उत्तराखंड के जनजाति आरक्षित क्षेत्र जौनसार बावर में मुस्लिम गुर्जर समुदाय की स्थाई घुसपैठ हो रही है। इस घुसपैठ के पीछे देवबंद के जमात रहनुमा हैं, जिनके गिरफ्त में गुर्जरों की नई पीढ़ी आ चुकी है। जौनसार बावर में सामाजिक संस्कृति के संरक्षण की वजह से इस क्षेत्र में बाहरी लोग भूमि नहीं खरीद सकते, किंतु यहां अब मुस्लिम गुर्जर धीरे-धीरे स्थाई निवासी बनते जा रहे हैं। यह जनजाति क्षेत्र पछुवा देहरादून से लेकर उत्तरकाशी जिले की यमुनाघाटी वाला है और यमुना और टोंस नदी के उस पार हिमाचल प्रदेश है।
इस मामले में विकास नगर के रुद्र सेना संगठन ने राज्यपाल और अन्य उच्च अधिकारियों को ज्ञापन भेजकर ध्यान आकृष्ट करवाया है कि यमुना घाटी में मुस्लिम गुर्जरों के यहां जमात के नेताओं का आना-जाना पिछले कई महीनों से बढ़ गया है, जिसके बाद से वन मुस्लिम गुर्जरों की युवा पीढ़ी की हरकतें संदेहजनक हो गई हैं। यह समुदाय पहले अपने भैसों को चराने के लिए यमुना घाटी से होता हुआ सुदूर पहाड़ों तक आता-जाता था। जिन गावों के बाहर इनके पड़ाव होते थे, वहां इन्हें पूरा सम्मान भी मिलता था। माना जाता है कि यह समुदाय शुद्ध शाकाहारी होता है, इसलिए इन्हें जंगल में आने जाने के लिए कोई रोक-टोक नहीं थी। ये वन्यजीव को संरक्षित रखते थे, किंतु समय बदलने के साथ-साथ इनकी नई पीढ़ी ने पशु पालन छोड़कर नए धंधे अपना लिए हैं और कुछ लोग अपराधों में भी लिप्त पाए गए हैं।
उत्तराखंड में बढ़ती मुस्लिम आबादी, वन भूमि, सड़क किनारे खुलेआम हो रहा मजार जिहाद
जानकारी के मुताबिक तहसील त्यूनी के कस्बे हटाल हैड्स, रडु, चाँदनी- त्यूनी मझोग, होल, खुनीगाड, गुरुयाना, धातरा मेंन्द्रथ, पुरटाइ, कोटी बावर, सुनीर, देऊड- चाती, सुकेइ, नेवल- मुडाली- जाखा चांटी- क्षेत्र में मुस्लिम वन गुर्जर समुदाय की घुसपैठ हो चुकी है। इनमें बहुत से कस्बे ऐसे हैं, जहां इन लोगों के नाम जमीन तक खतौनियों में चढ़ी हुई है। करीब सात हजार वन गुर्जरों के नाम भी मतदाता सूची में आ गए हैं।
रुद्र सेना के लोगों का कहना है कि ये मुस्लिम गुर्जर यहां अपने पशुओं को चराने के लिए राजाजी पार्क से चकराता होते हुए त्यूनी तक जाते थे। रास्ते के गांवों के पास में डेरा डालते थे, लेकिन अब पिछले कुछ सालों से ये मुस्लिम गुर्जर जौनसार बावर के चकराता, कालसी तथा पछवादून आदि स्थानों पर एक साजिश के तहत बस्ते जा रहे हैं। शासन-प्रशासन की घोर लापरवाही तथा राजनीतिक संरक्षण में जमात और गजवा-ए-हिंद के उद्देश्य को पूरा करने में ये उनकी योजना को पूरा करने में लगे हुए हैं।
जानकारी के मुताबिक देवबंद के जमाती मुस्लिम संगठन, वन गुर्जरों के माध्यम से जौनसार बावर में जगह-जगह सामाजिक और वन विभाग की जमीनों पर अवैध कब्जे कर स्थाई रूप से बस्ते जा रहे हैं। इन गुर्जरों के मूल निवास जैसे तमाम सरकारी दस्तावेज तैयार करने में कांग्रेस के कुछ नेताओं की संदिग्ध भूमिका रही है। जिसने अब पूरे जनजातीय क्षेत्र को चिंता में डाल दिया है। मुस्लिम गुर्जरों का कोई स्थाई ठिकाना नहीं होता। अब इनके दस्तावेज, जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर के बनते जा रहे हैं। यहां तक की आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, बीपीएल कार्ड, स्थाई निवास बनाकर दे दिए गए हैं। जिस जनजातीय क्षेत्र को संस्कृति के संरक्षण के लिए संरक्षित किया गया था, वहां अब ये सरकारी योजना का लाभ ले रहे हैं, यहां तक की हटाल सैंज के एक प्रधान ने तो वन गुर्जर को अनुसूचित जनजाति में दिखाकर अटल आवास तक दे दिया है। वोट की लालच में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं, जहां जौनसार बावर में बाहरी लोग ज़मीन नहीं खरीद सकते। वहीं ये लोग अपने दस्तावेजों के आधार पर जमीन खरीद कर आवास बनाकर रह रहे हैं।
जमीन कब्ज़ाने की फिराक में मुस्लिम कट्टरपंथी
कुछ समय पहले संगीता नौटियाल नाम की महिला द्वारा हनोल त्यूनी में मकान बनाए जाने पर गढ़वाल कमिश्नर महोदय द्वारा उक्त महिला पर मुकदमा एवं भारी भरकम जुर्मान लगाया गया था, किंतु मुस्लिम गुर्जरों की हरकतों पर कोई नजर नहीं डाल रहा। बताया जा रहा है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के संरक्षण में ये सब हो रहा है। जानकारी के मुताबिक त्यूनी चांदनी रोड के निकट वन गुर्जर तथा कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी कई बीघा जमीन को कब्ज़ाने और कब्रिस्तान बनाने की फिराक में हैं। इस वन भूमि को समतल कर मुस्लिम गुर्जर समुदाय ने अपनी बैठकें यहां करनी शुरू कर दी है।
रुद्र सेना के प्रमुख ने राज्यपाल को भेजा ज्ञापन
जानकारी के मुताबिक मुस्लिम वन गुर्जर समुदाय पहले खानाबदोश हुआ करता था। अब उनकी नई पीढ़ी पशु पालन नहीं कर रही। ये पीढ़ी अब पशुधन का काम छोड़ व्यवसाय कर रहे हैं। कोई खेती-बाड़ी, कोई गाड़ी खरीद कर कोई दुकान आदि चला रहे हैं। गुर्जर का बहाना बनाकर यहां के जंगलों का दोहन कर रहे हैं और क्षेत्र में मुस्लिम कट्टरवाद फैलाने का काम करते हैं। रुद्र सेना के प्रमुख राकेश तोमर ने इस आशय का एक ज्ञापन उत्तराखंड के राज्यपाल को एसडीएम के माध्यम से भेजा है, जिसमें उनके संगठन द्वारा भविष्य के लिए पैदा हो रहे खतरों से अवगत कराया गया है।
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