शिवाजी महाराज की जयंती पर लगाए गए इस पोस्टर पर लिखा था, ‘‘शिवाजी महाराज किसान के मित्र और सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने वाले बहुजन चक्रवर्ती हैं।’’ भाकपा द्वारा लगाए गए इस पोस्टर को देखकर हर कोई दंग रह गया। लोग यह चर्चा करते पाए गए कि ये वामपंथी कब से शिवाजी महाराज पर श्रद्धा रखने लगे?
गत दिनों भाग्यनगर (हैदराबाद) के नारायणगुड़ा स्थित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के प्रदेश कार्यालय के बाहर छत्रपति शिवाजी महाराज का एक पोस्टर लगाया गया। शिवाजी महाराज की जयंती पर लगाए गए इस पोस्टर पर लिखा था, ‘‘शिवाजी महाराज किसान के मित्र और सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने वाले बहुजन चक्रवर्ती हैं।’’ भाकपा द्वारा लगाए गए इस पोस्टर को देखकर हर कोई दंग रह गया। लोग यह चर्चा करते पाए गए कि ये वामपंथी कब से शिवाजी महाराज पर श्रद्धा रखने लगे?
वहीं दूसरी ओर नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शिवाजी जयंती मनाई गई तो वामपंथी छात्रों ने उनकी तस्वीर फाड़ कर फेंक दी। यही नहीं, वामपंथी छात्रों ने शिवाजी महाराज की जयंती मना रहे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) के कार्यकर्ताओं के साथ मार-पीट भी की।
यानी भाग्यनगर में वामपंथियों ने शिवाजी महाराज की जयंती मनाई और नई दिल्ली में उन्हीं वामपंथियों ने उनकी जयंती का विरोध किया। इसके संकेत क्या हैं? इसे समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की आवश्यकता नहीं है। साफ है कि जहां वामपंथियों को लगता है कि शिवाजी जैसे हिंदू वीर ही उनके अस्तित्व को बचा सकते हैं, वहां वे उनकी जयंती मना रहे हैं और जहां उन्हें लगता हैं कि शिवाजी की जरूरत नहीं है, तो उन्हें सांप्रदायिक कहकर उनका विरोध कर रहे हैं।
बता दें कि जेएनयू छात्र संघ कार्यालय में पहले से विदेशी विचारक लेनिन, कार्ल मार्क्स और भारत विरोधी विचार रखने वाले कई लोगों की तस्वीरें लगी हैं। कभी किसी ने इन चित्रों का विरोध नहीं किया। लेकिन अब ये वामंपथी छात्र जेएनयू में छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप जैसी विभूतियों की जयंतियों का विरोध कर रहे हैं। उनके चित्रों को फाड़कर नाले में फेंक रहे हैं।
वामपंथियों को यह मालूम होना चाहिए कि यदि वे पूर्वाग्रह को छोड़कर शिवाजी महाराज का मूल्यांकन करेंगे तो उन्हें वामपंथ की शरण में जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, क्योंकि शिवाजी का चरित्र ही ऐसा है।
इतिहास साक्षी है कि जब हिंदू आत्मविश्वास और आशा खो चुके थे, तब छत्रपति शिवाजी ही थे, जिन्होंने हिंदुओं में आत्मविश्वास को जगाया, उन्हें पराधीनता से निकाला। यही नहीं, लोकमान्य तिलक, सुभाष चंद्र बोस, डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, रविंद्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर जैसे महानुभाव और क्रांतिकारी छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरणा लेकर ही स्वाधीनता के आंदोलन में कूदे थे।
कहा जाता है कि शिवाजी महाराज की जयंती मनाने की शुरुआत 1870 में पुणे में महात्मा ज्योतिराव फुले द्वारा की गई थी। उन्होंने ही रायगढ़ में शिवाजी की समाधि की खोज की थी। इसके बाद शिवाजी की जयंती को आगे मनाने की परंपरा बाल गंगाधर तिलक ने जारी रखी। यही कारण है कि हर वर्ष छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाई जाती है, लेकिन ऐसे कार्यक्रमों से वामपंथी नदारद ही रहते थे।
लेकिन इस वर्ष पहली बार ऐसा देखा गया कि भाग्यनगर के वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती मनाई। लोगों का मानना है कि देश की बदलती राजनीतिक परिस्थिति ने वामपंथियों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। जो वामपंथी इस सचाई को जानने और समझने लगे हैं, वे छत्रपति शिवाजी जैसे हिंदू वीर की जयंती भी मनाने लगे हैं और जो अभी भी वामपंथ के चक्कर में पड़े हैं, वे उनका विरोध कर रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में बात-बात पर मारपीट करने वाले और देश-विरोधी नारे लगाने वाले वामपंथी भी भाग्यनगर के अपने साथियों से सीख लेंगे। यह बात भी पक्की है कि यदिइन्होेंने सीख नहीं ली तो ये अपना अं तिम दुर्ग भी आज नहीं तो कल खो देंगे।
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