शब्द ही भारत की आत्मा और संस्कृति को परिभाषित करता है। उन्होंने कहा, स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि हमारी संस्कृति आदिकाल से ज्ञान पर आधारित रही है।
कब्जा दिल्ली में कुछ मजहबी नेता अनावश्यक बातें कहकर देश का माहौल बिगाड़ रहे थे, तब वाराणसी में जुटे देशभर के साहित्यकार, पत्रकार, लेखक, फिल्मकार आदि शब्द साधना कर रहे थे। बात हो रही है काशी शब्दोत्सव की। इसका उद्घाटन केरल के राज्यपाल डॉ. आरिफ मोहम्मद खान और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील आंबेकर ने किया। शब्दोत्सव में डॉ. आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि गुरु रविंद्र नाथ ठाकुर ने शब्द के महत्व के बारे में कहा था कि भारत की संस्कृति ज्ञान पर आधारित है।
शब्द ही भारत की आत्मा और संस्कृति को परिभाषित करता है। उन्होंने कहा, स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि हमारी संस्कृति आदिकाल से ज्ञान पर आधारित रही है। श्री सुनील आंबेकर ने कहा कि ज्ञान भ्रम को दूर करता है और काशी शब्दोत्सव इसमें मार्गदर्शक की भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि भारत की सभ्यता-संस्कृति को देखने से मालूम होता है कि यहां की समानता को समझना और एकता के निर्माण की प्रक्रिया पर चर्चा जरूरी है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के विकास के लिए हर संभव प्रयास करते रहना होगा।
इस अवसर पर पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने बनारसी भाषा-शैली और मौज-मस्ती के उदाहरण देते हुए काशी शब्दोत्सव को एक मील का पत्थर बताया। ‘मठ मंदिरों व भारतीय समाज’ सत्र में मुंबई के वरिष्ठ लेखक संदीप सिंह ने कहा मठ-मंदिरों ने ही भारत को एकता के सूत्र में जोड़ा है। देश में चावल की कुछ प्रजातियां प्रसाद के कारण बची हुई हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पांडेय ने कहा कि काशी में पूरा भारत प्रतिबिंबित होता है। आज समन्वय का युग है, जिसमें संवाद जरूरी है। ‘अध्यात्म, धर्म और विज्ञान’ सत्र में मिथलेश नंदिनी शरण ने कहा कि हमारा अधिकांश जीवन स्वभाव नहीं, प्रभाव के अनुशासन में जिया जाता है। धर्म का तात्पर्य प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर लेकर जाना है। प्रो. संजीव शर्मा ने कहा कि हम जिस अमृतकाल में हैं, वहां हम संप्रेषक हो सकते हैं। हमारी संस्कृति प्राचीन और सभ्य है, इसलिए विश्व के लोग भारत की ओर देख रहे हैं।
‘तकनीक की सीमा क्या हो?’ इस सत्र में सुशांत श्रीवास्तव ने कहा कि काशी ज्ञान-विज्ञान की धरती है। यह वेदांत का केंद्र है। वेदांत दर्शन बताता है कि द्रव्य के अंदर ऊर्जा कहां से आई। आनंद का प्रारंभ इंसान के भीतर से आता है, जहां विज्ञान-तकनीक झुक जाती है। लेखिका नीरजा माधव ने कहा कि तकनीक का प्रयोग मानव कल्याण के लिए ही किया जाए, तो अच्छा होगा। ‘रामायण और महाभारत के शाश्वत मूल्य और जीवन दर्शन’ सत्र में प्रो. नीरा मिश्रा ने कहा कि सनातन पुरातन नहीं है। इसे पहचानने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि