दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल का एक बयान इन दिनों बहुत चर्चा में है। उन्होंने महिला दिवस के अवसर पर आयोजित एक आयोजन में कहा कि उनके पिता उनका यौन शोषण करते थे। वह उन्हें मारते थे और वह अपने पलंग के नीचे छिप जाती थीं, और महिलाओं को न्याय दिलाने के विषय में सोचा करती थीं।
जैसे ही उन्होंने यह वक्तव्य दिया, वैसे ही इस पर तमाम प्रकार के विमर्श आरम्भ हो गए क्योंकि इससे एक या दो दिन पहले राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य खुशबू सुन्दर उर्फ़ निकहत खान ने भी ऐसा ही कहा था कि उनके अब्बा ने उनका यौन शोषण किया था। उन्होंने कहा कि जब वह 8 वर्ष की थीं, तब से लेकर 15 वर्ष की आयु तक उनके अब्बा ने उनका यौन शोषण किया था। फिर जब वह 15 वर्ष की हो गईं तो उन्होंने इसका सामना किया।
इन दोनों ही मामलों के साथ एक और घटना स्मरण आती है जो कुछ दिनों पहले जनकवि नागार्जुन पर ही उनकी मृत्यु के कई दिनों बाद यौन शोषण का आरोप लगा दिया गया था। इस बात को लेकर भी हंगामा हुआ था। तमाम विमर्श हुए थे।
ऐसा नहीं है कि यही मामले हैं, बल्कि ऐसे अनेकों किस्से सामने आ जाते हैं। एवं यह विमर्श उत्पन्न होने लगता है कि पुरुष वास्तव में ऐसे ही होते हैं। यहाँ स्वाति मालीवाल के पिता की बात करना इसलिए भी और आवश्यक हो जाता है क्योंकि वह सेना में रहे थे और यही स्वाति मालीवाल उन्हें अपनी शक्ति का स्रोत भी पूर्व में बता चुकी थीं।
अब प्रश्न यह उठता है कि एक पुरुष, जिसने अपनी ही जिस बच्ची का यौन शोषण किया हो, बच्ची के अनुसार, तो क्या वह उसके लिए शक्ति का स्रोत हो सकता है? अब स्वाति मालीवाल यह कह रही हैं कि ऐसा कई बच्चियों के साथ होता है, बस कहने में समस्या होती है। ऐसा नहीं है कि यह समस्या नहीं है और ऐसा होता नहीं होगा, परन्तु एक सच्चाई यह भी है कि स्वाति मालीवाल के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं और न ही बाबा नागार्जुन! फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि जो मृत हैं, उनके विषय में ऐसे आरोप लगाए जाएं। यद्यपि आरोपों से मुक्त किसी को नहीं किया जा सकता है, परन्तु यह भी सत्य है कि क्या उनके जीवित रहते ही ऐसे तमाम आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए, जिससे सत्य एवं असत्य दोनों का ही निर्णय लिया जा सके?
क्या यह उन पुरुषों के प्रति दुराग्रह से भरा हुआ नहीं प्रतीत होता है जिन पर यह आरोप लगाए गए? यदि स्वाति मालीवाल के पिता ने उनका यौन शोषण किया था, तो स्वाति को दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बनते ही सबसे पहला काम अपने साथ हुए इस शोषण के लिए न्याय लेना होना चाहिए था, उन्हें एक मिसाल कायम करनी चाहिए थी कि बच्चों का यौन उत्पीड़न करने वाला कोई भी हो बचेगा, नहीं! परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया, बल्कि यदि twitter की मानी जाए तो भारत की पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक तक भी स्वाति मालीवाल को अपने पिता पर गर्व था। और अब वह कह रही हैं कि उनकी मां तक के साथ उनके पिता ने बहुत ज्यादती की! ऐसे में बहुत भ्रम होता है, ऐसे प्रश्न उठते हैं कि क्या इतने वर्षों के उपरान्त यह आरोप किसी अन्य कारण से तो नहीं लगाए जा रहे हैं। जैसे जब गुनगुन ने नागार्जुन के विषय में यह कहा था कि उन्होंने उनका यौन शोषण किया तो द प्रिंट के लेख के अनुसार उन्होंने यह बात अपने पिता को नहीं बताई थी क्योंकि वह नहीं चाहती थीं कि उन्हें बाबा नागार्जुन को घर लाने पर ग्लानि का अनुभव हो!
बच्चों के साथ होने वाला यौन शोषण बहुत ही गंभीर तथा संवेदनशील मामला है और दुनिया का कोई भी अभिभावक सहज ही अपने बच्चे के साथ हुए इस शोषण के पक्ष में नहीं दिखता है, वह भरसक विरोध करता है। और पिछले कुछ वर्षों से बच्चो के साथ हुए यौन शोषण को लेकर नियम और भी सख्त हो गए हैं। परन्तु चूंकि ये सभी मामले अतीत के हैं, तो ऐसे में प्रश्न यह उठता ही है कि जो व्यक्ति उपस्थित नहीं है, जो व्यक्ति अपना पक्ष रखने के लिए उपस्थित है ही नहीं, तो उसके विरुद्ध ऐसे आरोप कहां तक उचित हैं? स्वाति मालीवाल एवं खुशबू सुन्दर जैसी स्त्रियाँ जिन्होनें समाज में अपना नाम कमाया है, उनसे यह अपेक्षा ही रहती है कि वह आरोपों से हटकर कुछ ठोस कार्य करेंगी।
यदि यह दोनों ही आरोप मीडिया में न आकर कानूनी कार्यवाही के माध्यम से जनता के बीच जाते तो वास्तव में यौन शोषण से पीड़ित बच्चों के लिए आस बंधती कि चाहे कितना भी समय लगे क़ानून के शिकंजे में हर कोई आएगा, परन्तु दुर्भाग्य और खेद की बात यह है कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह आरोप कहीं न कहीं किसी कारणवश तो नहीं लगाए जा रहे हैं?
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