अफगानिस्तान में तालिबान ने पिछले साल अगस्त में सत्ता संभालने के बाद से लड़कियों की कॉलेज की पढ़ाई पर रोक लगा दी थी। जबकि लड़कियों की एक बहुत बड़ी तादाद विश्वविद्यालयों में आगे पढ़ने की इच्छुक हैं। अब उन्हें अमेरिकी विश्वविद्यालयों का रास्ता दिखा है। वहां के विश्वविद्यालयों में अफगानी लड़कियां अपना नाम दर्ज करा रही हैं और पढ़ाई पूरी कर रही हैं।
एक आकलन के अनुसार, अफगानिस्तान की लगभग 90 हजार लड़कियां तालिबान के इस फतवे का असर झेल रही हैं और नाराज हैं। इनमें से ऐसी छात्राओं की संख्या बहुत अधिक है जो आगे पढ़ना चाहती हैं। अपनी इसी तमन्ना के चलते उन्होंने अमेरिका के विश्वविद्यालयों में अपने नाम दर्ज कराए हैं। कुछ लड़कियों ने तो तालिबान के आने से पहले अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली थी, लेकिन इस्लामी लड़ाकों की सत्ता ने उनकी डिग्रियां रोक दीं।
ह्यूमन राइट्स वॉच के लिए काम करने वाली एक अधिकारी ने बताया कि लड़कियों की पढ़ाई को और बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। लेकिन उनका यह भी मानना है कि कालेज या विश्वविद्यालय से बाकायदा पढ़ाई पूरी न करने की सूरत में तालिबान इन लड़कियों की डिग्रियों को मान्यता देंगे, इसमें संदेह है।
कुछ लड़कियों ने इंजिनियरिंग की आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन पढ़ना शुरू किया है। एक अमेरिकी विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि का कहना है कि इस साल अभी तक अफगानिस्तान से ऑनलाइन पढ़ने के लिए लगभग छह हजार आवेदन किए जा चुके हैं। जबकि पिछले साल भर में सिर्फ दस हजार आवेदन ही आए थे। रोज दस से ज्यादा लड़कियां आनलाइन पढ़ाई के लिए आवेदन कर ही हैं।
ह्यूमन राइट्स वॉच के लिए काम करने वाली एक अधिकारी ने बताया कि लड़कियों की पढ़ाई को और बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। लेकिन उनका यह भी मानना है कि कालेज या विश्वविद्यालय से बाकायदा पढ़ाई पूरी न करने की सूरत में तालिबान इन लड़कियों की डिग्रियों को मान्यता देंगे, इसमें संदेह है।
ऐसा नहीं है कि अफगानिस्तान में तालिबान के महिला विरोधी फतवों के विरुद्ध आवाज नहीं उठ रही है। पहले भी अनेक महिला संगठन संड़कों पर उतर कर राजनीतिक तौर पर उन्हें भी कोई भूमिका दिए जाने की मांग कर चुकी हैं। लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध के विरुद्ध दुनियाभर से आवाजें उठी हैं। अब एक नए सिरे से महिलाओं ने उन्हें उनके हक दिए जाने की मांग को लेकर काबुल व अन्य शहरों में मोर्चे निकालने शुरू किए हैं। लेकिन ये कितने परिणामकारी होंगे, यह कहना कठिन है।
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