नेपाल में क्या फिर से राजनीतिक धुंधलका छाने वाला है? क्या दो महीने पहले राजनीतिक दांवपेंच के सहारे बनी प्रचंड की सरकार की चूलें हिलने लगी हैं? क्या माओवादी नेतृत्व वाली सरकार बहुमत खोने वाली है? ये कुछ सवाल काठमांडु में आज हर एक की जबान पर हैं। कारण? प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल उर्फ प्रचंड की सरकार में से उपप्रधानमंत्री सहित गठबंधन की एक बड़ी पार्टी के चार मंत्रियों ने बाहर की राह पकड़ ली है और उनकी पार्टी समर्थन खिसकाने के मौके की तलाश कर रही है।
आश्चर्य नहीं कि काठमांडु में तेजी से बदले राजनीतिक मौसम के बीच प्रधानमंत्री प्रचंड ने अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा रद्द कर दी है। प्रधानमंत्री को 3 मार्च को कतर का दौरा तय था लेकिन अब बताया गया है कि सरकार के पर कतर जाने की वजह से कतर के दौरे पर जाने से प्रचंड कतरा गए हैं! मंत्रियों के इस्तीफे और सरकार पर संकट की शुरुआत क्यों हुई?
सरकार में सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी को यह बात नहीं जंची कि गठबंधन में जब इस बारे में सहमति नहीं बनी थी तब फिर प्रधानमंत्री ने ऐसा क्यों किया। इ्रस्तीफा देने वाले चारों मंत्री इसी पार्टी के हैं। पार्टी ने तैश में आकर सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा एक तरह से कर ही दी है।
असल में प्रचंड द्वारा राष्ट्रपति पद के लिए नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार रामचंद्र पौडेल को समर्थन देने की घोषणा की गई थी। सरकार में सहयोगी पार्टी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी को यह बात नहीं जंची कि गठबंधन में जब इस बारे में सहमति नहीं बनी थी तब फिर प्रधानमंत्री ने ऐसा क्यों किया। इ्रस्तीफा देने वाले चारों मंत्री इसी पार्टी के हैं। पार्टी ने तैश में आकर सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा एक तरह से कर ही दी है।
हालात कितने गंभीर हो चले हैं कि 3 मार्च से कतर में सबसे कम विकास वाले देशों के पांचवें सम्मेलन में प्रचंड अब भाग लेने से मुकर गए हैं। प्रधानमंत्री का मीडिया का काम देखने वाले सूर्य किरण शर्मा का कहना है कि महत्वपूर्ण राजनीतिक गतिविधियों की वजह से प्रचंड ने कतर दौरा रद्द कर दिया है। उल्लेखनीय है कि नेपाल में राष्ट्रपति चुनाव 9 मार्च को होने जा रहे हैं। प्रचंड ने अचानक फैसला लिया और सबको हैरान करते हुए इस पद के लिए गठबंधन के उम्मीदवार का समर्थन करने की जगह नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार को अपने समर्थन की घोषणा कर दी। यह वह घोषणा है जिसने काठमांडु में राजनीतिक भूचाल ला दिया है।
नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार पौडेल के समर्थन में अनेक राजनीतिक दल उतरे हैं—सीपीएन-माओवादी, लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, नागरिक उनमुक्ति पार्टी और राष्ट्रीय जनमोर्चा। लोगों को संदेह है कि आज जैसे हालात हैं, उनमें यही लगता है कि कहीं सत्तारूढ़ गठबंधन में दार पड़ सकती है।
पेंच यह है कि पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी भी प्रचंड सरकार के साथ गठबंधन में प्रमुख दल की भूमिका में है। केपी शर्मा ओली ने गठबंधन की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए सुबास नेमबांग का नाम घोषित किया था। परन्तु प्रचंड ने नेमबांग के लिए नहीं, अपना समर्थन नेपाली कांग्रेस के पौडेल को देने की घोषणा कर दी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सत्तारूढ़ गठबंधन में दरार पड़ती है कि नहीं? गठबंधन बना रहा तो कितने दिन बना रह पाएगा?
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