अपनी भाषा, बढ़ाए आशा
July 24, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

अपनी भाषा, बढ़ाए आशा

अंग्रेजों का काल यह बता चुका है कि कैसे भारत पर अंग्रेजी लादे जाने के बाद वैश्विक जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत तक घट गई। मातृभाषा में बच्चों द्वारा शीघ्र सीखे जाने के निष्कर्ष कई शोधों में सामने आ चुके हैं। मातृभाषा में शिक्षा देने से ही ज्यादा से ज्यादा मानव संसाधन देश निर्माण में अपना योगदान दे सकेगा

by आचार्य राघवेंद्र प्रसाद तिवारी
Feb 21, 2023, 07:00 am IST
in भारत
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

मनुष्य की श्रेष्ठतम उपलब्धियों में से एक है भाषा का आविष्कार, परिष्कार एवं अब तक की अजेय यात्रा। संस्कृताचार्य दण्डी उद्घोषणा करते हैं कि यदि भाषा नामक ज्योति अथवा शब्द प्रकाश न होता तो यह संसार अंधकारमय रहता- इदमन्धं तम: कृत्स्नं जायेत भुवनत्रयम्। यदि शब्दाह्वयं ज्योतिरासंसारं न दीप्यते॥ अर्थात् हम शब्द या भाषा के माध्यम से ही इस ब्रह्मांड और इसके विविध घटकों का परिचय एवं उनके सदुपयोग की प्रेरणा लेते हैं।

शब्द एवं भाषा से हमारा परिचय बचपन में ही हो जाता है। बच्चे के माता-पिता एवं पारिवारिक सदस्य उससे बचपन से ही बातें करते रहते हैं। बच्चा उन शब्दों को प्रारंभ में नहीं समझता किंतु वह ध्वनियों को पकड़ता है और उन पर अपने हाव-भाव प्रकट करता है। धीरे-धीरे वह उन शब्दों का अर्थ समझते हुए उनको व्यवहार में लाता है। परिवार एवं अड़ोस-पड़ोस का परिवेश ही उसके लिए भाषा की प्रथम पाठशाला है। बाल्यकाल के परिवेश में बच्चा जो भाषा सीखता है, वही उसकी मातृभाषा है। अतएव मातृभाषा को केवल मां की ही भाषा तक सीमित न करके उसे बच्चे के प्राथमिक परिवेश के संदर्भ में देखना चाहिए। ‘शब्दों का सफर’ लिखने वाले अजित वडनेरकर का कहना है कि ‘मेरा स्पष्ट मत है कि मातृभाषा में ‘मातृ’ शब्द से अभिप्राय उस परिवेश, स्थान, समूह में बोली जाने वाली भाषा से है जिसमें रहकर कोई भी व्यक्ति अपने बाल्यकाल में दुनिया के सम्पर्क में आता है।’

मातृभाषा कितना संवेदनशील विषय है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हमारे पड़ोसी बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन की एक सशक्त मांग मातृभाषा थी। मातृभाषा के महत्त्व को रेखांकित करने और जनसामान्य तक इस विषय को ले जाने के निमित्त ही यूनेस्को द्वारा 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा 17 नवंबर, 1999 को की गई थी।

पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश में भी मातृभाषा को लेकर विमर्श में गतिशीलता आई है। भाषाविद् एवं शिक्षाविद् इस बात को लेकर चिंतित हैं कि हमारी मातृभाषाएं बड़ी तीव्रता से लुप्त हो रही हैं। आज देश में कई ऐसी मातृभाषाएं हैं जिन्हें बोलने वालों की संख्या निरंतर कम हो रही है। हम कह सकते हैं कि जब पृथ्वी को एक वैश्विक गांव के रूप में स्वीकृति मिल रही है, तब केवल कुछ भाषाएं ही शेष रहें तो कोई नुकसान नहीं है परन्तु ऐसा सोचने वाले यह भूल जाते हैं कि किसी भाषा विशेष का नष्ट होना एक पूरी की पूरी संस्कृति एवं जीवन-दृष्टि का नष्ट होना है। भाषा एवं साहित्य के मर्मज्ञ आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी कहते हैं कि ‘प्रत्येक परिवेश की अपनी एक शब्दावली होती है जिसमें अपने आस-पास की वस्तुओं और प्राणियों को नाम दिया जाता है। इन शब्दों के खत्म होने से एक दुनिया मिटती जा रही है, एक धरोहर नष्ट हो रही है।’

