अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विशेष:  मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा का महत्व
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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विशेष:  मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा का महत्व

मातृभाषा मनुष्य के विकास के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी छोटे बच्चों के लिए मां का दूध

by विजय सिंह माली
Feb 21, 2023, 01:00 am IST
in भारत, शिक्षा
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मातृभाषा मनुष्य के विकास के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी छोटे बच्चों के लिए मां का दूध और कुछ हो भी कैसे सकता है। बच्चा अपना पहला पाठ अपनी मां से ही सीखता है इसलिए में बच्चे के मानसिक विकास के लिए उन पर मां की भाषा को छोड़कर कोई दूसरी भाषा लादना मातृभूमि के प्रति पाप समझता हूँ। -महात्मा गांधी

अनेकानेक अनुसंधान व शोधों से स्पष्ट है कि बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने से उनका नहीं बौद्धिक विकास होता है, उनके विचार करने व चिंतन करने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है कोई भी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हो या फिर कोई भी ऐसा व्यक्ति जिन्होंने कोई मौनिक कार्य किया हो सभी ने मातृभाषा में ही शिक्षा प्राप्त की है।

बच्चों को यदि प्राथमिक स्तर से ही विदेशी भाषा के जरिए पढ़ाया जाता है तो उनके विचार व चिंतन की क्षमता समाप्त हो जाती है वह रटू बन जाते हैं ऐसे में वे परीक्षा में अच्छे अंक तो ना सकते हैं लेकिन कोई मौलिक कार्य नहीं कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो विदेशी भाषा में प्राथमिक शिक्षा बच्चों की मौलिक क्षमता को समाप्त कर देता हैं।

महात्मा गांधी का स्पष्ट मत था कि बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाने में ही उनका सही विकास हो सकता है। और नवाचार की क्षमता विकसित हो सकती है। यदि उन्हें मातृभाषा के बजाय विदेशी भाषा में पढ़ाया जाए उनकी समस्त ऊर्जा विदेशी अक्षर, विदेशी शब्द, वाक्य सीखने में लगेगी जिससे उनकी सृजनशीलता विकसित नहीं हो सकेगी

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उनकी चिंतन की क्षमता विकसित नहीं हो सकेगी। मातृ भाषा में शिक्षण वैज्ञानिक दृष्टि से व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक होता है। मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने वाला विद्यार्थी अन्य भाषा को सहज रूप से ग्रहण कर पाता है। विदेशी भाषा में प्राथमिक शिक्षा देने से व्यक्ति अपने परिवेश, परंपरा, संस्कृति व जीवन मूल्यों से कट जाता है। पूर्वजों से प्राप्त होने वाले ज्ञान, शास्त्र साहित्य से कट जाता है। सचमुच बालक के लिए मातृभाषा का बड़ा महत्व है।

मातृभाषा मनुष्य के विकास के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी छोटे बच्चों के लिए मां का दूध और कुछ हो भी कैसे सकता है। बच्चा अपना पहला पाठ अपनी मां से ही सीखता है इसलिए में बच्चे के मानसिक विकास के लिए उन पर मां की भाषा को छोड़कर कोई दूसरी भाषा लादना मातृभूमि के प्रति पाप समझता हूँ। -महात्मा गांधी

शिक्षार्थियों में स्वाभिमान, राष्ट्रीयता और संस्कार विकसित करने और साहित्य के साथ ज्ञान विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में गतिशीलता पाने के लिए मातृभाषा को ही माध्यम भाषा के रूप में अपनाना होगा। -भाषा वैज्ञानिक डाक्टर भोला नाथ तिवारी

जहां तक शिक्षा के माध्यम का प्रश्न है इसमें तो कोई दो राय हो ही नहीं सकती कि शिक्षा का माध्यम वही भाषा होनी चाहिए जिसमें वहां के लोग सोचते हैं, संप्रेषण करते हैं, मौलिक चिंतन तो अपनी भाषा में ही हो सकता है, जिस भाषा को हम जानते नहीं, उसमें चिंतन कैसे कर सकते हैं। – प्रोफेसर तोमियो मितोकामी (जापानी शिक्षाविद)

मातृभाषा द्वारा शिक्षा न देने की स्थिति में निश्चित रूप से भारत देश को विश्व के सभी देशों में अति अज्ञानी बना दिया है।
– डाक्टर एनीवीसेंट

जैसे जन्म के 1 या 2 वर्ष तक बच्चे के शारीरिक मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए मां का दूध और स्पर्श सर्वश्रेष्ठ होते हैं वैसे ही उनके संवेगात्मक बौद्धिक और भाषिक विकास के लिए मातृभाषा जरूरी होती है। प्राथमिक कक्षाओं में मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देने से बच्चे बहुभाषी बनने में भी श्रेष्ठ होते हैं। जिस तरह गर्भनाल के माध्यम बच्चे को मां के गर्भ में सारा पोषण प्राप्त होता है तथा उससे विभिन्न अंगों और पूरे शरीर का निर्माण व विकास होता है। वैसे ही बच्चे की मां, परिवार, परिवेश की भाषा उसके अंतर शरीर या अंतकरण के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

अपनी मातृभाषा की शिक्षा से संस्कार सिंचन में सुविधा रहती है, अपने राष्ट्र संस्कृति के प्रति गौरव बोध प्राप्त करके ही नई पीढ़ी भारतीय नवोन्मेष का नया युग निर्माण कर सकती है।

