अनुसूया प्रसाद बहुगुणा : स्वतंत्रता आंदोलन का अनसुना नायक, जिसे ‘गढ़केसरी’ की उपाधि से किया गया था सम्मानित

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उत्तराखंड ब्यूरो

भारत के सामाजिक–सांस्कृतिक इतिहास की विरासत को संजोकर रखने में उत्तराखंड राज्य का योगदान किसी भी दृष्टि से कम नहीं है। भारत के उत्तर दिशा में स्थित सुदूर विकट भौगोलिक परिस्थितियों वाले पहाड़ी राज्य का नाम है उत्तराखण्ड। उत्तराखण्ड राज्य में अनेकों महान विभूतियों ने जन्म लिया है, जो आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण संरक्षण, कला, साहित्य, आर्थिक, देश की रक्षा एवं सुरक्षा जैसे अनेकों महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विश्वप्रसिद्ध हुए हैं। देश की इन्हीं महान विभूतियों की कतार में स्थान प्राप्त करने वाले सबसे चर्चित और विख्यात हस्तियों में प्रतिष्ठित नाम अनुसूया प्रसाद बहुगुणा का आता है।

अनुसूया प्रसाद बहुगुणा का जन्म 18 फरवरी सन 1894 को उत्तराखंड के चमोली जिले के पुण्यतीर्थ अनुसूया देवी आश्रम में हुआ था। इनका नाम भी इनके माता-पिता ने अनुसूया देवी के नाम पर अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा रखा था। वह वीर और साहसी स्वतंत्रता सेनानी और उत्तराखंड राज्य के सबसे लोकप्रिय राजनीतिक नेताओं में से एक थे। अनुसूया प्रसाद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नंदप्रयाग से और मैट्रिक की पढ़ाई पौड़ी से प्राप्त की थी। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विज्ञान विषय में स्नातक किया और सन 1916 में कानून की पढ़ाई की थी। शिक्षा प्राप्ति के समय से ही उनके मन में देशभक्ति के लिये ज्वाला उठने लगी थी। शिक्षा पूरी करने के बाद वह नायब तहसीलदार के रूप में कार्यरत रहे।

अनुसूया प्रसाद बहुगुणा उभरते राष्ट्रवाद की लहर से प्रेरित हुए, जो उस समय पूरे देश में फैल रही थी। राष्ट्रवाद से प्रभावित अनुसूया बहुगुणा और बैरिस्टर मुकुंदीलाल ने 13 अप्रैल सन 1919 के पंजाब में जलियाँवाला बाग नरसंहार के पश्चात आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अमृतसर सभा में भाग लिया था। सभा में अनुसूया प्रसाद बहुगुणा और बैरिस्टर मुकुंदीलाल ने अंग्रेज़ों द्वारा शासित गढ़वाल के लोगों की ज्वलंत समस्याओं को प्रस्तुत किया था। इस सभा ने उन्हें रॉलेट एक्ट अधिनियम के खिलाफ़ गढ़वाल में एक प्रखर आंदोलन शुरू करने के लिए प्रेरित किया था। यह आंदोलनकारी कार्य अनुसूया प्रसाद के लिए बेहद कठिन साबित हुआ था, क्योंकि तत्कालिक समय में गढ़वाल के लोग अंग्रेजी शासन के प्रति वफ़ादार थे। इसके बाद अनुसूया प्रसाद गढ़वाल क्षेत्र में समाज सुधार और जन संगठन के कार्यों में जुट गए थे। सन 1920-21 में कुली बेगार जैसी विकृत कुप्रथा के विरुद्ध आंदोलन का नेतृत्व उत्तराखण्ड के कुमाऊं में बद्रीदत्त पाण्डे कर रहे थे, तो वहीं गढ़वाल क्षेत्र में इसी आंदोलन का नेतृत्व अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने किया था।

