इंटरनेट से होगा साहित्य अकादमियों का विस्तार

भारतीय साहित्य को इंटरनेट का उपयोग कर विस्तार की ओर बढ़ना होगा, ऐसी परियोजनाएं साहित्य की रचना, संरक्षण तथा वितरण की दृष्टि से अद्भुत संभावनाएं समेटे हैं

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बालेन्दु शर्मा दाधीच

भारत कोश को भारत पर आधारित हिंदी विकी परियोजना के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें साहित्य को थोड़ी अधिक अहमियत दी गई है।

इंटरनेट की एक अच्छी उपयोगिता यह है कि इसका प्रयोग साहित्य के दस्तावेजीकरण के लिए भी किया जा सकता है, साहित्य को लोकप्रिय बनाने के लिए भी और लेखकों को पहचान देने के लिए भी। जैसे कविता कोश ने कविताओं पर ध्यान केंद्रित किया और गद्य कोश ने गद्य पर। इसी तरह भारत कोश को भारत पर आधारित हिंदी विकी परियोजना के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें साहित्य को थोड़ी अधिक अहमियत दी गई है। यदि बड़ी साहित्यिक संस्थाएं, जो हिंदी प्रेमियों की तरह स्वांत:सुखाय आधार पर कार्य नहीं कर रही हैं बल्कि उनका उद्देश्य ही साहित्य तथा भाषा को आगे बढ़ाना है, इस तरह की पहल करें तो ऐसी परियोजनाएं अधिक बड़े स्तर पर तथा अधिक सुनियोजित स्तर पर संचालित भी की जा सकती हैं और उनका अस्तित्व भी सुनिश्चित किया जा सकता है। आम हिंदी जन को तो लेखकों तक पहुंचने से लेकर कॉपीराइट तक की अनेकों चुनौतियों से जूझना पड़ता है। आधिकारिक अकादमियां, जिनका लेखकों से सीधा जुड़ाव है, शायद अधिक सुगमता से ऐसे कार्य कर सकें।

इस सिलसिले को कविताओं तथा गद्य साहित्य से आगे बढ़कर अनेक माध्यमों तक ले जाया जा सकता है, जैसे कि आनलाइन लाइब्रेरी, वीडियो संकलन, आडियो रूप में सामग्री को सहेजना आदि। संभवत: आपने प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग (gutenberg.org) के बारे में सुना हो जहां साठ हजार से ज्यादा किताबें पीडीएफ रूप में नि:शुल्क डाउनलोड के लिए उपलब्ध हैं। इसमें बहुत सारा मूल्यवान वैश्विक साहित्य है। प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग उन किताबों को इकट्ठा करके उपलब्ध कराता है जिनके कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो गई है। यहां रिचर्डसन की ‘पामेला’ से लेकर ‘द अमेरिकन मिशनरी’ (1879)और चार्ल्स डिकेन्स का ‘ग्रेट एक्सपेक्टेशन’ भी उपलब्ध है। किशारी मोहन गांगुली का महाभारत का उत्कृष्ट अंग्रेजी अनुवाद डिजिटल स्वरूप में यहां मिल जाएगा। इसी तरह इंटरनेट पब्लिक लाइब्रेरी ipl.org) पर पांच लाख से अधिक साहित्यिक रचनाएं उपलब्ध हैं- निबंध, समीक्षा तथा अन्य स्वरूपों में। ऐसी परियोजनाएं वैश्विक साहित्य की रचना, संरक्षण तथा वितरण की दृष्टि से अद्भुत संभावनाएं समेटे हैं।

हमें इस यात्रा को और भी आगे बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि भारत में इंटरनेट का आगमन हुए 27 साल बीत चुके हैं। अठारह वर्ष की वयस्क आयु पार करके हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और यह वह उम्र है, जब इंसान बड़े काम करता है।

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में आधुनिक यूनानी साहित्य के प्रोफेसर ग्रेगरी जस्डानिस ने साहित्य और इंटरनेट के इस मेलजोल पर बड़ी सुंदर टिप्पणी की है- ‘विश्व टेक्स्ट (पाठ) है। मैलार्म और फ्लाउबर्ट ने उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में इस बात का जिक्र किया था और निकट इतिहास में देरिदा ने भी यह बात कही है। लेकिन अब हम कह सकते हैं कि (यह) विश्व (खुद) साहित्य है। इंटरनेट के जरिए हमारी दुनिया साहित्यिक हो रही है। इंटरनेट के रूप में, वास्तव में हम लोगों को साथ लाने और उनके बीच समझबूझ विकसित करने की साहित्य की क्षमताओं का अद्भुत मिलन देख रहे हैं। साहित्य अन्य लोगों के साथ जुड़ने की हमारी कामना को अभिव्यक्त करता है और इंटरनेट, वास्तव में, ऐसे ही जुड़ाव का मार्ग प्रशस्त करता है।’

वैश्विक स्तर पर साहित्य तथा उसके चाहने वालों का रिश्ता अनेक रूपों में इंटरनेट के जरिए साकार होता दिखता है और प्रश्न छोड़ जाता है कि क्या भारत में भी हम ऐसा ही कुछ नहीं कर सकते। हमारी बहुत सी साहित्यिक संस्थाएं भी कुछ हद तक इंटरनेट से जुड़ी हैं लेकिन अब हमें इस यात्रा को और भी आगे बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि भारत में इंटरनेट का आगमन हुए 27 साल बीत चुके हैं। अठारह वर्ष की वयस्क आयु पार करके हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और यह वह उम्र है, जब इंसान बड़े काम करता है।

मैं यहां बाहर होने वाले एकाध प्रयोगों का उल्लेख करना चाहूंगा। पोयट्स.आर्ग आपको रोजाना एक अच्छी कविता ईमेल के जरिए भेजता है। सेन्टर आफ फिक्शन (centeroffiction.org) पर भी ईमेल के जरिए जुड़े रहने की सुविधा है जो अपनी गतिविधियों के विवरण, प्रकाशनों की जानकारी, पाठकों के लिए उपलब्ध अवसरों आदि के बारे में सामग्री नियमित रूप से आपके ईमेल इनबॉक्स तक पहुंचाता है।

वह एक और उपयोगी गतिविधि चलाता है जिसके तहत आनलाइन बिडिंग होती है। किसलिए? लेखकों के साथ रात्रिभोज करने के लिए, उनकी तस्वीरें पाने के लिए, एक शाम उनके साथ बिताने के लिए आदि। जैसे जैकलीन वुडसन के साथ न्यूयॉर्क में अकेले में रात्रिभोज के लिए लगभग 1.80 लाख रुपये की बोली इस समय लगी है। यह धन लेखकों को जाता है और संभव है कि उसमें से थोड़ा हिस्सा साहित्यिक संस्था के हिस्से में भी आता हो। लेकिन मूल बात यह है कि इंटरनेट बड़ी अद्भुत पहलों तथा परियोजनाओं को संचालित करने में सहयोगी सिद्ध हो रहा है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं)।

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