प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को हाल में तुर्कीये और सीरिया में भूकंप के बाद भारत की तरफ से भेजी गई मदद और बचाव दल के प्रयासों पर कहा दुनिया ने भारत के आपदा प्रबंधन प्रयासों की भूमिका को पहचाना और सराहा है। उन्होंने आपदा जोखिम में कमी के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
प्रधानमंत्री ने विज्ञान भवन में राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्लेटफार्म (एनपीडीआरआर) के तीसरे सत्र का उद्घाटन किया। इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राज्य मंत्री नित्यानंद राय भी उपस्थित थे।
इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा, “हाल में तुर्किये और सीरिया में भारतीय दल के प्रयासों को पूरी दुनिया ने सराहा है। ये हम सभी के लिए गौरव का विषय है।” उन्होंने आगे कहा कि भारत ने जिस तरह से आपदा प्रबंधन से जुड़ी तकनीक और मानव संसाधन का विस्तार किया है, उससे देश में भी अनेक जीवन बचाने में मदद मिली है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कार्यक्रम की थीम ‘बदलती जलवायु में स्थानीय सहनीयता का निर्माण’ भारतीय परंपरा से परिचित है क्योंकि यह तत्व कुओं, वास्तुकला और पुराने शहरों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि भारत में आपदा प्रबंधन की व्यवस्था, समाधान और रणनीति हमेशा स्थानीय रही है। उन्होंने कच्छ के भुंगा घरों का उदाहरण दिया जो काफी हद तक भूकंप से बचे रहे। प्रधानमंत्री ने नई तकनीकों के अनुसार आवास और नगर नियोजन के स्थानीय मॉडल विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “नई तकनीक के साथ स्थानीय प्रौद्योगिकी और सामग्री को समृद्ध करना समय की आवश्यकता है। जब हम स्थानीय लचीलेपन के उदाहरणों को भविष्य की तकनीक से जोड़ेंगे, तभी हम आपदा प्रतिरोधक क्षमता की दिशा में बेहतर कर पाएंगे।”
प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि बीते वर्षों की जीवनशैली बहुत आरामदायक थी और यह अनुभव ही था जिसने हमें सूखे, बाढ़ और लगातार बारिश की प्राकृतिक आपदाओं से निपटना सिखाया। उन्होंने बताया कि पिछली सरकारों के लिए यह स्वाभाविक था कि वे आपदा राहत को कृषि विभाग के पास रखें। उन्होंने याद किया कि जब भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा आती है तो स्थानीय स्तर पर स्थानीय संसाधनों की मदद से उससे निपटा जाता है। हालांकि, प्रधानमंत्री ने कहा, यह एक छोटी सी दुनिया है जिसमें हम आज रहते हैं जहां एक दूसरे के अनुभवों और प्रयोगों से सीखना एक आदर्श बन गया है। दूसरी ओर, उन्होंने यह भी कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रकोप की संख्या में भी वृद्धि हुई है। एक गांव के एकमात्र चिकित्सक की तुलना करते हुए, जो सभी का इलाज करेगा, प्रधानमंत्री ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि हमारे पास आज के दिन और उम्र में हर बीमारी के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर हैं। इसी तरह, प्रधानमंत्री ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए एक गतिशील प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिछली शताब्दी की प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन करके एक सटीक अनुमान लगाया जा सकता है, साथ ही इन विधियों को समय रहते संशोधित करने पर जोर दिया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि आपदा प्रबंधन को मजबूत करने के लिए रेकग्निशन और सुधार दो मुख्य घटक हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि रेकग्निशन प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न संभावित खतरों की पहचान करने में मदद करेगी और वो भविष्य में कैसे घटित हो सकती है। जबकि सुधार एक ऐसी प्रणाली है जहां संभावित प्राकृतिक आपदा के खतरों को कम किया जाता है। उन्होंने व्यवस्था को समयबद्ध तरीके से और अधिक सक्षम बनाकर उसमें सुधार करने का सुझाव दिया और शॉर्ट-कट के बजाय दीर्घकालिक सोच के दृष्टिकोण पर बल दिया।
प्रधानमंत्री ने आजादी के बाद के वर्षों में आपदा प्रबंधन की खराब स्थिति के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि पांच दशक बीत जाने के बाद भी आपदा प्रबंधन को लेकर कोई कानून नहीं है। गुजरात पहला ऐसा राज्य था, जो 2001 में स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट लेकर आया था। तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसी एक्ट के आधार पर डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट बनाया था। उसके बाद, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण अस्तित्व में आया।
प्रधानमंत्री ने स्थानीय निकायों में आपदा प्रबंधन प्रशासन को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमें योजना को संस्थागत बनाना होगा और स्थानीय योजना की समीक्षा करनी होगी। पूरी व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव की जरूरत को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने दो स्तरों पर काम करने का आह्वान किया। पहला, आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों को जनभागीदारी पर ज्यादा ध्यान देना होगा। दूसरा- हमें आपदाओं से जुड़ें खतरों से लोगों को जागरूक करना होगा। उन्होंने भूकंप, चक्रवात, आग और अन्य आपदाओं के खतरों के बारे में लोगों को जागरूक करने की एक सतत प्रक्रिया पर बल दिया। इस संबंध में उचित प्रक्रिया, कवायद और नियमों के बारे में जागरूकता प्रदान करना महत्वपूर्ण है।
प्रधानमंत्री ने स्थानीय कौशल और उपकरणों के निरंतर आधुनिकीकरण की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को वन ईंधन को जैव ईंधन में बदलने वाले उपकरण उपलब्ध कराने की संभावना तलाशने को कहा, जिससे उनकी आय बढ़े और आग लगने की घटनाएं कम हों। उन्होंने उद्योगों और अस्पतालों के लिए विशेषज्ञों का एक बल बनाने की भी बात की, जहां गैस रिसाव की संभावना अधिक हो। इसी तरह, एम्बुलेंस नेटवर्क को भविष्य के लिए तैयार करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने इस संबंध में एआई, 5जी और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) के उपयोग का पता लगाने को कहा। उन्होंने हितधारकों से ड्रोन, अलर्ट करने के लिए गैजेट्स और व्यक्तिगत गैजेट्स के उपयोग पर भी ध्यान देने को कहा, जो मलबे के नीचे दबे लोगों का पता लगाने में मदद कर सकते हैं। उन्होंने विशेषज्ञों से वैश्विक सामाजिक निकायों के काम का अध्ययन करने का अनुरोध किया जो नई प्रणाली और प्रौद्योगिकियों का निर्माण कर रहे हैं और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपना रहे हैं।
कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ओएसडीएमए) और लुंगलेई फायर स्टेशन, मिजोरम को सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार 2023 से सम्मानित किया। पुरस्कार से सम्मानित संस्थानों के सभी संबद्ध मानव संसाधनों को बधाई देते हुए मोदी ने कहा, ओडिशा स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथोरिटी विभिन्न आपदाओं के दौरान बेहतरीन काम करती रही है। मिजोरम के लुंगलेई फायर स्टेशन ने जंगल में लगी आग को बुझाने के लिए अथक परिश्रम किया। मैं इन संस्थानों में काम करने वाले सभी साथियों को बधाई देता हूं। आप सभी दूसरों की जान बचाने में अपनी जान जोखिम में डालते हैं।”
उन्होंने इससे पहले आपदा जोखिम न्यूनीकरण के क्षेत्र में अभिनव विचारों और पहलों तथा उपकरणों एवं प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित करने वाली प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि समय पर प्रतिक्रिया, संचार के मजबूत साधन, वास्तविक समय पंजीकरण और प्रत्येक गली और प्रत्येक घर की निगरानी आपदाओं के दौरान कम से कम संभावित नुकसान सुनिश्चित कर सकती है।
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