विश्व हिंदी सम्मेलनों की चर्चाएं या तो साहित्य पर केंद्रित रहती थीं या भाषा पर। कुछ सत्र मनोरंजन और मीडिया पर भी केंद्रित होते रहे हैं। लेकिन इस बार हम प्रौद्योगिकी, विज्ञान और बाजार की बात कर रहे हैं। यह हिंदी में विमर्श को एक नई दिशा देने वाला घटनाक्रम है
इस बार के विश्व हिंदी सम्मेलन के मुख्य विषय (थीम) के बारे में जानकर कुछ को कौतूहल हुआ और कुछ को आश्चर्य। थीम है- ‘हिंदी: पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम मेधा तक।’ बहुतों को इसलिए हैरत हुई कि हिंदी भाषा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बीच क्या संबंध हो सकता है, यह उनके लिए एक पहेली के समान है। कुछ को इसलिए आश्चर्य हुआ कि अब तक विश्व हिंदी सम्मेलनों की चर्चाएं या तो साहित्य पर केंद्रित रहती थीं या भाषा पर। कुछ सत्र मनोरंजन और मीडिया पर भी केंद्रित होते रहे हैं। लेकिन इस बार हम प्रौद्योगिकी, विज्ञान और बाजार की बात कर रहे हैं। यह हिंदी में विमर्श को एक नई दिशा देने वाला घटनाक्रम है और संभवत: विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके मंत्रालय का यही उद्देश्य भी है।
हिंदी का कायाकल्प, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, भाषा-निरपेक्ष विश्व, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, बाजार और बदलाव, सकारात्मक और नकारात्मक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अर्थ तकनीक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रेमचंद, रवींद्रनाथ टैगोर, सुब्रह्मण्य भारती, रामधारी सिंह दिनकर, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी के साहित्य से लेकर रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता, वेद, पुराण, उपनिषद् जैसे ग्रंथ, आयुर्वेद-योग जैसी ज्ञान संपदा, हमारी पत्रकारिता
आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रही है और ऐसा माना जा रहा है कि अगले एकाध दशक में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की बदौलत हमारी दुनिया का कायाकल्प होने वाला है। हिंदी सहित हमारी भाषाएं भी इस बदलाव से अछूती नहीं रहने वालीं और न ही उन्हें इससे अप्रभावित रहना चाहिए। जो भाषाएं बदलते युग के साथ तालमेल बिठाकर नहीं चल पातीं, उनके स्थायी अस्तित्व की गारंटी नहीं ली जा सकती। वैसे ही, जैसे अपने दौर के विकास, बदलाव, नवाचार आदि से अछूते रह जाने वाले समाज न सिर्फ प्रगति की दौड़ में पिछड़ जाते हैं बल्कि धीरे-धीरे अपनी प्रासंगिकता खो बैठते हैं। अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान जैसे देशों के उदाहरण आपके सामने हैं। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, बाजार और बदलाव एक वास्तविकता है। उनका प्रतिरोध करने में कोई लाभ नहीं। हां, उनके साथ आने में हम सबका लाभ है, हमारी भाषाओं का भी।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता की अथाह शक्ति के अनगिनत उदाहरण हमारे सामने हैं। इस शक्ति के बारे में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की चर्चाएं हैं। एक तबके को लगता है कि यह मानव सभ्यता के भविष्य के लिए संकट खड़ा कर देगी इसलिए इससे बचना श्रेयस्कर है। दूसरे तबके को लगता है कि यह हमारी तरक्की के ऐसे नए रास्ते खोलने वाली है जिनकी अब तक हमने कल्पना भी नहीं की, इसलिए इसका अधिकतम दोहन किया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि सही रास्ता दोनों के बीच से आता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता को तय सीमाओं के भीतर, जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल किया जाए तो वह मानव सभ्यता की प्रगति का सबसे शक्तिशाली माध्यम बन सकती है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता की प्रासंगिकता?
यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि हिंदी भाषा के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता की क्या प्रासंगिकता है और वह इस भाषा के भविष्य को किस तरह प्रभावित कर सकती है? इसका उत्तर समझने के लिए हमें हिंदी की वर्तमान चुनौतियों, अवसरों तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता में निहित शक्तियों पर विचार करने की आवश्यकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अर्थ तकनीक की उस शक्ति से है जिसका प्रयोग करते हुए वह इंसानों की ही तरह (किंतु उनकी तुलना में बहुत बड़े पैमाने पर) सीख सकती है, विशाल स्तर पर आंकड़ों का विश्लेषण कर सकती है, चीजों पर निगरानी (आब्जर्वेशन) रख सकती है, भिन्न-भिन्न परिस्थितियों का मंथन कर सकती है, अपनी क्षमताओं में वृद्धि कर सकती है, निर्णय ले सकती है और परिणाम दे सकती है। यह सामान्य प्रौद्योगिकी से अलग है जो पहले से निर्धारित काम करती है, अपनी सीमाओं में रहती है और पहले से दिए गए निर्देशों (प्रोग्रामिंग) के आधार पर परिणाम देती है। वह स्वयं को बदलती नहीं है और स्वयं को निरंतर बेहतर बनाने में सक्षम नहीं है।
दूसरी ओर कृत्रिम बुद्धिमत्ता अधिक से अधिक कुशल, शक्तिशाली बनने में सक्षम है। जहाँ पारंपरिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने के लिए हम पूर्व निर्धारित माध्यमों (कीबोर्ड, माउस, टचस्क्रीन, ग्राफिकल यूजर इंटरफेस, मेनू आदि) का प्रयोग करते हैं वहीं कृत्रिम बुद्धिमत्ता इनके साथ-साथ हमारी भाषा को समझने में भी सक्षम है और उससे संवाद किया जा सकता है। यह संवाद लिखकर भी संभव है तो बोलकर भी संभव है और यहां तक कि हस्तलिपि में भी, फोटोग्राफ के जरिए भी तथा दर्जनों दूसरे तरीकों से संभव है। कंप्यूटर के क्षेत्र में प्रचलित इनपुट, प्रोसेसिंग और आउटपुट- तीनों के तौर-तरीके बदल रहे हैं। इसके जरिए डिजिटल प्रौद्योगिकी को काफी हद तक देखने, भाषा को समझने, ध्वनि का प्रयोग करने, इशारों को समझने और स्पर्श को भांपने जैसी शक्तियाँ मिल गई हैं। जो भाषाएं इन शक्तियों का दोहन करने की स्थिति में होंगी, वे अपना कायाकल्प कर सकेंगी।
भाषा-निरपेक्ष विश्व
कृत्रिम बुद्धिमत्ता हिंदी के स्थायी भविष्य को सुनिश्चित कर सकती है। यूनेस्को ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि दुनिया की 7200 भाषाओं में से लगभग आधी इस शताब्दी के अंत तक विलुप्त हो जाएंगी। अगर हम हिंदी को विलुप्त होने वाली इन भाषाओं की सूची में नहीं देखना चाहते तो हमें कृत्रिम मेधा को खुले दिल से अपनाना चाहिए। वजह यह कि यह प्रौद्योगिकी भाषाओं के बीच दूरियां समाप्त करने में सक्षम है। आज हम अंग्रेजी की प्रधानता से त्रस्त हैं और कृत्रिम मेधा तथा दूसरी आधुनिक प्रौद्योगिकियां अंग्रेजी के दबदबे से मुक्त होने में हमारी मदद कर सकती हैं। जो लोग यह सोचते हैं कि हिंदी जैसी गैर-पश्चिमी भाषाएं अगले कुछ दशकों में प्राकृत और पालि की स्थिति में आ सकती हैं, उन्होंने संभवत: इस पहलू पर विचार नहीं किया कि जहां इन भाषाओं के सामने कई दिशाओं से ढेरों चुनौतियां आ रही हैं, वहीं प्रौद्योगिकी भाषाओं के बीच दूरियों को पाटने में