भारत के स्वाधीनता प्राप्ति संग्राम में उत्तराखंड राज्य का योगदान किसी भी दृष्टि से कम नहीं है। भारत के उत्तर दिशा में स्थित सुदूर विकट भौगोलिक परिस्थितियों वाले पहाड़ी राज्य का नाम है उत्तराखण्ड। उत्तराखण्ड राज्य में अनेकों महान विभूतियों ने जन्म लिया है, जो आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण संरक्षण, कला, साहित्य, आर्थिक, देश की रक्षा एवं सुरक्षा जैसे अनेकों महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विश्वप्रसिद्ध हुए हैं। देश की इन्हीं महान विभूतियों की कतार में स्थान प्राप्त करने वाले एक विख्यात प्रतिष्ठित व्यक्ति राम सिंह धौनी थे। रामसिंह धौनी एक नि:स्वार्थ जन सेवक, सरल, सज्जन और साधु प्रकृति के बेहद राष्ट्रभक्त व्यक्ति थे।
भारत के राष्ट्रीय आंदोलनों के प्रमुख नारों में से एक “जय हिंद” का उद्घोष राम सिंह धौनी के द्वारा किया गया था। उत्तराखण्ड राज्य के लोगों को राष्ट्रीय आंदोलन के लिए जागरूक करने, प्रेरणा देने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। रामसिंह धौनी ने ही सर्वप्रथम सन 1921 में “जयहिंद” का राष्ट्रवादी उदघोष किया था। रामसिंह उत्तराखण्ड राज्य के लोगों को देश आजादी के महत्वपूर्ण आंदोलन में भाग लेने के लिए सदैव प्रेरित करते रहे। अपने इस राष्ट्रवादी प्रयास हेतु वह जिस भी व्यक्ति को पत्र लिखते थे, तो उस पत्र में सबसे ऊपर “जय हिंद” अवश्य लिखते थे। उन्होंने आजादी के आंदोलन के उस समयकाल में उत्तराखण्ड राज्य के सालम क्षेत्र समेत विभिन्न क्षेत्रों में जाकर पहाड़ी युवाओं में देशप्रेम की अलख जगाई थी। वास्तव में रामसिंह धौनी ही वह उत्साही नौजवान थे, जिसने उत्तराखण्ड के नवयुवकों में देश की आजादी के लिए जोश भरा था।
राम सिंह धौनी का जन्म 24 फरवरी सन 1893 को ग्राम तल्ला बिनौला, जैंती तहसील, अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड में हुआ था। रामसिंह ने प्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा से प्राप्त की थी। राम सिंह बचपन से ही पढ़ने लिखने के विषय में बेहद रुचि रखते थे। सन 1911 में उन्होंने मिडिल की परीक्षा पास की थी, जिसमें वह प्रथम श्रेणी से पास हुए थे। उसी समयकाल में देशप्रेम जाग्रत करने और राष्ट्रभाषा की उन्नति हेतु उन्होंने “छात्र सम्मेलन सभा” की स्थापना की थी। सन 1914 में रामसिंह का सम्पर्क स्वामी सत्यदेव से हुआ था और वे स्वामी सत्यदेव द्वारा राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार–प्रसार हेतु स्थापित “शुद्ध साहित्य समिति” और “समर स्कूल” नामक संस्थाओं के सक्रिय सदस्य बन गये थे। जीवन में अत्यधिक आर्थिक परेशानियों के होते हुए भी उन्होंने सन 1919 में क्रिश्चियन कॉलेज इलाहाबाद से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। रामसिंह विद्यार्थी जीवन से ही सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार व महान देशप्रेमी बन गये थे। इलाहाबाद से अल्मोड़ा वापस लौटने के उपरांत तत्कालीन कुमाऊँ क्षेत्र के कमिश्नर विंढम रामसिंह की तीव्र बुद्धि से प्रभावित होकर उन्हें नायब तहसीलदार नामजद करना चाहते थे, रामसिंह ने उक्त आमंत्रण को सहजता से अस्वीकार कर दिया था।
