बीबीसी की दुष्प्रचार करने वाली, भारत को बदनाम करने की कोशिश करने वाली, असत्य और कल्पनाओं पर आधारित डॉक्यूमेंट्री को प्रतिबंधित करने के मसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार को नोटिस जारी किया है। सर्वोच्च न्यायालय भारत का है, जो भारत के करदाताओं की राशि से चलता है; उसका काम उस भारतीय विधान और विधियों के अनुरूप काम करना है जो भारत के हैं, भारत के लिए हैं। सर्वोच्च न्यायालय नामक सुविधा का सृजन और उसका रखरखाव हमने अपने देश के हितों के लिए किया है। लेकिन वह भारत विरोधियों के अपना मार्ग साफ करने के प्रयासों में एक औजार की तरह प्रयुक्त हो रहा है। आप पाएंगे कि तमाम देश विरोधी शक्तियां हमारे लोकतंत्र की, हमारी उदारता की, और हमारे सभ्यतागत मानकों की सुविधाओं का लाभ हमारे खिलाफ अपनी मुहिम में उठाने की कोशिश करती हैं।
मानव अधिकारों के नाम पर आतंकवादियों को संरक्षण देने के प्रयास तो अपने स्थान पर हैं ही, पर्यावरण के नाम पर भारत की विकास गाथा में अड़चनें लगाने से लेकर भारत की प्रतिरक्षा तैयारियों में अड़ंगा लगाने की कोशिशों तक, सारी चीजें अपने-आप में एक वृत्तांत हैं। अब एक कदम आगे बढ़कर यह प्रयास किया जा रहा है कि देश विरोधी ताकतों को भारत में दुष्प्रचार करने का भी अधिकार होना चाहिए, भारत में धर्मांतरण करके राष्ट्र को कमजोर करते रहने का अधिकार भी होना चाहिए। और इतना ही नहीं, इस अधिकार के प्रयोग के लिए भारत के ही कानूनों का लाभ भी उन्हें मिलना चाहिए।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ठीक ही लिखा है कि भारत को समझना हो, तो महाभारत को समझना जरूरी है। जिनकी निवृत्ति भी अधर्म से नहीं हो सकती, वह स्वयं युद्ध को निमंत्रण ही दे रहे होते हैं, लेकिन अब सॉफ्ट पावर के इस युग में यह युद्ध बिना शोर किए लगातार चलने लगा है।
महाभारत की परिणिति हमेशा धर्म चक्र के प्रवर्तन में, गांडीव और सुदर्शन के शौर्य में ही होती है। यही सनातन भारत है। चलते युद्ध को लेकर किसी तरह की आशंका पालने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि इस देश की सनातन शक्ति पर विश्वास बनाए रखने की आवश्यकता है। विजय उसी की होनी है। यही भारत को समझने की आवश्यक शर्त है।
-विदेश मंत्री एस. जयशंकर
एक ओर भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है और विश्व पटल पर एक भारत गाथा अंकित करने के लिए आगे बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर समुद्र पार से कुंठित तत्वों का जमावड़ा इस भारत गाथा को लांछित करने का प्रयास कर रहा है। एक ओर हम विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं और दूसरी और हमारे साहित्य को कलंकित करने का प्रयास होता है, उसे हेय दिखाने की कोशिश होती है। एक ओर नेपाल की नदी से महाविशाल शालिग्राम शिलाएं प्रकट होती हैं, मानों प्रकृति स्वयं भगवान के पूजन में अपनी अर्चना करना चाहती है, वे महाविशाल शालिग्राम शिलाएं अयोध्या के लिए प्रस्थान करती हैं, तो दूसरी ओर भारत के ही कुछ लोग रामचरितमानस का अपमान करने की चेष्टा करते हैं। एक ओर संसद का सत्र लोकतंत्र का उत्सव मना रहा होता है, वहीं दूसरी ओर उसी सदन में कुछ लोग ऐसा व्यवहार करते हैं जिससे बाकी लोगों के मन में यह प्रश्न आने लगता है कि क्या सदनों में मार्शलों का प्रयोग एक नियमित परिपाटी बन जाएगा।
एक ओर देश फिर से कुछ राज्यों में चुनाव की स्थिति के सामने है और लगातार कोई न कोई चुनाव चलने की अवांछनीय स्थिति से बाहर निकलने का कोई मार्ग तलाश रहा है, वहीं दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जो चुनाव में हो चुकी पराजय को पांच वर्ष के लिए स्वीकार करने को राजी नहीं हैं, जो जनता के आदेश को आत्मसात करने के लिए राजी नहीं हैं, जिनके लिए उन्हें सत्ता में न बिठाने वाली भारत की जनता भी किसी अपराधी की तरह है, जो देश भर से बीन-बीन कर विघ्नसंतोषी लोगों के साथ, भारत विरोधी तत्वों के साथ अपना जुड़ाव दर्शाने में गर्व महसूस करते हैं। यह सब किसी महाभारत के लक्षण नहीं, तो क्या हैं?
अच्छी बात यह है कि महाभारत की परिणिति हमेशा धर्म चक्र के प्रवर्तन में, गांडीव और सुदर्शन के शौर्य में ही होती है। यही सनातन भारत है। चलते युद्ध को लेकर किसी तरह की आशंका पालने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि इस देश की सनातन शक्ति पर विश्वास बनाए रखने की आवश्यकता है। विजय उसी की होनी है। यही भारत को समझने की आवश्यक शर्त है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी यही लिखा है।
@hiteshshankar
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