लगी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत दुनिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का केंद्र (ग्लोबल हब आफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) बनने की क्षमता रखता है। हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाएं बोलने वाले हम लोग यह सपना सच करने में मदद कर सकते हैं। याद रखिए, अगर हम इसमें प्रवीणता हासिल करते हैं तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमें अब तक की सीमाओं, वैश्विक व भाषाई असमानताओं आदि से मुक्त होकर विकास की नई दौड़ में बढ़त लेने का मौका दे सकती है
जिस अविश्वसनीय और चमत्कारिक अंदाज में कृत्रिम बुद्धिमत्ता चीजों को बदल रही है, उसे देखते हुए अगले एक-दो दशकों में हम भाषा-निरपेक्ष विश्व की ओर बढ़ सकते हैं। ऐसा विश्व जिसमें हिंदी जैसी भाषाएं बोलने-लिखने वाला व्यक्ति अवसरों से वंचित न हो, क्योंकि प्रौद्योगिकी एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद को इतना सटीक, सहज, सरल तथा सार्वत्रिक बना सकती है कि आप अंग्रेजी की सामग्री को हिंदी में पढ़ सकेंगे और हिंदी की सामग्री को अंग्रेजी में। आप हिंदी में बोलेंगे और लोग आपको अंग्रेजी में सुन सकेंगे, जबकि अंग्रेजी बोलने वाले व्यक्ति को आप हिंदी में सुन सकेंगे।
ऐसी स्थिति में यह बात अधिक महत्वपूर्ण नहीं रह जाएगी कि आपने किस भाषा में पढ़ाई की और किस भाषा में अपना कामकाज करते हैं। फिलहाल यह सब तिलिस्मी प्रतीत होता है, लेकिन कुछ वर्षों बाद ये परिकल्पनाएं मशीनी नहीं रह जाएंगी, बल्कि हमारे दैनिक जीवन का सहज हिस्सा होंगी। जब पहली बार मशीनों का आगमन हुआ तो दुनिया बदल गई। पेट्रोल तथा ऊर्जा के दूसरे साधनों का आगमन हुआ तो दुनिया फिर बदली। फिर कंप्यूटर, इंटरनेट तथा मोबाइल ने उसे बदला और ऐसी अनगिनत चीजें संभव हो गईं जिन्हें कुछ दशक पहले तक हम बहुत बड़ा मजाक समझते। कृत्रिम मेधा या तकनीकी बुद्धिमत्ता हमें फिर से बदलाव के उसी मोड़ पर ले आई है जैसा बदलाव सदियों में एक बार घटित होता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता का दूसरा बड़ा प्रभाव होगा अन्य प्रमुख भाषाओं के साथ हिंदी के गहरे संबंधों का विकसित होना। प्रेमचंद, रवींद्रनाथ टैगोर, सुब्रह्मण्य भारती, रामधारी सिंह दिनकर, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी के साहित्य से लेकर रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता, वेद, पुराण, उपनिषद् जैसे ग्रंथ, आयुर्वेद-योग जैसी ज्ञान संपदा, हमारी पत्रकारिता और विश्वविद्यालयों के शोध आदि दुनिया भर में गैर-हिंदी पाठकों तक पहुंच सकते हैं। यह हमारी साहित्यिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक तथा शैक्षणिक संपदा को वैश्विक पहचान दिलाने में योगदान देगा। इतना ही, बल्कि इससे कहीं अधिक आवश्यक है विश्व के ज्ञान, शोध, साहित्य का हिंदीभाषी लोगों तक पहुंचना।
हिंदी में विज्ञान, तकनीक, चिकित्सा, अर्थव्यवस्था आदि विषयों पर विश्व-स्तरीय सामग्री की कमी है। जहां हम स्वयं ऐसी सामग्री तैयार करने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मदद ले सकते हैं वहीं हम मशीन अनुवाद के माध्यम से वैश्विक ज्ञान को अपनी भाषा में ग्रहण कर सकेंगे। यह ज्ञान अंग्रेजी तक सीमित नहीं होगा बल्कि पूर्वी-पश्चिमी, उत्तरी तथा दक्षिणी- सभी क्षेत्रों से हम तक आ सकेगा, भाषाओं की सीमाओं के बिना। वैश्विक भाषाओं के साथ ज्ञान के इस आदान-प्रदान से एक बड़ा अंतराल भरा जा सकेगा।
