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जीवनशैली ठीक तो सब ठीक

कोल्हापुर स्थित श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ में आयोजित पंचमहाभूत लोकोत्सव का समापन 26 फरवरी को हुआ। इस सात दिवसीय लोकोत्सव में लगभग 35,00,000 लोग शामिल हुए। इन लोगों को पर्यावरण को बचाने का संकल्प दिलाया गया

by विमल कुमार सिंह
Mar 9, 2023, 09:43 am IST
in भारत, जीवनशैली, महाराष्ट्र
लोकोत्सव के मंच पर मध्य में (बाएं से) डॉ. प्रमोद सावंत, श्री थावरचंद गहलोत, स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जी, श्री भैयाजी जोशी और अन्य संत

लोकोत्सव के मंच पर मध्य में (बाएं से) डॉ. प्रमोद सावंत, श्री थावरचंद गहलोत, स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जी, श्री भैयाजी जोशी और अन्य संत

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49वें मठाधिपति स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जी पंचमहाभूत अभियान से प्रारंभ से ही जुड़े रहे हैं। 20 से 26 फरवरी तक उनके नेतृत्व में पंचमहाभूत लोकोत्सव का आयोजन किया गया। इस लोकोत्सव में लोगों ने जिस उत्साह के साथ भागीदारी की, वह अद्वितीय है।

पंचमहाभूतों को आधार बनाकर पिछले लगभग एक वर्ष से देशभर में जो अभियान चल रहा है, उसमें श्रीक्षेत्र सिद्धगिरि मठ की प्रमुख भूमिका रही है। कनेरी गांव में स्थित होने के कारण कुछ लोग इसे कनेरी मठ भी कहते हैं। महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में स्थित यह मठ लगभग 1,500 वर्ष पुराना है। इस मठ का प्रभाव मुख्यत: महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोवा में है। यहां के लोग कई पीढ़ियों से इस मठ से जुड़े हुए हैं। इसके 49वें मठाधिपति स्वामी अदृश्य काडसिद्धेश्वर जी पंचमहाभूत अभियान से प्रारंभ से ही जुड़े रहे हैं। 20 से 26 फरवरी तक उनके नेतृत्व में पंचमहाभूत लोकोत्सव का आयोजन किया गया। इस लोकोत्सव में लोगों ने जिस उत्साह के साथ भागीदारी की, वह अद्वितीय है।

कोल्हापुर और उसके आसपास के जिलों से तो लगभग हर घर से इस आयोजन में लोग सम्मिलित हुए। कर्नाटक और गोवा से भी लोग बड़ी संख्या में आए। एक अनुमान के अनुसार इन सात दिन में लगभग 35,00,000 लोग लोकोत्सव में शामिल हुए। राष्ट्रीय स्तर पर इस इसकी बहुत चर्चा नहीं हो पाई लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोवा में इसकी पूरी धूम रही। पंचमहाभूत लोकोत्सव का घोष वाक्य था— ‘जीवनशैली ठीक तो सब ठीक।’ इससे पता चलता है कि लोकोत्सव की सोच कितना गहरा है।

वास्तव में आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की जिस समस्या से जूझ रही है, उसके मूल में विकास का वह विकृत प्रारूप है, जिसमें अधिकाधिक उपभोग को ही श्रेष्ठ जीवनशैली का पर्याय मान लिया गया है। दुनिया के विकसित देश अपने नागरिकों की इस जीवनशैली को बनाए रखना चाहते हैं, भले ही इसके चलते धरती का सर्वनाश हो जाए। 1992 के रिओ सम्मेलन में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने साफ-साफ कह दिया था कि वे अमेरीकियों की जीवनशैली पर कोई समझौता नहीं करेंगे।

पर तीस साल बाद अब दुनिया भर की सरकारें जीवनशैली के मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार हो रही हैं, लेकिन वे अभी भी इस दिशा में कोई बड़ा कदम उठाने के लिए तैयार नहीं हैं। सचाई यह है कि जीवनशैली में सुधार एक जटिल मुद्दा है। इस दिशा में केवल सरकारों के चाहने या कोई कानून बनाने से बात नहीं बनेगी। इस संदर्भ में बात तब बनेगी जब सरकार और समाज मिलकर इस दिशा में कोई ठोस पहल करें। कनेरी में आयोजित पंचमहाभूत लोकोत्सव ठीक इसी दिशा में किया गया एक प्रयास है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के 26वें जलवायु परिवर्तन सम्मेलन को संबोधित करते हुए 1 नवंबर, 2021 को कहा था कि जब तक लोगों की जीवनशैली पर्यावरण के अनुकूल नहीं बनेगी, तब तक मानवता के सम्मुख अस्तित्व का संकट बना रहेगा। इनकी इस बात को पंचमहाभूत लोकोत्सव के माध्यम से जमीन पर उतारने की एक ईमानदार पहल की गई है।

महाराष्ट्र सरकार ने इस आयोजन को प्रारंभ से ही अपना भरपूर सहयोग दिया। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस आयोजन में व्यक्तिगत रुचि ली। इसी के साथ कोल्हापुर और मुंबई में बैठे सरकारी अधिकारियों ने इस आयोजन को सफल बनाने के लिए हर प्रकार से मदद की। सड़क, बिजली के साथ-साथ लोकोत्सव में आ रहे लोगों की सुविधा के लिए हर संभव उपाय किए गए। पर्यावरण और जीवनशैली का मुद्दा लोगों तक प्रभावी ढंग से पहुंचे, इसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने आयोजन स्थल पर ही एक उच्च तकनीक से लैस थिएटर का निर्माण करवाया था। यहां प्रसिद्ध मराठी निर्देशक वीजू माने के निर्देशन में बनी एक डाक्यूमेंट्री फिल्म को हर दिन चार बार दिखाया जाता था। फिल्म के बीच-बीच में कुछ कलाकार अपनी जीवंत प्रस्तुति भी दे रहे थे।

