महासती अनुसुइया पुरा भारतीय इतिहास की ऐसी महान नारी पात्र हैं जिन्होंने अपनी महान तपोशक्ति के बल पर त्रिदेवों ( ब्रह्मा, विष्णु व महेश) को; जो सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार सृष्टि की उत्त्पत्ति, पालन व संहार की आधारभूत शक्ति माने जाते हैं; को अबोध शिशु बना दिया था। इस घटना के पीछे की रोचक व प्रेरक अंतर्कथा से प्राय: हर हिन्दू धर्मावलम्बी भली-भांति परिचित है। इसी तरह वैदिक काल की एक अन्य महान नारी पात्र हैं सावित्री; जो अपने बुद्धि कौशल व प्रचंड संकल्पबल के बलबूते अपने पति के प्राण मृत्यु के मुख से छुड़ा लायी थीं। उस घटना की स्मृति में आज भी भारतीय सुहागिनें वट सावित्री का व्रत रखती हैं। आदि शक्ति मां पार्वती ने भी अपने दुर्धर्ष तप के बल पर काम दहन करने वाले आदियोगी शिव को पति रूप में पाया था। पत्नी सुकन्या की प्रचंड तप साधना के बल पर जरा वृद्ध च्यवन ऋषि को पुनर्यौवन प्राप्त हुआ था।
बृहदारण्यक उपनिषद् में वर्णित मिथिला के राजा विदेहराज की जनसभा में अपने समय के सर्वोच्च तत्ववेत्ता याज्ञवल्क्य का परम विदुषी ब्रह्मवादिनी गार्गी के साथ जीवन और प्रकृति जैसे गूढ़ विषय पर हुआ शास्त्रार्थ भारतीय नारी की विद्वता को प्रतिष्ठित करने वाला हिन्दू दर्शन की अनमोल ज्ञान संपदा माना जाता है। वैदिक नारी की विद्वता का ऐसा ही एक अन्य प्रसिद्ध उदाहरण जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के जीवन से जुड़ा है; जब देश के चारो कोनों – बदरिकाश्रम, श्रृंगेरी पीठ, द्वारिका शारदा पीठ और पुरी गोवधर्न पीठ की स्थापना करने वाले शंकराचार्य एक स्त्री के आगे नतमस्तक हुए थे। वह विद्वानस्त्री थीं अपने समय के प्रकांड संस्कृत विद्वान मण्डन मिश्र की धर्मपत्नी उभय भारती। प्रारंभ में उन्होंने शंकराचार्य एवं मण्डन मिश्र के मध्य हुए शास्त्रार्थ में निर्णायक की भूमिका निभाई लेकिन जब उनके पति उस शास्त्रार्थ में शंकराचार्य से हार गये तो वे खुद को पति की अर्धांगिनी का तर्क देकर स्वयं उनसे शास्त्रार्थ को प्रस्तुत हुईं और काम शास्त्र से जुड़े प्रश्न पूछ कर शंकराचार्य को निरुत्तर कर दिया। इस पर बाल ब्रह्मचारी शंकराचार्य ने नतमस्तक होकर उन्हें प्रणाम किया और देवी भारती से कुछ समय मांगा और परकाया में प्रवेश करके रति ज्ञान प्राप्त कर दोबारा भारती के साथ शास्त्रारर्थ कर उन्हें परास्त किया। हिन्दू धर्म को छोड़ नारी जाति का ऐसा गौरवशाली रूप दुनिया के किसी अन्य धर्म में नहीं मिलता।
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