धर्म सत्य है, कर्म है, सत्ता है और कर्ता भी है। कवि मनोज मुंतशिर ने कहा कि हिंदू समाज को बांटने की साजिश हो रही है। सनातन हिंदू समाज के प्रेरक गोस्वामी तुलसीदास पर आरोप लगाए जा रहे हैं, जबकि उन्होंने किसी समाज, किसी वर्ग के लिए ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है। गोस्वामी तुलसीदास पर आरोप लगाने वाले शिक्षा की दृष्टि से शून्य हैं। उन्होंने नगरों के नाम बदले जाने को सही ठहराते हुए कहा कि आताताइयों ने ये नाम बदले थे, जिन्हें ठीक करना जरूरी है।
‘शिव और शक्ति : अभिव्यक्ति के विविध रूप’ सत्र में डॉ. सुचेता परांजपे ने कहा कि शक्ति का अर्थ है ऊर्जा और इसके विविध रूप हैं। ऋग्वेद का उदहारण देते हुए उन्होंने कहा कि एक समय था जब कन्या को वेदश्री कहा जाता था और ये वेदश्री पुरुषों के समकक्ष सभी कार्य करती थी। लेखिका सोनाली मिश्रा ने कहा कि आज की नारी सशक्त है। अब वह कमजोर नहीं और शक्ति का रूप है। शिव की आराधना ही उन्हें शक्ति देती है। पद्मश्री डॉ. रजनीकांत ने कहा कि शिव और शक्ति को कला और संगीत के दृष्टिकोण से भी देखा जाता है। काशी को भगवान शिव ने स्वयं बसाया है, जहां शांति और आनंद एक साथ हैं, शिव और शक्ति एक साथ हैं।
हमारी संस्कृति आदिकाल से ज्ञान पर आधारित रही है -स्वामी विवेकानंद
‘भक्ति साहित्य, पराधीन सपनेहु सुख नाही’ सत्र में नंद किशोर पांडेय ने कहा कि भक्ति साहित्य ने देश को एक बनाने में मदद की है। भक्ति साहित्य ने ही ईश्वर को जानने का अवसर दिया है। मिथलेश नंदनी शरण ने कहा कि संस्कृतियां भाषा में ही सांस लेती हैं। भाषा के स्तर से ही किसी भी देश, उसकी संस्कृति और उसकी भव्यता को समझा जा सकता है। पद्मश्री स्वामी शिवानंद महाराज ने 127 वर्ष की उम्र में काशी शब्दोत्सव में पहुंच कर उपस्थित लोगों को अपना आशीर्वाद दिया।
‘भारतीय इतिहास लेखन की विसंगतियां’ सत्र को संबोधित करते हुए साप्ताहिक आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि विसंगति इतिहास लेखन में नहीं, बल्कि ‘हिस्ट्री राइटिंग’ में है, क्योंकि इतिहास को हम लोगों ने ‘हिस्ट्री’ मान लिया है।
इतिहास वह होता है, जो हुआ है, जिसे देखा गया है। डॉ. नीरजा गुप्ता ने कहा कि लिखे हुए इतिहास का हम इसलिए विरोध करते हैं, क्योंकि यह भारत के गौरव को बदल रहा है, राष्ट्र विरोधी काम कर रहा है। रामायण और महाभारत के अस्तित्व को राष्ट्र विरोधी ताकतें नकारने का प्रयास कर रही हैं। प्रख्यात लेखक रतन शारदा ने कहा कि भारत के इतिहास के अंदर हमारे ज्ञान की परंपरा का जिक्र नहीं है। इस सत्र में प्रखर श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तक ‘हे राम’ से कुछ ऐसी जानकारी निकाल कर श्रोताओं के समक्ष रखी, जो कि इतिहास में काला अध्याय बन चुकी है।