स्वतंत्रता पूर्व उपनिवेशवादी अंग्रेज सरकार ने अपने काम-काज की सुगमता हेतु अंग्रेजी को ही राजभाषा बनाया। फलस्वरूप व्यवस्था के समस्त कार्य अंग्रेजी भाषा में संपादित होने लगे। अंग्रेजी भाषा का ज्ञान अनिवार्य हो गया एवं हमारे विद्यालयों में अंग्रेजी का बीजवपन हुआ। अंग्रेजों ने देशी शिक्षा व्यवस्था को नहीं चलने दिया। परंपरागत शिक्षा व्यवस्था को उन्होंने उखाड़ फेंकना चाहा। इस विषय पर 20 अक्तूबर, 1931 को लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलन में गांधी जी ने कहा था, ‘गांव की पाठशालाएं इन मालिकों को अपने उपनिवेशी कार्यक्रमों के अनुकूल नहीं पड़ती थीं। धीरे-धीरे पुरानी संस्थाओं को मान्यता नहीं मिली, वे समाप्त हो गईं। यूरोपीय सांचे के स्कूल खचीर्ले थे, उन्हें जनता नहीं चला सकी। मैं चुनौती दे रहा हूं कि सौ वर्षों में भी यूरोपीय सांचे के कार्यक्रमों से कोई इस देश में पूर्ण साक्षरता ला दे।’ गांधी जी की बात सही प्रमाणित हुई और सदियों पुरानी हमारी आत्मनिर्भर ज्ञान परंपरा एवं अर्थव्यवस्था नष्ट होने के कगार पर आ गई। ऐसी परिस्थिति में भारतीयों को जीविकोपार्जन हेतु नौकरी पर निर्भर होना पड़ा एवं मजबूरन अंग्रेजी सीखनी पड़ी। शनै:-शनै: यह अंग्रेजी भाषा सत्ता और वर्चस्व का उपकरण बनती गई।

स्वतंत्रता आंदोलन के असंख्य नायक-नायिकाओं का स्वप्न था कि विदेशी-व्यवस्था की इतिश्री के पश्चात् स्वभाषा ही देश में प्रत्येक स्तर पर व्यवहृत होगी। गांधी जी ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा था, ‘हमारा स्वतंत्र भारत पुराने गांव के अध्यापक को वापस लाएगा एवं हर गांव के बच्चे-बच्चियों, दोनों के लिए स्कूल दे देगा।’ किंतु राजस्थान सरकार ने पांच हजार से अधिक की आबादी वाले सभी गांवों में महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल खोला है। इसे विडंबना नहीं तो क्या कहा जाए कि जो गांधी जीवनपर्यंत अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा का विरोध करते रहे, उनके ही नाम पर अंग्रेजी मीडियम स्कूल खोले जा रहे हैं। यह स्थिति कमोबेश किसी एक राज्य या एक राजनीतिक पार्टी की नहीं है। इस प्रकार मातृभाषा को लेकर जो स्वप्न हमारे पुरखों ने देखा था, आज स्वाधीनता के 75 वर्षों बाद भी वह स्वप्न ही है।

ब्रिटिश अर्थशास्त्री एंगस मैडिसन के अनुसार, 1700 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी 24.4% थी जो कि ब्रिटिश काल में घटकर 1950 में 4.2% रह गयी। साथ ही वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में भी 1750 की 25% की यह भागीदारी 1900 में घटकर 2% हो गई जबकि इस काल-खंड में शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी अपना पैर पसार रही थी। इससे सिद्ध होता है कि आर्थिक दृष्टि से भी अंग्रेजी हमारे लिए हितकारी नहीं है।

जीडीपी में हिस्सेदारी घटी
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए यह अतिआवश्यक है कि शासन-प्रशासन एवं जीवन शैली में आम नागरिकों की अधिकाधिक सहभागिता सुनिश्चित हो। ऐसा तभी संभव है जब जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मातृभाषा ही उपयोग में हो। 1930 के पहले के अंग्रेज अधिकारियों की रिपोर्ट कहती है कि इस देश का शिक्षित व्यक्ति एक से अधिक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करता था। उस समय संस्कृत, फारसी और स्थानीय भाषा का ज्ञान प्राप्त करना शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग होता था। बावजूद इसके, ब्रिटिश अर्थशास्त्री एंगस मैडिसन के अनुसार, 1700 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी 24.4% थी जो कि ब्रिटिश काल में घटकर 1950 में 4.2% रह गयी। साथ ही वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में भी 1750 की 25% की यह भागीदारी 1900 में घटकर 2% हो गई जबकि इस काल-खंड में शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजी अपना पैर पसार रही थी। इससे सिद्ध होता है कि आर्थिक दृष्टि से भी अंग्रेजी हमारे लिए हितकारी नहीं है।

