ईरान इन दिनों उबल रहा है। ऐसा नहीं है कि यह अचानक हुआ है या फिर अपेक्षा से परे हुआ है। स्त्रियों का दमन जब-जब किया जाता है, तब ऐसा ही होता है। किसी भी देश में जब स्त्रियों के साथ अन्याय होता है तो सरकार इस अन्याय का विरोध करने के लिए सामने आती है, परन्तु क्या हो जब सरकार ही दमन पर उतर आए। जब सरकारी नियम ही मजहबी कट्टरता का प्रतीक हो जाएं और यही ईरान में हो रहा है।
परन्तु सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि महिलाओं के लिए हर मामले पर बोलने वाले लोग इन मामलों पर मौन साध जाते हैं। फेमिनिस्ट तो तनिक भी ईरान के मामलों पर नहीं बोलती हैं, यदि प्रश्न उठाया जाए तो यह कहा जाता है कि बाहर न देखकर हमें अपने देश में महिलाओं की स्थिति को देखना चाहिए। परन्तु यहाँ पर भी वह उस हिंसा के विरुद्ध अपनी आवाज नहीं उठाती हैं, जो मजहबी हिंसा का शिकार हो रही हैं।
और मजे की बात यह है कि जब उन्हें अपनी कविताओं के लिए विमर्श या आदर्श चाहिए होते हैं, तो वह अमेरिका आदि की ओर देखती हैं, परन्तु अमेरिका में भी वह उन महिलाओं के साथ हो रही हिंसा पर अपनी आवाज नहीं उठाती हैं, जो मजहबी या वामपंथी हिंसा का शिकार होती हैं।
यही कारण हैं कि वह अब भी मौन हैं। जबकि ईरान से इस बार जो समाचार आया है वह दिल दहला देने वाला है। दिल दहला देने वाला इसलिए है क्योंकि ईरान की लड़कियों पर जो कहर टूटा है, वह बहुत स्वाभाविक इच्छा पर टूटा है। और वह इच्छा है पढ़ाई की इच्छा। और क्या बाल खुले रखने की उनकी आजादी के बाद उनकी पढाई पर अब प्रहार हो रहा है? यदि हाँ, तो कौन कर रहा है? और किसलिए किया जा रहा है?
क्या अफगानिस्तान की तरह ईरान में भी विमर्श से बाहर किए जाने की कगार पर हैं महिलाएं? यदि ऐसा है तो यह कितना खतरनाक हो सकता है, और हो रहा है, वह समझा जा सकता है।
अब यह हुआ है कि ईरान में लड़कियां पढ़ न पाएं तो उन्हें जहर दिया जा रहा है, जिससे वह स्कूल ही न जा पाएं। ईरान के एक शहर कोम में लड़कियों को स्कूल जाने से रोकने के लिए जहर देने का मामला सामने आया है। ईरान के मंत्री ने ही यह बात बताई। उन्होंने बताया कि ईरान के पवित्र शहर कोम सहित कई जगहों पर लड़कियों के स्कूलों को बंद कराने के लिए सैकड़ों छात्राओं को जहर दे दिया गया।
ईरान के कहर शहरों के 14 स्कूलों में पढने वाली छात्राओं को निशाना बनाया था। जिस शहर को लेकर सबसे अधिक चर्चा है वह है कोम! कोम शहर को बहुत पवित्र माना जाता है और साथ ही इसे बहुत मजहबी माना जाता है।
जिन लड़कियों को जहर दिया गया था, उनकी तबियत अचानक से बिगड़ी थी और जब इतनी अधिक संख्या में लड़कियों की तबियत बिगड़ी तो जांच आरम्भ हुई थी। जांच में यह निकलकर आया कि कुछ लोग ऐसे हैं, जो नहीं चाहते हैं कि लड़कियां स्कूलों की दहलीज पर जाएं, और उनकी सीमा केवल घर ही रह जाए उन्होंने यह कुकृत्य किया।
लड़कियों के अभिभावकों द्वारा विरोध के भी समाचार हैं।
दरअसल ईरान में लड़कियां कई वर्षों से अनिवार्य हिजाब को लेकर विरोध कर रही हैं। हाल ही में एक बच्ची की तस्वीर और वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उसका हिजाब खिसकने को लेकर या सही तरीके से हिजाब को न पहनने को लेकर उसकी पिटाई कर दी गयी थी।
न जाने कितने लोगों को उन विरोध प्रदर्शनों को लेकर सजा दी जा चुकी है, जिन्होनें महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत के बाद सरकार के विरुद्ध अपनी आवाज उठाई थी। यह आवाज किसी अपराध के लिए नहीं थी, तो फिर फांसी की सजा क्यों सुनाई जा रही है? क्या पढ़ाई या अनिवार्य रूप से सिर न ढकना इतना बड़ा अपराध है कि उसके लिए जान ही ले ली जाए? क्या वास्तव में सार्वजनिक परिदृश्य से महिलाओं को हटाने का यह सारा अभियान है, जिसका आरम्भ अनिवार्य हिजाब से होता है और धीरे धीरे वह उन्हें स्कूलों से घर बैठाने तक आ जाता है?
ऐसा इसलिए क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान सरकार आने के बाद लडकियों के साथ यही हुआ। पहले हिजाब और बुर्के की बात हुई, और उसके बाद धीरे धीरे उन्हें नौकरियों से हटाया गया और फिर उन्हें विश्वविद्यालयों और स्कूलों से हटा दिया गया। पार्क आदि में जाने पर तो वैसे भी रोक लग ही गयी थी।
ऐसा लग रहा है जैसे सार्वजनिक रूप से वह लड़कियों को गायब कर देना चाहते हैं। परन्तु क्या कभी सोचा है कि बिना महिलाओं के कोई भी शहर कैसा लगेगा? कैसे कोई लड़कियों को पढने की इच्छा व्यक्त करने पर जहर देने की कल्पना तक कर सकता है? और कैसे विश्व के एक देश में हो रहे महिलाओं पर इतने बड़े अत्याचार पर भारत की फेमिनिस्ट मौन रह सकती हैं?
कैसे विरोध का स्वर नहीं निकल सकता है?
न जाने कितने प्रश्नों को जन्म देती है ऐसी चुप्पी, न जाने कितनी आशाएं नष्ट करती है ऐसी चुप्पी!
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