सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट परिसर में बनी मस्जिद को तीन महीने में हटाने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट ने 2018 में ही सार्वजनिक जमीन पर बनी इस मस्जिद को हटाने के लिए कहा था। जस्टिस एमआर शाह की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश में कोई कमी नहीं। याचिकाकर्ता चाहे तो सरकार को वैकल्पिक जगह के लिए आवेदन दे सकता है।
वक्फ मस्जिद ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का वर्तमान भवन 1861 में बना था। उस समय से मुस्लिम समुदाय के वकील, कोर्ट स्टाफ और मुवक्किल शुक्रवार को मस्जिद के उत्तरी कोने में जाकर नमाज पढ़ते आ रहे हैं। वहां वजू की भी व्यवस्था की गई है। बाद में नमाज पढ़ने वाले बरामदे में जजों का चैंबर बना दिया। मुस्लिम वकीलों की मांग पर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ने दक्षिणी हिस्से में नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी। कुछ दिनों के बाद एक निजी व्यक्ति ने अपनी सरकारी अनुदान वाली भूमि पर बनी निजी मस्जिद में नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी। बाद में वो निजी मस्जिद सार्वजनिक मस्जिद बन गया।
सिब्बल ने कहा कि 1988 में जिस सरकारी अनुदान वाली भूमि पर मस्जिद थी, उसकी लीज 30 साल के लिए बढ़ा दी गयी। लीज 2017 में खत्म होनी थी, लेकिन 15 दिसंबर 2000 को लीज निरस्त कर दी गई, जबकि वहां नमाज पढ़ना जारी रहा। 2017 में सरकार बदलते ही सब कुछ बदल गया। लीज निरस्त होने के 10 दिन बाद ही इलाहाबाद हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने कहा कि लीज एक निजी व्यक्ति को दी गई थी और सरकार ने वह लीज खत्म कर दी है ऐसे में मस्जिद को वहां से हटाना होगा।
यूपी सरकार की ओर से एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि हाई कोर्ट की मस्जिद से पांच सौ मीटर की दूरी पर एक दूसरी मस्जिद है। तहसील में कोई दूसरा खाली प्लाट नहीं है। उन्होंने कहा कि ये मामला दोबारा आया है। 2004 में वो जगह हाई कोर्ट के लिए दे दी गई थी। अब 2023 में फिर ये मामला आया है केवल ये कहते हुए कि सरकार बदल गई है।
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