दु:खद विषय यह है कि आज देश के ज्यादातर हिस्सों में हम अपनी मातृभाषा की कीमत पर अन्य भाषाओँ को बोलने, लिखने एवं पढ़ने में प्राथमिकता देकर अपनी मातृभाषा को कमजोर कर रहे हैं, उसमें उपलब्ध संपन्न साहित्य से वंचित एवं उसमें निहित संस्कृति से विमुख हो रहे हैं। फलत: हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को भूल रहे हैं एवं हीन भावना के शिकार हो रहे हैं।

विज्ञान और तकनीकी शिक्षा, मातृभाषा , समावेशी शिक्षा, मातृभाषा के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु , माता-पिता एवं पारिवारिक सदस्य , बाल्यकाल , ‘स्कूल’, मल्टी टास्किंग नॉन टेक्निकल स्टॉफ, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने कॉमन यूनिवर्सिटी एन्ट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी -यूजी), ‘यूनिवर्सिटी आफ रीडिंग’

मातृभाषा से ही समावेशी शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र में यदि देखें तो विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को मातृभाषा में प्रदान करके ही शिक्षा को सही अर्थों में सर्वसमावेशी बनाया जा सकता है। भारतरत्न एवं नोबल पुरस्कार से सम्मानित तथा रमन-इफेक्ट के लिए प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी सी.वी. रमन ने कहा था कि हमें विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में देनी चाहिए। अन्यथा विज्ञान एक छद्म कुलीनता और मगरूरियत भरी गतिविधि बनकर रह जाएगा। ऐसे में विज्ञान के क्षेत्र में आम लोग कार्य नहीं कर पाएंगे। किंतु वर्तमान परिस्थिति यह है कि भाषा के कारण विद्यार्थियों के बीच भेदभाव बढ़ रहा है। अंग्रेजी से इतर किसी भारतीय भाषा में शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखा जाता है। फलत: माता-पिता बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के ‘स्कूल’ में भेजने हेतु अपनी समस्त जमा-पूंजी गंवा देते हैं। साथ ही बच्चे अपनी समस्त ऊर्जा विदेशी भाषा सीखने में नष्ट करते हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अपने एक व्याख्यान में गांधी जी ने कहा था कि ‘पूना के कुछ प्रोफेसरों से मेरी बात हुई।

उन्होंने बताया कि चूंकि हम अंग्रेजी माध्यम से भारतीय विद्यार्थियों को शिक्षा देने का प्रयास करते हैं, इसलिए उनको अपने जीवन के अमूल्य वर्षों में से कम से कम छह वर्ष अधिक खर्च करना पड़ता है। इससे श्रम और संसाधन का भी घोर अपव्यय होता है।’ उन्होंने यह भी कहा था, ‘यदि मैं डिक्टेटर होता तो आज से ही मातृभाषाओं में शिक्षा अनिवार्य कर देता। मैं पाठ्य-पुस्तकों की प्रतीक्षा नहीं करता, क्योंकि पाठ्य पुस्तकें तो स्वयं ही माध्यम लागू होने के साथ ही बाजार में आ जाएंगी।’ आज अनेक वैज्ञानिक शोध यह प्रमाणित कर चुके हैं कि विद्यार्थी को यदि उसकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाए तो वह त्वरित गति से विषयवस्तु को सीखता-समझता है। अनेक देश जैसे जापान, फ्रांस, जर्मनी अपनी मातृभाषा के चहुंमुखी उपयोग द्वारा ही आत्मनिर्भर बने हैं। भारत जैसे बहुभाषी देश को अपनी मातृभाषा के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु इन देशों द्वारा अपनाई गई नीतियों एवं तरीकों को समझना-परखना एवं उनपर अमल करना चाहिए।