सन 1920 में रामसिंह राजस्थान चले गये थे, वहां उन्होंने बीकानेर के राजा के सूरतगढ़ स्कूल में एक वर्ष तक अध्यापन कार्य किया था। सूरतगढ़ में राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार-प्रसार के उपरांत वह जयपुर रियासत में चले गये और जयपुर के फतेहपुर में रामचन्द्र नवेटिया हाई स्कूल में पहले सहायक तदुपरांत प्रधानाध्यापक के पदों पर कार्य करते रहे। फतेहपुर में जनसाधारण में समाज सुधार के कार्यों का प्रसार तथा देशप्रेम एवं राष्ट्रीयता की भावना का प्रचार–प्रसार करने के उपरांत रामसिंह धौनी सन 1922 में नेपाल की बजांग रियासत में चले गए। नेपाल में उन्होंने राजकुमारों को पढ़ाया और उन्हें हिन्दी प्रेमी बनाया। राम सिंह की कार्य कुशलता एवं अध्यापन कला से प्रसन्न होकर नेपाल में बजांग के राजा ने उन्हें एक तलवार भी भेंट की थी। सन 1922 के अन्त में राम सिंह धौनी वापस उत्तराखण्ड राज्य के सालम क्षेत्र आ गए। अपनी कर्मभूमि सालम में वह शिक्षा के प्रसार, सरकार की दमन नीति के विरोध के कार्यों में जुट गए। रामसिंह की कार्य क्षमता अद्भुत थी, अपनी कार्यकुशलता के बल पर वह अल्मोड़ा जिला बोर्ड में पहले सदस्य बनने के बाद मंत्री एवं अध्यक्ष भी बने। सन 1925 में उन्हें साप्ताहिक समाचार पत्र शक्ति का सम्पादक नियुक्त किया गया था।
राम सिंह धौनी के सम्पादक रहते समयकाल में सन 1925-26 में शक्ति समाचार पत्र के सम्पादकीय लेखों में मुख्यतः अछूतोद्धार, राष्ट्र संगठन, राष्ट्रभाषा-हिन्दी के उत्थान, घरेलू उद्योग तथा निःशुल्क शिक्षा पर विशेष जोर देने की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती रही है। निरन्तर देश सेवा, मातृभाषा का कार्य करते रहने के कारण सन 1926 के पश्चात उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा था। फलत: वे अपने घर सालम में ही रहने लगे। सालम में उन्होंने जैंती नामक स्थान पर एक हिन्दी मिडिल स्कूल और बांजधार में एक औषधालय खुलवाया। बांजधार में उन्होंने एक पुस्तकालय भी खोला था, जिसमें देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत पुस्तकें संग्रहित की गईं थी। सन 1928 में राम सिंह धौनी ने सालम क्षेत्र में ब्रिटिश सरकार की ओर से लगान बढ़ाने के लिए होने वाले बन्दोबस्त के विरोध में एक विशाल जनसभा आयोजित की थी। सन 1929 में वह अपने शुभचिंतकों के आग्रह पर बम्बई, महाराष्ट्र चले गए। वहां भी उन्होंने उत्तराखण्ड राज्य के बम्बई में निवास करने वाले कुमाउंनियों को संगठित कर उनमें राष्ट्रीय जागृति की भावना का संचार किया था। सन 1930 में बम्बई में ही राम सिंह धौनी का देहावसान हुआ था।
भारतवर्ष में “जयहिन्द” शब्द का उद्घोष सर्वप्रथम राम सिंह धौनी ने ही किया था, वह अपने पत्रों में “जयहिन्द” शब्द का प्रयोग अनिवार्य रूप से करते थे। सन 1955 में उनकी स्मृति में सालम में स्थापित किए गए बलिदानी स्तम्भ पर भी “जयहिन्द” शब्द को अंकित किया गया। सालम की जनता को राम सिंह धौनी से अगाध स्नेह था, अतएव उनकी पावन स्मृति में सालम में सन 1935 में राम सिंह धौनी आश्रम की स्थापना की गई, जो कालांतर में सालम की सन 1942 की जनक्रांति का केन्द्र स्थल बन गया था। राम सिंह धौनी के अथक प्रयास से बनी संस्थाएं वर्तमान समय में बेहद प्रगति कर चुकी हैं। जैंती का मिडिल स्कूल वर्तमान में इण्टर कॉलेज तथा बाजधार का तत्कालीन औषधालय वर्तमान में उच्चस्तरीय राजकीय चिकित्सालय बन चुके हैं। तत्कालीन बम्बई और वर्तमान मुम्बई में उनके द्वारा स्थापित “हिमालय पर्वतीय संघ बम्बई” आज भी जीवित और संचालित अवस्था में है।
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