अभी करीब ढाई महीने ही हुए हैं माओवादी नेता पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड को नेपाल में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे, लेकिन एक के बाद एक मुसीबतें सामने आने लगी हैं। अब वहां के सुप्रीम कोर्ट ने दहल के विरुद्ध ‘कारण बताओ नोटिस’ दे दिया है। उल्लेखनीय है कि पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड माओवादी नेता रहे हैं जिनकी कमान में नेपाल में हत्याओं का एक लंबा सिलसिला चला था। करीब 10 साल चले इस हिंसक दौर में लगभग 5 हजार हत्याएं हुई थीं। उस माओवादी विद्रोह में वर्तमान प्रधानमंत्री प्रचंड की भूमिका को खंगालने का अनुरोध करतीं कई याचिकाएं दायर हुई हैं। सबसे बड़ी अदालत का उक्त आदेश उन्हीं याचिकाओं के संदर्भ में है।
सूत्रों के अनुसार, एडवोकेट ज्ञानेंद्र आरन तथा माओवादी विद्रोह में हताहत हुए लोगों ने गत दिनों प्रचंड के विरुद्ध याचिकाएं दायर की थीं। सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग दायर की गईं इन याचिकाओं में मांग की गई है कि करीब 10 साल चले माओवादी विद्रोह के दौर में मारे गए लगभग 5 हजार लोगों की हत्या में प्रचंड की भूमिका की जांच हो और उनके विरुद्ध मुकदमा चलाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति ईश्वर प्रसाद खातीवाड़ा की एकल पीठ ने कल शुरुआती सुनवाई की और प्रधानमंत्री प्रचंड सहित सभी प्रतिवादियों को पंद्रह दिन के अंदर लिखित जवाब देने के निर्देश जारी किए। उनसे पूछा गया है कि वे बताएं, असल में क्या हुआ था और याचिकाकर्ताओं की मांग के अनुसार, क्यों न आदेश जारी किया जाए।
देश की सबसे बड़ी अदालत का कहना है कि जरूरी नहीं है कि अंतरिम आदेश जारी किया जाए, इसलिए क्योंकि वर्तमान संदर्भ में इसके लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं। याचिका दायर करने वालों की मांग है कि अदालत 68 साल के प्रधानमंत्री प्रचंड को हिरासत में लेने के अंतरिम आदेश जारी करें।
नेपाल के प्रसिद्ध अखबार ‘काठमांडू पोस्ट’ के अनुसार, न्यायालय द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों, अंतरराष्ट्रीय परंपराओं तथा सबसे बड़ी अदालत के फैसलों को देखते हुए याचिका दयार करने वाले लोगों ने जो सवाल उठाए हैं, उन्हें अंतिम सुनवाई के जरिए हल करना सही रहेगा।
15 जनवरी, 2020 को काठमांडू में प्रचंड ने माघी उत्सव समारोह में भाषण देते हुए यह कहा था कि वे दस साल चले विद्रोह की अगुआ माओवादी पार्टी के नेता के तौर पर 5 हजार लोगों की मौत की जिम्मेदारी लेंगे
दरअसल अपने एक भाषण में प्रचंड उस माओवादी दौर के बारे में बोल गए थे। हुआ यूं कि 15 जनवरी, 2020 को काठमांडू में उन्होंने माघी उत्सव समारोह में भाषण देते हुए यह कहा था कि वे दस साल चले विद्रोह की अगुआ माओवादी पार्टी के नेता के तौर पर 5 हजार लोगों की मौत की जिम्मेदारी लेंगे, लेकिन साथ ही शेष मौतों की जिम्मेदारी राज्य को लेनी चाहिए। बताते हैं, फरवरी 1996 से नवंबर 2006 तक चले उस विद्रोह की वजह से लगभग 17 हजार लोगों की जानें गई थीं। आज के प्रधानमंत्री प्रचंड ने तब उस विद्रोह को ‘पीपुल्स वॉर’ का नाम दिया था और दस साल तक सशस्त्र संघर्ष चलाया था।
आगे 14 नवंबर को तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश हरि कृष्ण कार्की की एकल पीठ ने इस संदर्भ में रिपोर्ट मांगने का निर्णय लिया था कि सबसे बड़े कोर्ट के प्रशासन ने आखिर वकीलों के द्वारा दायर याचिकाओं को दर्ज करने से मना क्यों किया था। इसके बाद, मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने अदालत के प्रशासन को आदेश दिया था कि प्रचंड के विरुद्ध याचिकाओं पर विचार किया जाए। कोर्ट ने तब कहा था कि आपराधिक न्याय प्रक्रिया को बंद नहीं जा सकता। कोर्ट ने तो यहां तक कहा था कि इसे किसी भी वजह की आड़ में अप्रभावी या निष्क्रिय नहीं किया जा सकता।
माओवादी विद्रोह के पीड़ितों ने दायर याचिकाओं में कोर्ट से पुष्प कमल दहल के विरुद्ध उन हत्याओं के लिए जरूरी कानूनी कार्रवाई करने की अपील की है जिनके लिए वे खुद जिम्मेदार थे। वह विद्रोह तत्कालीन सरकार के साथ माओवादियों के एक शांति समझौते के बाद खत्म हुआ था।
हिमालयी देश की शीर्ष अदालत के ताजा आदेश के बाद काठमांडु में राजनीतिक सरगर्मियां यकायक तेज हो गई हैं। सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता ही नहीं, विपक्षी दल और आम नेपालवासी प्रधानमंत्री प्रचंड के भविष्य को लेकर कयास लगाने लगे हैं।
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