अनेक वैज्ञानिक शोध यह प्रमाणित कर चुके हैं कि विद्यार्थी को यदि उसकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाए तो वह त्वरित गति से विषयवस्तु को सीखता-समझता है। अनेक देश जैसे जापान, फ्रांस, जर्मनी अपनी मातृभाषा के चहुंमुखी उपयोग द्वारा ही आत्मनिर्भर बने हैं। भारत जैसे बहुभाषी देश को अपनी मातृभाषा के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु इन देशों द्वारा अपनाई गई नीतियों एवं तरीकों को समझना-परखना एवं उनपर अमल करना चाहिए।

नई पहल
इन परिस्थितियों में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020′ में निहित भाषा संबंधी प्रावधानों से आशा की नूतन किरण प्रस्फुटित हुई है। देश के शीर्ष शिक्षाविदों के चिंतन से तैयार राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 भारत की विविध मातृभाषाओं के संवर्धन पर विशेष बल देती है। इस शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा संबंधी प्रावधानों के बिंदु 4.11 में रेखांकित किया गया है कि ‘यह सर्वविदित है कि छोटे बच्चे अपनी घर की भाषा/मातृभाषा में सार्थक अवधारणाओं को अधिक तेजी से सीखते हैं और समझ लेते हैं।’ इसलिए वर्तमान शिक्षा नीति का जोर इस बात पर है कि ‘जहां तक संभव हो, कम से कम कक्षा 5 तक, बेहतर यह होगा कि कक्षा 8 और उससे आगे तक भी शिक्षा का माध्यम, घर की भाषा/मातृभाषा/स्थानीय भाषा/क्षेत्रीय भाषा होगी। इसके बाद घर/स्थानीय भाषा को जहां भी संभव हो, भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा। सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के स्कूल इसकी अनुपालना करेंगे। विज्ञान सहित सभी विषयों में उच्चतर गुणवत्ता वाली पाठ्य पुस्तकों को घरेलू भाषाओं/मातृभाषा में उपलब्ध कराया जाएगा।’

पिछले वर्ष ही मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्रालय ने मेडिकल की पढ़ाई हिंदी भाषा मे करवाने की व्यवस्था प्रारंभ की है। शिक्षा के भारतीयकरण हेतु प्रतिबद्ध संघ एवं उसके आनुषांगिक संगठन समेत कई गैर-सरकारी संस्थानों के अथक प्रयासों से कर्मचारी चयन आयोग द्वारा मल्टी टास्किंग नॉन टेक्निकल स्टॉफ के लिए आयोजित परीक्षा को केंद्र सरकार ने 13 भारतीय भाषाओं में आयोजित करवाने का निर्णय लिया है। इस बीच नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने कॉमन यूनिवर्सिटी एन्ट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी -यूजी) का देश की 13 विभिन्न भाषाओं में आयोजन कर भाषा के संवर्धन में नया अध्याय जोड़ा है। उड़िया भाषा में अनुदित अभियांत्रिकी की पुस्तकें, तकनीकी शब्दावली एवं ई-कुंभ पोर्टल का माननीय राष्ट्रपति द्वारा अनावरण भी क्षेत्रीय भाषाओं के पोषण हेतु उल्लेखनीय पहल है।

शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देने वाले निर्णय निश्चित ही दूरगामी परिणाम वाले हैं। इसके इतर प्रयास हो कि शीघ्रातिशीघ्र सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो। इस हेतु ‘राष्ट्रीय अनुवाद मिशन’ को अधिक संपन्न बनाना चाहिए एवं ‘भारतीय अनुवाद एवं व्याख्या संस्थान’ की स्थापना अतिशीघ्र करनी चाहिए। साथ ही यह भी प्रयास हो कि मूल पुस्तकें भारतीय भाषाओं में ही लिखी जाएं।

देश-विदेश में हुए शोध से यह तथ्य उद्घाटित होता है कि बच्चा तीन वर्ष की आयु तक अपने परिवेश से लगभग एक हजार शब्द सीख जाता है। इन शब्दों का समावेश उसकी शिक्षा में हो जाने से उसकी सीखने की राह अपेक्षाकृत सुगम एवं सार्थक होगी।