हिंदी में शिक्षण सामग्री तैयार करना आसान तथा तेज हो जाएगा। आज केंद्र सरकार तथा कुछ राज्य सरकारों के निर्देश पर हिंदी में पाठ्य-सामग्री तैयार करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग होने लगा है। यह प्रक्रिया निरंतर सटीक और तीव्र होती चली जाएगी। अंग्रेजी-फ्रेंच या जर्मन की किताबों को स्कैन करके चंद मिनटों में सीधे हिंदी में अनुवाद करना संभव हो गया है। कल्पना कीजिए कि हम हिंदी में जिन विषयों में अच्छी सामग्री की कमी से परेशान रहे हैं, उन विषयों में अचानक ही दर्जनों या सैंकड़ों पुस्तकें उपलब्ध हो जाएं।
मशीन अनुवाद को लेकर अब भी कुछ लोगों के मन में शंकाएं हैं किंतु आप यह मानकर चलिए कि वह निरंतर बेहतर होता चला जाएगा, क्योंकि मशीन अनुवाद कृत्रिम बुद्धिमत्ता का एक हिस्सा है और कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारे व्यवहार, कामकाज, नए-पुराने विशालतम डेटा भंडारों, मानवीय फीडबैक, अपनी गलतियों आदि से सीखने तथा स्वयं को निरंतर निखारने में सक्षम है। पांच साल पहले जैसा मशीन अनुवाद होता था, वैसा आज नहीं होता और आज जैसा होता है, वैसा पांच साल बाद नहीं होगा। कुछ वर्षों के भीतर हम ऐसे मशीन अनुवाद की स्थिति में पहुंच सकते हैं जो मानवीय अनुवाद की ही टक्कर का होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि यह अत्यंत स्वाभाविक रूप से उपलब्ध होगा- कंप्यूटर तथा मोबाइल के जरिए ही नहीं बल्कि दर्जनों किस्म के डिजिटल उपकरणों के जरिए जो हमारे घरों, दफ्तरों, विद्यालयों और यहां तक कि रास्तों और इमारतों में भी मौजूद होंगे।
हिंदी में शिक्षण सामग्री तैयार करना आसान तथा तेज हो जाएगा। आज केंद्र सरकार तथा कुछ राज्य सरकारों के निर्देश पर हिंदी में पाठ्य-सामग्री तैयार करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग होने लगा है। यह प्रक्रिया निरंतर सटीक और तीव्र होती चली जाएगी। अंग्रेजी-फ्रेंच या जर्मन की किताबों को स्कैन करके चंद मिनटों में सीधे हिंदी में अनुवाद करना संभव हो गया है। कल्पना कीजिए कि हम हिंदी में जिन विषयों में अच्छी सामग्री की कमी से परेशान रहे हैं, उन विषयों में अचानक ही दर्जनों या सैंकड़ों पुस्तकें उपलब्ध हो जाएं। हिंदी में पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण आसान हो जाएगा। वाचिक ज्ञान को डिजिटल स्वरूपों में सहेजा जा सकेगा।
हिंदी भाषी लोग वैश्विक संस्थानों में पढ़ सकेंगे, भाषाओं की सीमाओं से मुक्त रहते हुए कौशल प्राप्त कर सकेंगे और विश्व को अपनी सेवाएं दे सकेंगे। हिंदी बोलने-लिखने वाला व्यक्ति प्रौद्योगिकी के प्रयोग से अंग्रेजी, जापानी, चीनी, स्पैनिश, फ्रेंच या अन्य भाषाभाषी लोगों को कन्टेन्ट और सेवाएं उपलब्ध करा सकेगा, बिना उन भाषाओं की जानकारी रखे। तकनीक की मदद से भाषाई चुनौतियों तथा दूरियों का सिमटना और अप्रत्याशित अवसरों का घटित होना संभव है। ऐसी अकल्पनीय घटनाएं आने वाले वर्षों में सामान्य परिपाटी बन सकती हैं, यदि हमारी भाषा अपने दौर के इन आधुनिक अनुप्रयोगों को आशंका, उपेक्षा या घृणा की दृष्टि से न देखे बल्कि उनके प्रति खुला दृष्टिकोण रखे।
