जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक कैलाश निनामा ने कहा कि ‘डी-लिस्टिंग’ केवल आरक्षण से जुड़ा विषय नहीं है, बल्कि जनजातीय समाज के स्वाभिमान का विषय है। यह जनजातीय संस्कृति के संरक्षण और अस्तित्व की चिंता से जुड़ा हुआ विषय है।
गत दिनों भोपाल में ‘डी-लिस्टिंग’ की मांग को लेकर एक गर्जना महारैली हुई। इसमें वक्ताओं ने मांग की कि जो लोग जनजातीय समाज की संस्कृति और पूजा-पद्धति से अलग हो गए हों, उन्हें नौकरियों, छात्रवृत्तियों में आरक्षण और शासकीय अनुदान का लाभ न दें। महारैली में राज्य के 40 जिलों से आए हजारों लोगों ने हिस्सा लिया। इसका आयोजन ‘जनजाति सुरक्षा मंच’ ने किया था।
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जनजाति नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांग नहीं मानी गई तो वे दिल्ली की ओर भी बढ़ेंगे। जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. राजकिशोर हांसदा ने कहा कि कार्तिक उरांव की पहल पर संयुक्त संसदीय समिति बनी थी और उसने अनुशंसा की थी कि जो प्रावधान 341 में हैं, वही प्रावधान 342 में भी होने चाहिए। इसके बावजूद अभी तक इस पर कुछ नहीं हुआ है।
जनजातीय सुरक्षा मंच के क्षेत्रीय संगठन मंत्री कालू सिंह मुजाल्दा ने कहा कि कन्वर्टेड व्यक्ति को जनजाति के अधिकार नहीं मिलने चाहिए। ऐसे लोग, जो जनजातीय कोटे से नौकरी में आए और फिर वनवासी परंपराओं-पूजा पद्धतियों को छोड़ दिया, उन्हें वनवासियों की सूची से हटाएं। यानी ‘डी-लिस्टिंग’ की जाए। उन्होंने कहा कि गांव-गांव में जाकर पंच से लेकर सांसदों और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलकर हमने समर्थन की मांग की है।
आज जनजातीय समाज और पूरा देश जानना चाहता है कि आखिर वह क्या वजह थी कि जो सांसद देश की 85 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व कर रहे थे उनके समर्थन के बाद भी यह विधेयक आज भी संसद में लंबित है। इस पर संसद को पुन: विचार करके इस विधेयक को पारित करना चाहिए। हमें ‘डी-लिस्टिंग’ के लिए पूरे देश का समर्थन एवं सहयोग चाहिए। रैली में जनजातियों ने साफ कहा- ‘जो भोलेनाथ का नहीं है, वह मेरी जात का नहीं है।’
महारैली में जनजाति सुरक्षा मंच के उपाध्याक्ष सत्येंद्र सिंह ने कहा कि वनवासियों के लिए चल रही योजनाओं का लाभ वे लोग भी ले रहे हैं, जो कन्वर्ट हो चुके हैं, यह गलत है। ईसाई वनवासी नहीं हैं, क्योंकि वे उन परंपराओं को नहीं मानते हैं, जिन्हें वनवासी मानते हैं। हमारा समाज प्रकृति पूजक हैं। हम बलि देते हैं, पंचभूतों की पूजा करते हैं, लेकिन ईसाई ऐसा नहीं करते। इसलिए ईसाई बन चुके लोगों
को वनवासियों के नाम पर मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए।
जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक कैलाश निनामा ने कहा कि ‘डी-लिस्टिंग’ केवल आरक्षण से जुड़ा विषय नहीं है, बल्कि जनजातीय समाज के स्वाभिमान का विषय है। यह जनजातीय संस्कृति के संरक्षण और अस्तित्व की चिंता से जुड़ा हुआ विषय है। कार्तिक उरांव ने कांग्रेस सांसद रहते हुए 1967 में इस विषय पर चिंता जताई थी।
आज जनजातीय समाज और पूरा देश जानना चाहता है कि आखिर वह क्या वजह थी कि जो सांसद देश की 85 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व कर रहे थे उनके समर्थन के बाद भी यह विधेयक आज भी संसद में लंबित है। इस पर संसद को पुन: विचार करके इस विधेयक को पारित करना चाहिए। हमें ‘डी-लिस्टिंग’ के लिए पूरे देश का समर्थन एवं सहयोग चाहिए। रैली में जनजातियों ने साफ कहा- ‘जो भोलेनाथ का नहीं है, वह मेरी जात का नहीं है।’
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