मातृभाषा किसी भी किसी भी इंसान के लिए संवाद का जरिया भर नहीं है बल्कि वह माध्यम भी है जिसके द्वारा उसकी समृद्ध विरासत जुड़ी होती है इसलिए इनका संरक्षण भी जरूरी है। विश्व में विलुप्त होती भाषाओं के संरक्षण के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है । मातृभाषा हृदय में छिपे हुए भावों को, विचारों को शब्दों में डालता है। मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा होने से पाठ्यक्रम की बेहतर समझ के साथ स्कूल के प्रति अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न होता है, उसे विद्यालय से भय नहीं लगता, विद्यालय जाने में आनंद आता है। जब बच्चे अपनी मातृभाषा के माध्यम से पड़ते हैं तो यह जीवन कौशल जैसे अन्य आवश्यक वस्तुओं को बढ़ावा देते हैं। अनुसंधान हमें यह बताते है कि शिक्षार्थी की मातृभाषा में प्राप्त किए गए किसी भी कौशल और अवधारणा को दूसरी भाषा में दोबारा पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती है।

स्वामीनाथन अय्यर की रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के सीखने के लिए सर्वाधिक अच्छी स्थिति वह है जो वह पर में बोली जाने वाली भाषा सुनते हैं यही उनकी मातृभाषा है। जन्म लेने के बाद मानव को प्रथम जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक सांस्कृतिक पहचान होती है। गांधीजी के अनुसार मातृभाषा के स्थान को दूसरी भाषा नहीं ने सकती । घर पर मातृ भाषा बोलने वाले बच्चे मेघावी होते हैं। मातृभाषा में व्यक्तित्व में निखार आता है। मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है। मातृभाषा में शिक्षा स्वाभिमान बढ़ाती है। मातृभाषा हमें राष्ट्रीयता से जोड़ती है, देश प्रेम की भावना उद्वेलित करती है। मातृभाषा ही किसी भी व्यक्ति के शब्द और संप्रेषण कौशल की उम होती है। मातृभाषा व्यक्ति के संस्कारों की संवाहिका है। मातृभाषा से इतर राष्ट्र की संस्कृति की संकल्पना अपूर्ण है। मातृभाषा मानव की चेतना के साथ-साथ लोक चेतना और मानवता के विकास का भी अभिलेखागार होती है। पूर्व उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के शब्दों में हमें छात्रों को अपने सामाजिक परिवेश में अपनी मातृभाषा में स्वतंत्र रूप से बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जब हम स्वतंत्र रूप से और गर्व के साथ अपनी मातृभाषा में बात करते हैं उस समय ही हम अपनी सांस्कृतिक विरासत की सही मायने में सराहना कर सकते हैं।

सचमुच मातृभाषा भावों और विचारों की अभिव्यक्ति का साधन है विचारों की जननी है, भावात्मक विकास का उत्तम साधन है, बौद्धिक एवं संख्यात्मक विकास को बढ़ावा देततीहै सामाजिक रचना और सामाजिक क्रियाकलाप: को बढ़ावा देती है और जीवन और मातृभूमि के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण विकसित करती है और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

मातृभाषा में बच्चे कठिन से कठिन विषय को भी अपनी आसानी से समझ लेते हैं जबकि दूसरी भाषा में उन्हें मुश्किल होती है मातृभाषा यानी मां की भाषा झूले पालने की भाषा जिनके द्वारा शिशु अपने जीवन का निर्माण करता है। सड़क बाजार व्यापक सामाजिक जीवन की भाषा ही मातृभाषा है जिसके माध्यम से व्यक्ति विचार संस्कार और जाति इतिहास परंपरा से जुड़ता है।

शिक्षा शास्त्र के विभिन्न शोध है कि बच्चों के पूर्ण मनो बौद्धिक विकास के लिए आरंभिक शिक्षण मातृभाषा में ही होना चाहिए । इसकेअनुसार आरंभिक शिक्षण मातृभाषा में होने से बौद्धिक व संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ती है। शैक्षणिक मनोविज्ञान के अनुसार मातृभाषा में संप्रेषण एवं संज्ञान सहज और शीघ्र हो जाता है इससे बच्चे कठिन चीजें भी आसानी से समझ लेते हैं जबकि इतर भाषाओं में बच्चों को रटना पड़ता है जो उनके पूर्ण मानसिक विकास के लिए ठीक नहीं है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देने का प्रस्ताव है इनका सही रूप में क्रियान्वित करने की आवश्यकता है तभी मातृभाषा दिवस को मनाने की सार्थकता सिद्ध होगी।

विजय सिंह माली
प्रधानाचार्य श्री धनराज वदामिया
राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय
सादड़ी (जिला- पाली) राजस्थान

Topics: प्रोफेसर तोमियो मितोकामीchild's first lesson in his motherडाक्टर एनीवीसेंटself-respectबौद्धिक विकासnationality and cultureमातृभाषा की शिक्षा से संस्कारबच्चा का पहला पाठ अपनी मांमें स्वाभिमानमहात्मा गांधीराष्ट्रीयता और संस्कारMahatma GandhiDr. Bhola Nath Tiwarimother tongueProfessor Tomio MitokamiमातृभाषाDr. Anniewiscentडाक्टर भोला नाथ तिवारीIntellectual development
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