रमजान के दिन निकट आ रहे हैं। तो हर साल की तरह इस साल के लिए भी सऊदी अरब की सरकार ने मस्जिदों में नमाज के लिए कुछ विशेष नियम तय किए हैं। इमामों और मौलवियों से इन नियमों का सख्ती से पालन कराने को कहा गया है। उनसे ये भी कहा गया है कि बहुत जरूरी न हो तो वे इस माह में कोई छुट्टी न लें। इस साल रमजान के महीने के दौरान कई नियमों के अलावा कुछ प्रतिबंधों की भी घोषणा की गई है।
इन प्रतिबंधों में विशेष रूप से कहा गया है कि मस्जिद के लाउडस्पीकरों की ध्वनि प्रबलता कम रखी जाए यानी उनसे बहुत तेज आवाज नहीं आनी चाहिए। कहा गया है कि महीने के आखिरी 10 दिन खुद को एकांत में रखने की इच्छा रखने वाले नमाजियों की निगरानी के उचित प्रबंध हों। सरकार ने कहा है कि मस्जिद सीमित मात्रा में ही चंदा ले सकती हैं। इसके साथ ही मस्जिदों के भीतर नमाज के फिल्मांकन या प्रसारण पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।
सऊदी अरब सरकार में इस्लामिक मामलों के मंत्री अब्दुल लतीफ अल-शेख ने पिछले हफ्ते ये नियम और शर्तें एक अधिसूचना के माध्यम से जारी कीं। रमजान के महीने के लिए नियमों और प्रतिबंधों को बिंदुवार लिखकर कहा गया है कि इनका कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए।
जैसा पहले बताया, इन नियमों में एक है कि “इमाम और मुअज्जिन जब तक बहुत जरूरी न हो, मस्जिदों से अनुपस्थित नहीं रहेंगे। एक नियम है कि तरावीह (शाम) की नमाज लंबी न हो, और “रमजान के आखिरी दस दिनों में तहज्जुद की नमाज़ पूरी करें, भोर में अजान से पर्याप्त समय पहले दी जाए जिससे नमाजियों के लिए आसानी रहे।
जारी किए प्रपत्र में लिखा है कि नमाज के दौरान इमामों और नमाजियों की तस्वीर न खींची जाए, मस्जिदों में कैमरे लेकर आना प्रतिबंधित रहे, नमाज को किसी भी तरह के मीडिया पर प्रसारित न किया जाए।
सऊदी अरब के इस्लामी मामलों के मंत्रालय ने मस्जिदों में इफ्तार करने वालों के लिए खाने की चीजों हेतु चंदे से पैसे जमा करने से भी मना कर दिया है। इफ्तार कराना हो तो मस्जिद के अंदर न कराकर बाहर आंगन में कराने की तैयारी रखी जाए। ये इफ्तार इमामों और मुअज्जिनों की देखरेख में की जाए।
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मंत्रालय द्वारा घोषित कुछ अन्य ‘विवादास्पद’ निर्णयों में यह भी है कि नमाज के लिए अजान के दौरान सीमित संख्या में लाउडस्पीकर प्रयोग किए जाएं, उनकी आवाज बहुत तेज न हो। पिछले साल भी ठीक ऐसा ही फैसला किया गया था जो कुछ लोगों में काफी गुस्सा पैदा कर गया था तो बहुत से लोगों ने इिस फैसले की तारीफ भी की थी। नमाज के दौरान लोगों से कहा गया है कि वे अपने बच्चों को मस्जिद में साथ न लाएं, ताकि नमाजियों को कोई खलल न पड़े।
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मस्जिदों में इफ्तार करने वालों के लिए खाने की चीजों हेतु चंदे से पैसे जमा करने से भी मना कर दिया है। इफ्तार कराना हो तो मस्जिद के अंदर न कराकर बाहर आंगन में कराने की तैयारी रखी जाए। ये इफ्तार इमामों और मुअज्जिनों की देखरेख में की जाए।
हर साल की तरह इन प्रतिबंधों को लेकर दुनिया भर के कई कट्टरपंथी मुसलमान नाराज हैं और अपनी आपत्ति दर्ज करा रहे हैं। आलोचना करने वालों ने युवराज मोहम्मद बिन सलमान के तहत सऊदी सरकार द्वारा लंबे समय से लागू किए जाते रहे प्रतिबंधों के जरिए आम जनजीवन में इस्लाम के प्रभाव को सीमित करने के प्रयास के रूप में देखा है।
कुछ आलोचकों का कहना है एक तरफ तो सऊदी सरकार संगीत कार्यक्रमों को तो काफी बढ़ावा देती आ रही है, पश्चिमी कलाकारों को अपने यहां बुलाती रहती है। लेकिन इस्लाम के मामले में ऐसे प्रतिबंध लगा रही है।
मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल्ला अल-एनेज़ी ने अल सऊदिया चैनल को टेलीफोन पर दिए साक्षात्कार में इस तरह की बातों को खारिज करते हुए कहा है कि “मंत्रालय मस्जिदों में रोज़ा तोड़ने से नहीं रोकता है, बल्कि इसे व्यवस्थित करता है। इसमें मस्जिद की पवित्रता और स्वच्छता को बनाए रखने और आधिकारिक के अलावा अन्य तरह के चंदे न लेने की बात कही गई है।” उन्होंने नमाज के फिल्मांकन और किसी भी तरह के मीडिया पर उनके प्रसारण पर प्रतिबंध को भी उचित ठहराया।
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