‘देशाटन, एकात्म भारत दर्शन’ सत्र में प्रो. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने पूरे राष्ट्र का भ्रमण किया, चिंतन और शास्त्रार्थ किया और देशाटन का महत्व समझाया। गुरु नानक देव ने अपने जीवन में 38,000 किमी यात्रा कर भारत को एक संदेश दिया। स्वामी विवेकानंद और अन्य विद्वानों ने भी यही किया। शिक्षाविद् डॉ. सरोज चूड़ामणि गोपाल ने कहा कि भारत स्वर्णिम देश है, काशी अद्भुत नगरी है, विचार ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। शिक्षाविद् नरेंद्र पाठक ने कहा कि पर्यटन-तीर्थाटन से देश जुड़ता है। जो लोग विदेश जाते हैं, वे वहां रह कर भी भारत को जोड़ने का प्रयास करते हैं। ‘प्रभात प्रकाशन’ के निदेशक प्रभात कुमार ने कहा कि आदि शंकराचार्य के रूप में हमारे पास सबसे बड़ा उदाहरण है जो देश में एकात्मता का परिचय कराता है।
‘संस्कृति हिंदुत्व और आधुनिकता’ सत्र में लेखक अरुण आनंद ने कहा कि वर्तमान समय में हिंदुत्व का प्रभाव बढ़ा है। पद्मभूषण देवी प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि हिंदुत्व का अर्थ परिष्कृत ज्ञान से है। जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के प्रो. बद्री नारायण ने कहा कि सनातन समाज में आधुनिकता के द्वंद को समझने की क्षमता है। रूस के विद्वान प्रो. शांतिश्री पंडित दुलीपुड़ी ने कहा कि हिंदू शब्द अरबी से नहीं, बल्कि विष्णु पुराण से आया है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति ही हमारी शक्ति है।
‘भारतीय सिनेमा के विभिन्न दौर’ सत्र में फिल्म निर्माता, निदेशक एवं अभिनेता डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने कहा कि सिनेमा से अधिक प्रभाव सोशल मीडिया का हो गया है। उन्होंने इस बात के लिए सचेत भी किया कि भारतीय संस्कृति के विरुद्ध एक बड़ा असत्य भी परोसा जा रहा है। फिल्म समीक्षक अनंत विजय ने कहा कि पौराणिकता से अधिक आतंकवाद और साम्प्रदायिकता पर फिल्में बन रही हैं, जिनमें भारत की छवि को आघात पहुंचाया जा रहा है। फिल्म लेखक ओम राउत ने कहा कि रामायण को एक साथ परदे पर लाना कठिन है। पद्मश्री शिवनाथ मिश्र ने कहा कि शास्त्रीय संगीत आधारित धार्मिक फिल्मों का अभाव दिखता है। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर की उपस्थिति में लेखक विष्णु शर्मा की पुस्तक ‘इंदिरा फाइल्स’ का विमोचन भी हुआ।
भारतीय हिंदू सम्राट, अखंड भारत, इंदिरा फाइल्स, भारतीय संस्कृति, ‘संस्कृति हिंदुत्व और आधुनिकता, स्वामी विवेकानंद, संस्कृति और उसकी भव्यता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख
‘भारतीय हिंदू सम्राट और अखंड भारत’ सत्र में पत्रकार दिनेश मानसेरा ने राजा भोज, विक्रमादित्य, चंद्र्रगुप्त मौर्य, अशोक आदि का जिक्र करते हुए कहा कि आज भी हमारा संकल्प यही है कि हम अखंड भारत के निर्माण का लक्ष्य हासिल करें। जेएनयू के प्रो. राम नाथ झा ने कहा कि अखंड भारत की सीमाओं के निर्धारण में आदि शंकराचार्य की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, जिन्होंने सनातन धर्म की पुनस्स्थापना की।
शब्दोत्सव को अजीत प्रसाद महापात्र, राजीव तुली, संघ के प्रांत प्रचारक रमेश जी, डॉ. के. वेंकटरमन धनपाठी, मनोज कांत, जे. पी. लाल, डॉ. विवेक पाठक, प्रो. रजनीश शुक्ल आदि ने भी संबोधित किया। इसका आयोजन विश्व संवाद केंद्र, काशी ने किया था।
टिप्पणियाँ