उद्घाटन और समापन को छोड़कर लोकोत्सव के शेष पांच दिन पांच तत्वों और पांच विषयों को समर्पित थे। 21 फरवरी को आकाश, 22 फरवरी को वायु, 23 फरवरी को अग्नि, 24 फरवरी को जल और 25 फरवरी को पृथ्वी पर विशेष चर्चा और प्रबोधन के कार्यक्रम हुए। इन पांच दिनों में क्रमश: युवा, उद्योजक, संत, मातृशक्ति और किसानों को ध्यान में रखते हुए बात कही गई। मंच से जिन लोगों ने अपनी बात रखी, उसमें राजनेता, संत, समाजसेवी, उद्योगपति, शिक्षाविद्, कलाकार, किसान सभी शामिल थे। सात दिनों में जिन लोगों ने विशेष रूप से भाग लिया उनमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री के साथ गोवा के मुख्यमंत्री भी थे। इसी के साथ अलग-अगल दिनों में गुजरात, कर्नाटक और केरल के राज्यपाल भी आए।

मंचीय उद्बोधन और फिल्म प्रस्तुति के साथ-साथ लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए लोकोत्सव में विशेष प्रदर्शनियां भी तैयार की गई थीं। सभी पांच तत्वों अर्थात् आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी पर विशाल प्रदर्शनियां तैयार की गई थीं। इसके अलावा आरोग्य और रिसाइक्लिंग पर भी एक-एक प्रदर्शनी बनाई गई थी। प्राकृतिक खेती के विषय पर तो लगभग चार एकड़ में एक सजीव प्रदर्शनी तैयार की गई थी, जहां 100 से अधिक फसलें लहलहा रही थीं। इन सभी प्रदर्शनियों को देखने के लिए सात दिन में जिस तरह लोगों की भीड़ उमड़ी, उसे देखकर कहा जा सकता है कि यदि आयोजक की विश्वसनीयता हो और प्रस्तुति का तरीका रोचक हो तो लोग पर्यावरण और जीवनशैली के मुद्दे को जानने-समझने के लिए भी खुले मन से आते हैं।

26 फरवरी को पंचमहाभूत लोकोत्सव औपचारिक रूप से संपन्न हो गया, लेकिन इसके माध्यम से जो प्रवाह बना है वह आगे और घनीभूत रूप में सामने आएगा। इस विषय में स्वामी अदृश्य काडसिद्धेशवर ने कहा, ‘‘हमारा आयोजन औपचारिक रूप से पूरा हो गया है, लेकिन इस दिशा में हमारी गतिविधियां जारी रहेंगी। प्राकृतिक खेती और कचरा प्रबंधन पर हम विशेष रूप से काम करेंगे। हम लोगों को यह समझाएंगे कि स्वस्थ पर्यावरण के लिए हर पुरानी या तथाकथित रूप से बेकार चीज की रिसाइक्लिंग अर्थात पुन: उपयोग कितना जरूरी है। जीवनशैली को लेकर और भी कई बाते हैं जिस पर हम काम करेंगे। हमारा दृढ़ विश्वास है कि यदि जीवनशैली ठीक हो गई तो सब ठीक हो जाएगा।’’

पंचमहाभूत कार्यक्रमों की पृष्ठभूमि
वैज्ञानिकों को 1980 के दशक तक पता चल गया था कि अत्यधिक मात्रा में कोयला और खनिज तेल जलाने से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। जब समस्या समझ में आई तो दुनिया भर की सरकारों ने इस पर चर्चा शुरू की। 1992 में ब्राजील के रिओ शहर में तीन अंतरराष्ट्रीय संधियां हुई। एक, जलवायु परिवर्तन रोकने की। दो, जीवों की विविधता यानी ‘बायोडाइवर्सिटी’ के संरक्षण की। तीन, बढ़ते हुए रेगिस्तानों को रोकने की। दुर्भाग्य से तीनों समझौतों के अंतर्गत जो काम होना था, वह नहीं हुआ। इसके कारण हालात बिगड़ते गए। 2022 में वैज्ञानिकों ने आखिरी चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि 2030 तक प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो धरती पर मनुष्य का अस्तित्व संकट में आ जाएगा।

जलवायु परिवर्तन की इस समस्या को ध्यान में रखते हुए 3 अप्रैल, 2022 को दिल्ली के पूसा संस्थान में देश भर से कई बुद्धिजीवी, समाजसेवी, वैज्ञानिक, केंद्रीय मंत्रालयों से संबंधित मंत्रीगण और धर्मगुरु एकत्रित हुए। व्यापक विमर्श के बाद सभी लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस समस्या का समाधान पंचमहाभूत के प्राचीन भारतीय जीवनदर्शन में ढूंढा जा सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री भैयाजी जोशी ने पंचमहाभूत की बात को एक अभियान के रूप में देश भर में ले जाने का आह्वान किया। दीनदयाल शोध संस्थान, ग्राम विकास, भारतीय किसान संघ और विज्ञान भारती जैसी संस्थाओं ने इस दिशा में आगे बढ़कर जिम्मेदारी ली। धीरे-धीरे केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय और निकाय भी इस अभियान से जुड़ते गए। इन सभी के सम्मिलित प्रयास से देश के कई प्रमुख शहरों में इस विषय पर चर्चा और प्रबोधन के कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं।

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