कोरोना काल में देखो कितने फनकार हो गए
लिखना न जाने, वो कवि सरकार हो गए
न भाव ना ही छंद, न तुकबंदी का ही भान है
बस कलम थामी खुद में गीतकार हो गए
कुछ यहां से कुछ वहां से लाइनें लेकर जोड़ लीं
स्कूल कॉलेज के फेलियर भी हुशियार हो गए
श्रोता भी ढूंढें और लाइक्स चाहें एफबी इंस्टा पर
झूठी वाहवाही से गुल-ए-गुलजार हो गए
और कहीं मिल जाए गर जो मंच तो क्या बात है
पैसे देकर पढ़ने के व्यापार हो गए
छप भी जाते हैं कभी गाहे-बगाहे देख लो
इनकी बदौलत निहाल कितने अखबार हो गए
‘गीत’ गजलें या सवैया नाम लेने भर की देर
आए कुछ ना पर लिखने को तैयार हो गए
होली के रंग, धूमकेतु के संग
धूमकेतु भोपाल
फागुन का महीना गुजरा जा रहा है , होली का रंग चढ़ता जा रहा है, जंगल में शेर को घेरने के लिए सियार इकट्ठे हो रहे हैं , आइए कुछ दृश्य यहां देखें…
‘छोटा बाबा’ बता रहा, ‘बड़ा बाबा’ चोर,
फिल्म बड़ी मशहूर थी, चोर मचाए शोर?
सियार फिर से तन रहे, शेर दिख रहे दीन
जयचंद, जाफर, मानसिंह, गिनती के थे तीन?
तीन सौ सत्तर क्या हटी, रोये बेटा बाप,
खुद के कपड़े फाड़ कर, खाला करें प्रलाप?
मंदिर के निर्माण की, मलाई दूसरे खायें,
और हम दोनों भाई-बहन, केवल घंटा बजायें?
पदलोलुपता सबसे आगे, समाजवादी गुलफाम
बिना ब्रेक की जुबान है, खींचे कोई लगाम ?
वे भी हमको आजकल देती है चैलेंज,
मोबाइल में जिनके, नहीं बचा बैलेन्स?
मुद्दा विहीन पार्टी
यूनिवर्सिटी हजार हैं, तीन मगर विकराल,
पैदा होते जहां पर, हरे जहरीले लाल?
पाकर सत्ता सुंदरी, जो हो जाते मस्त
जनता भी कर देती है, उनका सूरज अस्त।
एक बोतल पर एक फ्री अब ‘साहब‘ का राज
फोकटिये खुश हो रहे, दिल्ली में सरताज?
बना रहे मजबूत बांध, लहराएंगे खेत,
एक तगारी सीमेंट में बीस तगारी रेत?
शिक्षा के संग आबकारी, मिला यही संताप
सुबह-सुबह तो पुण्य मिला, रात में पाप ही पाप?
जनता जिसकी माई बाप, तब तक उसमें प्राण,
रूठ गई तो समझिए, पहुंच गए श्मशान?
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