बाघों को संरक्षण और सुरक्षा के लिए बनाई गई नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के आंकड़े बता रहे हैं कि भारत में हर दो दिन के भीतर एक बाघ की मौत हो रही है। टाइगर की मौत की वजह अलग-अलग है, किंतु इसकी जानकारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही अपलोड हो रही है। कई बार तो ये रिपोर्ट महीनों तक नहीं आ रही है।
बाघों की मौत के बारे में ताजा जानकारी ये है कि एक जनवरी से अब तक देश में तीस बाघों की मौत सामने आई है। जिनमें नौ नर और नौ मादा वयस्क हैं, जबकि बारह की जानकारी सामने नहीं आई है, यानी इनके बिसरे के बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी नहीं आई है।
देश में बाघों की संख्या पिछली गिनती के अनुसार 2967 थी, जिनमें सबसे ज्यादा बाघ 526 मध्य प्रदेश, 524 कर्नाटक और 442 उत्तराखंड ने पाए गए थे, जंगल घनत्व की दृष्टि से उत्तराखंड में बाघों की संख्या देश में पहले नंबर पर आंकी जाती है। एनटीसीए की वेबसाइट के अनुसार 2020 में 73, 2021 में 127 और 2022 में 121 बाघों की मौत हुई है।
10 से 12 वर्ष मानी जाती है बाघों की उम्र
बाघों के विशेषज्ञ डॉ पराग मधुकर धकाते बताते हैं कि जंगल में बाघों की उम्र दस से बारह वर्ष की ही मानी जाती है, बूढ़े बाघ जवान बाघ के साथ टेरेटरी संघर्ष में मारे जाते हैं या फिर वो जंगल किनारे बस्तियों के तरफ सक्रिय रहते हैं और मानव के साथ संघर्ष का शिकार हो जाते हैं। यदि दस साल से ऊपर टाइगर की मौत हो रही है तो उसे स्वाभाविक मौत मान लिया जाता है और यदि इससे कम उम्र में मौत हो रही होती है तो इस पर एनटीसीए चिंता करता है।
बाघों की मौत चिंताजनक
वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. शाह बिलाल कहते हैं कि हर दो दिन में बाघों की मौत चिंताजनक है। टाइगर रिजर्व के बाहर टाइगर लैंड स्केप में बाघों की मौत ज्यादा हो रही है, यहां उन्हें संरक्षण और सुरक्षा देने की जरूरत है। डॉ बिलाल का कहना है कि बाघों के शावकों को दो साल तक सुरक्षा और संरक्षण देने की बेहद जरूरत है।
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