हाल ही में ब्रिटेन के ‘यूनिवर्सिटी आफ रीडिंग’ के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि जो बच्चे एकाधिक भाषाओं का प्रयोग दैनिक जीवन में करते हैं, वह बुद्धिमत्ता जांच में उन बच्चों के मुकाबले अच्छे अंक लाते हैं जो केवल गैर-मातृभाषा का ज्ञान रखते हैं। ऐसे शोध से प्रेरणा लेते हुए हमें बच्चों को मातृभाषा में व्यवहार करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए। अन्य भाषाओं का ज्ञान कोई दोष नहीं अपितु अतिरिक्त कौशल है। निष्कर्षत: अपनी मातृभाषा को क्षति पहुंचाकर विदेशी भाषा का प्रयोग करना तर्क एवं न्याय संगत नहीं है।
(लेखक पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, बठिंडा के कुलपति हैं।)

Topics: समावेशी शिक्षाparents and family membersमातृभाषा के संरक्षण एवं संवर्धन हेतुchildhoodमाता-पिता एवं पारिवारिक सदस्यmulti-tasking non-technical staffबाल्यकालNational Testing Agency Common University Entrance Test (CUET-UG)राष्ट्रीय शिक्षा नीतिमल्टी टास्किंग नॉन टेक्निकल स्टॉफस्कूलनेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने कॉमन यूनिवर्सिटी एन्ट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी -यूजी)school'यूनिवर्सिटी आफ रीडिंग'mother tongueOur languageNational Education Policyincrease hopeमातृभाषाscience and technical educationविज्ञान और तकनीकी शिक्षाinclusive education
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

नवाचार और अनुसंधान की राह

कार्यक्रम में राज्यपाल एन. इंद्रसेना रेड्डी का स्वागत करते भारतीय शिक्षण मंडल के अधिकारी

‘विकास के लिए तकनीक और संस्कृति दोनों चाहिए’

भारतीय वायुसेना अलर्ट

राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में स्कूल-कॉलेज बंद, सेना सतर्क, 10 मई तक सभी फ्लाइट्स कैंसिल, वायुसेना अलर्ट

कक्षा 7 की इतिहास की पाठ्यपुस्तक से ‘मुगलों ‘और ‘दिल्ली सल्तनत’के अध्याय हटा गए

मुगलों का अध्याय खत्म

स्कूल का निरीक्षण करते मंत्री प्रवेश साहिब सिंह वर्मा

बारिश में छत से टपकता है पानी, AAP सरकार के समय स्कूलों में हुए निर्माण की होगी जांच, मंत्री Parvesh Verma ने दिया आदेश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Iran Suppressing voices

राष्ट्रीय सुरक्षा या असहमति की आवाज का दमन? ईरान में युद्ध के बाद 2000 गिरफ्तारियां

पूर्व डीआईजी इंद्रजीत सिंह सिद्धू चंडीगढ़ की सड़कों पर सफाई करते हुए

पागल या सनकी नहीं हैं, पूर्व DIG हैं कूड़ा बीनने वाले बाबा : अपराध मिटाकर स्वच्छता की अलख जगा रहे इंद्रजीत सिंह सिद्धू

जसवंत सिंह, जिन्होंने नहर में गिरी कार से 11 लोगों की जान बचाई

पंजाब पुलिस जवान जसवंत सिंह की बहादुरी : तैरना नहीं आता फिर भी बचे 11 लोगों के प्राण

उत्तराखंड कैबिनेट बैठक में लिए गए फैसलों से जुड़ा दृश्य

उत्तराखंड : कैबिनेट बैठक में कुंभ, शिक्षा और ई-स्टैंपिंग पर बड़े फैसले

मोदी सरकार की रणनीति से समाप्त होता नक्सलवाद

महात्मा गांधी के हिंद सुराज की कल्पना को नेहरू ने म्यूजियम में डाला : दत्तात्रेय होसबाले जी

BKI आतंकी आकाश दीप इंदौर से गिरफ्तार, दिल्ली और पंजाब में हमले की साजिश का खुलासा

CFCFRMS : केंद्र सरकार ने रोकी ₹5,489 करोड़ की साइबर ठगी, 17.82 लाख शिकायतों पर हुई कार्रवाई

फर्जी पासपोर्ट केस में अब्दुल्ला आज़म को बड़ा झटका, हाईकोर्ट ने याचिकाएं खारिज कीं

अवैध रूप से इस्लामिक कन्वर्जन करने वाले आरोपी अब पुलिस की गिरफ्त में हैं।

आगरा में इस्लामिक कन्वर्जन: मुख्य आरोपी रहमान के दो बेटे भी गिरफ्तार, राजस्थान के काजी की तलाश कर रही पुलिस

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies