संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान महिलाओं और लड़कियों के लिए दुनिया का सबसे दमनकारी देश बन गया है। अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद महिलाओं को उनके मूलभूत अधिकारों तक से वंचित कर दिया गया है। सभी महिलाएं अपने घरों में कैद होकर रह गई हैं।
अफगानिस्तान के संबंध में संयुक्त राष्ट्र मिशन ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जारी एक बयान में कहा कि नए तालिबान नेताओं के शासन में उन्होंने महिलाओं पर ऐसे-ऐसे कानून जबरदस्ती थोपे हैं, जिससे वह घरों में कैद हो कर रह गई हैं। अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र अभियान की प्रमुख और संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि रोजा इसाकोवना ने अफगानी महिलाओं पर थोपे गए तालिबानी फरमानों का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने सुरक्षा परिषद को बताया कि तालिबानी शासन के तहत अफगानिस्तान महिला अधिकारों के लिए दुनिया का सबसे दमनकारी देश बन चुका है। वह चरणबद्ध तरीके से जानबूझकर महिलाओं को पूरी तरह से सार्वजनिक दायरे से बाहर करते जा रहे हैं।
रोजा इसाकोवना ने कहा कि तालिबान ने महिलाओं के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने से रोक दिया है। साथ ही उन्हें सिर से पांव तक ढक कर रखने को कहा है। महिलाओं को अपने घर के बाहर निकलने की मनाही है और वह किसी भी सार्वजनिक फैसले में हिस्सा नहीं ले सकती हैं। तालिबानी शासन के इस रवैये से यह देश और अलग-थलग पड़ता जाएगा और विश्व के अन्य भाग से कट जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार अफगानिस्तान में पिछले साल के अंतिम तिमाही में महिला रोजगार में 25 प्रतिशत की गिरावट आ गई थी, चूंकि तालिबान ने उन पर काम करने और यात्रा करने को लेकर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। अफगानी महिलाओं पर शिक्षा ग्रहण करने और एनजीओ के कार्य करने पर भी प्रतिबंध है। विश्वविद्यालय की शिक्षा पर प्रतिबंध को लेकर तालिबान सरकार का कहना है कि कुछ विषय अफगान और इस्लामी मूल्यों के खिलाफ हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 1.16 करोड़ अफगान महिलाओं और लड़कियों को मानवीय सहायता की जरूरत है।
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