घटित हो रहा महत्वपूर्ण कार्य
हिंदी में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य घटित हो रहा है। ध्वनि प्रसंस्करण की बदौलत वाक् से पाठ और पाठ से वाक् (स्पीच टू टेक्स्ट) प्रौद्योगिकी उपलब्ध हो गई है। कंप्यूटर विजन के कारण हिंदी के दस्तावेजों को स्कैन करके उनके पाठ को कंप्यूटर में टाइप किए गए पाठ के रूप में सहेजना संभव हो गया है। डेढ़ सौ से अधिक वैश्विक भाषाओं और बीस से अधिक भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी के पाठ का दोतरफा अनुवाद संभव है। अलेक्सा, कोर्टाना, सिरी और गूगल असिस्टेंट जैसे डिजिटल सहायकों के साथ या तो हिंदी में संवाद करना संभव है या इंटरनेट सर्च तथा अनुवाद आदि के लिए उनकी मदद ली जा सकती है। माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियों की एपीआई का प्रयोग करके हिंदी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से युक्त एप्लीकेशन बनाना संभव हो गया है। बात चैटजीपीटी तक जा पहुंची है जो ऐसी कृत्रिम मेधा है जिसके साथ संवाद किया जा सकता है और अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त किए जा सकते हैं।
हिंदी समाज में इस तरह की तकनीकी उपलब्धियों को गिनाने और उन पर प्रसन्न होने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। इससे लोगों में कौतूहल तो अवश्य पैदा हो सकता है और नए घटनाक्रमों के बारे में उनकी जानकारी भी बढ़ती है, लेकिन हिंदी, अन्य भारतीय भाषाओं या भारतीय समाज की प्रगति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह प्रभाव तब पड़ेगा जब हम इन उपलब्धियों की जानकारी देने से आगे बढ़ेंगे और इनमें कौशल प्राप्त करेंगे। हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित सुविधाओं के कुशल प्रयोक्ता तो बनेंगे ही, उनके विशेषज्ञ, शोधकर्ता और विकासकर्ता (डेवलेपर) बनने की तरफ आगे बढ़ेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत दुनिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का केंद्र (ग्लोबल हब आफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) बनने की क्षमता रखता है। हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाएं बोलने वाले हम लोग यह सपना सच करने में मदद कर सकते हैं। याद रखिए, अगर हम इसमें प्रवीणता हासिल करते हैं तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमें अब तक की सीमाओं, वैश्विक व भाषाई असमानताओं आदि से मुक्त होकर विकास की नई दौड़ में बढ़त लेने का मौका दे सकती है। वैसे ही, जैसे विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) ने चीन की सूरत बदल दी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारी शक्ल बदलने में सक्षम है। वह यकीनन दुनिया के भविष्य को प्रभावित करेगी।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं और
सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं।)
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