उत्तराखंड आंदोलन के दौरान पुलिस बर्बरता के प्रतीक बने मुजफ्फरनगर रामपुर तिराहे कांड के आरोपी 17 पुलिसकर्मियों को आखिरकार कोर्ट में आत्मसमर्पण करना पड़ा है। उल्लेखनीय है कि एक और दो अक्टूबर 1994 को दिल्ली में रैली के लिए जाते हुए पौड़ी जिले के उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार के इशारे पर रामपुर तिराहे पर गोलियां चलाई गईं, लाठी चार्ज किया गया और महिलाओं के साथ दुष्कर्म किए गए थे।
इस घटना के बाद उत्तराखंड आंदोलन ने पहाड़ों में जोर पकड़ा और इस मामले के दोषी पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज किए जाने की मांग उठती रही। मुलायम सरकार ने इस घटना पर कोई पश्चाताप नहीं किया। केंद्र में एनडीए और राज्य में बीजेपी सरकार आने के बाद इस घटना की सीबीआई जांच हुई और उसके बाद ये मामला मुजफ्फरनगर में फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रहा है।
अदालत ने इस घटना के आरोपी 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए थे, जिनमें से तत्कालीन थाना इंचार्ज रहे राजवीर सिंह ने दो दिन पहले कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया था, जबकि 17 अन्य ने बीते कल कोर्ट में आत्मसमर्पण किया है। सीबीआई अदालत में श्री शक्ति सिंह की अदालत में सभी आत्मसमर्पण करने वाले पुलिसकर्मियों से अपेक्षा की गई है कि वो अदालत की कार्यवाही में सहयोग करेंगे। अगली तारीख होली के बाद 13 मार्च की दी गई है। सभी पुलिसकर्मियों को वॉरंट रिकॉल करते हुए देर शाम निजी मुचलके पर रिहा कर दिया है।
उत्तराखंड में इस मामले को लेकर हमेशा से संजीदगी रही है क्योंकि ये कांड यहां के जनमानस की भावनाओं से जुड़ा हुआ है। इस घटना में 15 लोगों के मारे जाने की बात कही गई थी, बाद में ये कहा गया कि पांच लोगों की मौत हुई है।
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