में राहुल ने कहा कि ‘‘नरेंद्र मोदी भारत को तोड़ रहे हैं। यहां सिख हैं, मुस्लिम हैं, ईसाई हैं, अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोग हैं और मोदी कहते हैं कि ये सब दूसरे दर्जे के नागरिक हैं।’’

चीन की उद्योग नीति को समझाते हुए राहुल कहते हैं कि चीन ने तय किया कि ‘‘हम पश्चिम की तरह उद्योग खड़े करेंगे, लेकिन उसके अंदर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी होगी और यही चमत्कारी विधि है। इसके कारण चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को उनके देश में सूचनाओं पर पूर्ण एकाधिकार मिलता है, जो अमेरिका के पास नहीं है, भारत में नहीं है। इससे चीन को कृत्रिम बुद्धिमता और साइबर युद्ध में बहुत लाभ मिलता है।’’

कसौटी पर चीनी ज्ञान
कैम्ब्रिज में राहुल ने जो चीनी ज्ञान बांटा है, उसकी संक्षिप्त मीमांसा आवश्यक है। राहुल ने बताया कि कैसे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी प्रकृति से जुड़कर चीन का ‘विकास’ कर रही है। सच्चाई यह है कि हर साल चीन के शहरों के धुंए से ढके चित्र मीडिया में आते हैं। साथ में खबर होती है कि प्रदूषण के चलते लोगों को सूरज के दर्शन नहीं हो रहे हैं। चीन की 27 प्रतिशत जमीन तेजी से रेगिस्तान में बदल रही है, जिससे 40 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। देश में जहां-तहां प्लास्टिक के पर्वत खड़े हैं। जैव विविधता का नाश हो रहा है। 1970 से आज तक चीन के 50 प्रतिशत जीव विलुप्त हो गए हैं। भू-जल घटता जा रहा है और मिट्टी जहरीली हो गई है। नदियां नष्ट हो रही हैं।

राहुल गद्गद् हैं कि चीनी कम्युनिस्ट पेटेंट के खिलाफ हैं। यह अलग बात है कि चीन हर साल 15 लाख पेटेंट करवाता है। बस, चीन दूसरे देशों के पेटेंट को व्यर्थ समझता है। यही नहीं, चीन द्वारा पेटेंट चुराने के हजारों मामले हैं। राहुल ने कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चाइना के ‘सद्भाव’ की बात की। इस ‘सद्भाव’ के चमकते हुए विज्ञापन हैं माओ और उनके वारिसों द्वारा करोड़ों चीनियों का नरसंहार, लाखों तिब्बतियों का नस्लीय सफाया, बौद्ध मठों का विनाश, बौद्ध भिक्षुओं की हत्या, उइगर मुसलमानों का दमन। चीनी ‘सद्भावना’ की मीनारें हैं ताईवान और हांगकांग का दमन, अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर पर उसकी गिद्ध दृष्टि। चीनी कम्युनिस्टों की तथाकथित ‘हारमनी’ के स्मारक हैं गलवान और डोकलाम में उसकी हरकतें और भारत के जवानों से पिटकर भागते उसके फौजी। दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता शांतिकाल की चीनी नीति का सबूत है। चीनी ‘हारमनी’ का प्रमाण है चीन द्वारा पाकिस्तान को भारत के खिलाफ मजबूत बनाना और दुनिया के छोटे-छोटे देशों को अपने कर्ज जाल में फांसना।

‘बिल्ली काली हो या सफेद’
भारत में ‘राजनीतिक पर्यटन’ के बाद राहुल छुट्टी मनाने यूरोप जाते हैं, चुपचाप। इस बार गए तो लाल सलाम करके सुर्खियां बटोरीं। देश को नीचा दिखाया और बीजिंग को झुककर कोर्निश (बंदगी या मुगलिया अंदाज में झुककर सलाम) किया। राहुल ने प्रसिद्ध चीनी नेता देंग को उद्धृत किया कि ‘बिल्ली काली हो या सफेद इससे क्या मतलब, जब तक वह चूहे पकड़ती है।’ राहुल को भी इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उनकी बात से देश पर क्या असर पड़ेगा? उसकी क्या छवि बनेगी? उनका एजेंडा था यूरोप और अमेरिकी मीडिया में बैठे मोदी और भारत विरोधी तत्वों का ध्यान अपनी ओर खींचना और चीन समर्थक लॉबी से दोस्ती गांठना।

भाषण के शुरुआत में ही वह दांडी यात्रा से अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ यात्रा की तुलना करते हैं। वे गांधी जी द्वारा नमक कानून तोड़ने की बात बताते हैं और चीनी नमक का हक अदा करते जाते हैं। क्या चीन की भूरी-भूरी प्रशंसा राजीव गांधी फाउंडेशन को मिले चीनी धन का परिणाम है? कांग्रेस ने सोनिया गांधी व राहुल गांधी की उपस्थिति में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। गांधी परिवार की स्वामित्व वाली संस्था ने उससे मोटी रकम भी ली। वह कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चाइना, जो चीन की सत्ता पर काबिज है, जो अरुणाचल प्रदेश को चीन का हिस्सा मानती है, कश्मीर को भारत का हिस्स्सा नहीं मानती है। पाकिस्तान को जिसने परमाणु बम दिया व उसे लगातार भारत के खिलाफ हथियारों से सजाने की कोशिश करती रही है। जो भारत में खूनी हमले करने वाले दुर्दांत आतंकियों का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बचाव करती आई है। वह कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ चाइना, जो भारत के नक्सलियों और उत्तर-पूर्व के आतंकी संगठनों को सहायता करती है।

राहुल बेलौस भारत के लोकतंत्र पर कीचड़ उछालते हैं। भारत के हिंदू समाज पर कीचड़ उछालते हैं कि यहां ‘अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं’। वह भारत की लोकतांत्रिक सरकार के प्रधानमंत्री पर सिखों, मुसलमानों और ईसाइयों को दूसरे दर्जे का नागरिक कहने का मनगढ़ंत आरोप लगाते हैं। उनके पूरे भाषण को सुनिए. आपको कई टूलकिट मिलेंगे, सोरोस दिखेंगे और नजर आएगा एक ओएमयू।

Topics: भारत जोड़ो यात्राचीन की उद्योग नीतिराजनीतिक पर्यटनपीली नदी पर ‘गुलाबी’ हुआ ‘राजकुमार’वामपंथी पाठशालाहिंदू विरोधी पादरी जॉर्ज पोनैयाभारत के हिंदू समाज पर कीचड़कांग्रेस ने सोनिया गांधी व राहुल गांधी
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