रूद्रप्रयाग से लगभग 32 किमी की दूरी पर ग्राम ककड़ाखाल से कुली बेगार कुप्रथा को खत्म करने के लिए आन्दोलन की शुरुआत हुई थी। इस आन्दोलन से आस-पास के गाँव के लोग जुड़े तो आन्दोलनकारियों की संख्या सैकड़ों में हो गयी थी। ब्रिटिश सरकार जब इनसे वार्ता करने पहुंची तो गांव वालों ने रात के अँधेरे में ही उनको गांव से बाहर निकाल दिया। उक्त अपमान से क्रोधित ब्रिटिश सरकार ने आंदोलनकारियों के साथ-साथ समर्थक ग्रामीणों पर बेहद अन्यायपूर्ण कहर बरपाया था। तत्कालिक समय के गढ़वाल में कुली उतार, कुली बेगार और बर्दायश जैसी विकृत कुप्रथाओं के विरुद्ध तथा जंगलात कानून में सरकारी हस्तक्षेप के विरुद्ध जन-आन्दोलन तीव्र गति पकड़ चुके थे। कुप्रथाओं के विरुद्ध दोनों आन्दोलनों का अनुसुया प्रसाद ने सफल नेतृत्व किया जिसके फलस्वरूप इन कुप्रथाओं का अन्त हो गया था। इन्हीं के प्रयासों से जंगलात कानून में कुछ सुधार कर जनता को सुविधाएं प्रदान की गई थी। कुप्रथा के विरुद्ध आन्दोलन की सफलता से बेहद हर्षित गढ़वाल के लोगों ने उन्हें “गढ़केसरी” की उपाधि से सम्मानित किया था।

सन 1921 में उन्हें श्रीनगर गढ़वाल में आयोजित युवा सम्मेलन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, उसी वर्ष उन्हें गढ़वाल से जिला कांग्रेस कमेटी का मंत्री चुना गया था। सन 1930 में नमक सत्याग्रह में उन्होंने उत्तराखंड में इस आंदोलन का नेतृत्व किया था। आन्दोलन के कारण ब्रिटिश अधिकारियों ने धारा 144 के उल्लघंन का आरोप लगाया और चार महीने के लिए उन्हें जेल भेज दिया था। सन 1931 में वह जिला बोर्ड के चेयरमैन चुने गए। उनके अथक प्रयासों से ही हिमालय एयरवेज नाम की एक कम्पनी ने बद्री-केदार धाम आने वाले तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए हरिद्वार से गौचर तक हवाई सर्विस शुरू की थी। सन 1934 में तत्कालीन वायसराय की पत्नी लेडी विलिंगटन पत्रकार सन्त निहाल सिंह के साथ हवाई जहाज से गौचर उतरीं थी। गढ़वाल की ओर से अनुसुया प्रसाद बहुगुणा ने उनका स्वागत किया था। सन 1937 में वह गढ़वाल से संयुक्त प्रान्त की विधान परिषद के गढ़वाल सीट से सदस्य चुने गए थे। सन 1939 में उन्होंने संयुक्त प्रान्त विधान परिषद में बद्रीनाथ मंदिर में फैली कुव्यवस्था के विरुद्ध आवाज उठाई और श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रबन्ध कानून को पास कराया था। सन 1938 में पंडित जवाहर लाल नेहरू और विजय लक्ष्मी पण्डित 5 दिनों के भ्रमण पर गढ़वाल आए थे।

देश की स्वाधीनता के लिए अनुसूया प्रसाद बहुगुणा की समर्पित भावनाओं को देखकर जवाहर लाल नेहरू बेहद प्रभावित हुए थे। अप्रैल सन 1940 में कर्णप्रयाग में राजनीतिक सम्मेलन में वह सभापति चुने गए थे। 14 दिसम्बर सन 1941 को सत्याग्रह के समय गिरफ्तार हुए और एक वर्ष कारावास की सजा पाई थी। जेल में उनका स्वास्थ्य बेहद खराब हो गया था। असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन दोनों में अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने बढ़चढ़ कर भाग लिया था। सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्हें अंग्रेज़ी सरकार ने घर पर ही नज़रबंद कर दिया गया था। अनेकों असहनीय यातनाओं के पश्चात भी उपनिवेशवाद के खिलाफ़ उन्होंने अपनी लड़ाई कभी नहीं छोड़ी थी। अंततः देश के स्वाधीनता संग्राम में अपना अमूल्य यथायोग्य योगदान देते हुए स्वास्थ्य संबंधी अनेकों समस्याओं के कारण 23 मार्च सन 1943 को उनका देहावसान हो गया। 10 अक्टूबर सन 1974 को इस अकीर्तित नायक की याद में उत्तराखंड में अनुसूया प्रसाद बहुगुणा राजकीय स्नातकोत्तर कॉलेज अगस्त्यमुनि की स्थापना की गई थी। नन्दप्रयाग इन्टर कॉलेज और गौचर मेले के “सिंह द्वार” का नामकरण इनके ही नाम पर किया गया।

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