खैबर पख्तूनख्वा में अब हिंदू-सिख कर सकेंगे मृतकों का अंतिम संस्कार, दो एकड़ जमीन हुई मंजूर

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WEB DESK

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा सूबे से वहां रहने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं तथा सिखों को मानसिक राहत देने वाला एक समाचार मिला है। उन्हें अब अपने मृतक परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए मुसीबतें नहीं उठानी पड़ेंगी और पेशावर में ही वे उनका अंतिम संस्कार कर पाएंगे। अभी उन्हें इस काम के लिए पेशावर से करीब सौ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। बहुत से परिवार तो साधनों की कमी की वजह से पेशावर में ही अपने मृत परिजनों को रीत से अलग दफनाते रहे हैं।

खैबर पख्तूनख्वा सूबे की कार्यवाहक कैबिनेट ने कल ​की अपनी पहली बैठक में ही यहां के हिंदुओं तथा सिखों के लिए श्मशान घाट बनाने की लंबे समय से चली आ रही मांग को स्वीकार करते हुए औकाफ विभाग को आदेश दिया है कि इस काम के लिए करीब दो एकड़ सरकारी जमीन इन समुदायों के नाम कर दी जाए।

सूबे के कार्यवाहक मुख्यमंत्री मोहम्मद आजम खान की अध्यक्षता में उक्त बैठक संपन्न हुई। इसमें हिंदू—सिख समुदायों हेतु पेशावर तथा नौशेरा जिलों में एक-एक श्मशान स्थल और कोहाट जिले में ईसाइयों के लिए कब्रिस्तान हेतु आधा एकड़ से कुछ कम जमीन देने के औकाफ विभाग को निर्देश जारी किए हैं।

सूबे के हिन्दुओं और सिखों ने राहत की सांस लेते हुए समुदायों की ओर से कार्यवाहक मंत्रिमंडल का आभार ज्ञापित किया कि उन्होंने काफी समय से उनको इस काम के लिए झेलनी पड़ रही दिक्कतों को दूर करने का ऐसा फैसला लिया है। हिंदू समुदाय में बेशक एक तसल्ली का भाव दिया रहा है। समुदाय की ओर से अपील की गई है कि यह जमीन रिहायशी इलाकों से कुछ दूर किसी पोखर आदि के करीब दी जाए तो सुविधा होगी।

बताया गया कि यहां के हिंदुओं तथा सिखों को अभी अपने मृतक परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए आसपास कोई श्माशान स्थल न होने के वजह से सौ किलोमीटर दूर तक जाना पड़ता है। उन्हें यह कार्य अटक जिले में जाकर करना पड़ता है। हालांकि पड़ोसी इस्लामी देश में अल्पसंख्यकों की स्थिति बहुत अर्से से दोयम दर्जे की बनाकर रखी गई है।

पेशावर और नौशेरा जिलों में रहने वाले ईसाइयों को भी अपने मृतक परिजनों को दफनाने के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है। पता चला है कि यहां ईसाइयों की आबादी करीब 70 हजार है, लेकिन इस समुदाय के लिए यहां सिर्फ चार कब्रिस्तान ही हैं। कई बार तो पहले बनी कब्रों को खोदकर ही शव दफनाने की नौबत आती रही है। लेकिन अब कोहाट में कब्रिस्तान के लिए जमीन मिलने का रास्ता साफ होते देख इस समुदाय को भी तसल्ली महसूस हो रही है।

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