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सिंधु जल संधि : पानी पर निर्णायक पहल

सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान के अड़ियल रवैये पर भारत ने निर्णायक कदम उठाते हुए संधि के प्रावधानों के अनुरूप इसमें संशोधन की मांग की है। भारत का यह रुख अतीत के दबावपूर्ण माहौल में हुए समझौतों को न्यायसंगत बनाने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है

by एस वर्मा
Feb 14, 2023, 03:19 pm IST
in भारत, विश्लेषण
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भारत ने भारत और पाकिस्तान के मध्य नदियों के जल का बंटवारा करने वाले 1960 में हुए सिंधु जल समझौते में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। उल्लेखनीय है कि इस संधि के 62 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत ने सिंधु जल समझौते में संशोधन की मांग की है।

भारत अब अपनों हितों के संरक्षण के लिए अतीत की संकोची और दबाव में रहने की प्रवृत्ति को त्याग चुका है। उसने स्वतंत्रता के बाद सभी क्षेत्रों में विकास के पथ पर स्थिर एवं दृढ़ उन्नति की है और सतत अग्रसर है। परंतु पाकिस्तान यहां भी भारत के विकास मार्ग को अवरुद्ध करने का कोई भी मौका जाने नहीं देता। उसके एक ऐसे ही प्रयास के विरुद्ध भारत ने ऐसा ऐतिहासिक कदम उठाया है जिसने पाकिस्तान के समक्ष चुनौतीपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी है।

भारत ने भारत और पाकिस्तान के मध्य नदियों के जल का बंटवारा करने वाले 1960 में हुए सिंधु जल समझौते में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। उल्लेखनीय है कि इस संधि के 62 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत ने सिंधु जल समझौते में संशोधन की मांग की है। हालांकि भारत के लिए भेदभावपरक इस समझौते के विषय में हमारा जनमानस समय-समय पर इस समझौते को रद्द करने की मांग करता आया है। पुलवामा के आतंकी हमले के बाद फरवरी 2019 में भारत के तत्कालीन परिवहन और जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा भी था कि पाकिस्तान की इन आतंकी नीतियों के विरुद्ध, भारत, पाकिस्तान में बह रहे अपने हिस्से के पानी को रोक सकता है।

दरअसल, स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार द्वारा कई अदूरदर्शी कदम तत्कालीन दबावों में उठाए गए जिनमें भारत के हित पूरी तरह संरक्षित नहीं थे। वैश्विक परिस्थितियां बदलने पर भारत सरकार ने अतीत में दबाववश किए गए उन समझौतों, कदमों की समीक्षा की है और वह राष्ट्रीय हित एवं अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप उन्हें ठीक करने की राह पर है।

   संशोधन का नोटिस क्यों

  •  भारत की दो जलविद्युत परियोजनाओं पर संधि का हवाला देकर पाकिस्तान लगा रहा अड़ंगा
  •  स्थाई सिंधु आयोग की पांच बैठकों में चर्चा करने से भी कतराता रहा पाकिस्तान

वर्तमान विवाद
सिंधु जल समझौते पर वर्तमान विवाद भारत की दो पनबिजली परियोजनाओं, झेलम की सहायक नदी किशनगंगा और चिनाब पर रातले पर केंद्रित है। भारत ने सिंधु जल समझौते के अनुच्छेद 12 (3) के अनुसार संधि में संशोधन का आग्रह किया है, जो स्पष्ट रूप से प्रावधान करता है कि संधि में किए गए प्रावधानों को समय-समय पर दोनों सरकारों के बीच किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए संशोधित और परिवर्तित किया जा सकता है। सिंधु जल संधि पर भारत द्वारा पाकिस्तान को नोटिस जारी करने (और 90 दिनों के भीतर इस पर प्रतिक्रिया देने का अनुरोध करने) का निर्णय एक बड़ा कदम है और इससे जल बंटवारे की यह संधि एक नई समझौता वार्ता की ओर बढ़ सकती है।

इस संधि को एक ऐसे तनावपूर्ण समय में भारत-पाकिस्तान के बीच सहमति के एक विरल उदाहरण के रूप में देखा जाता रहा है जब दोनों देशों ने व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान सहित अधिकांश द्विपक्षीय वार्ताओं पर लगभग रोक ही लगा रखी है।
इसके साथ ही साथ भारत ने विश्व बैंक द्वारा नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ और विश्व बैंक द्वारा गठित एक अदालत द्वारा मध्यस्थता के माध्यम से एकसाथ विवाद समाधान तंत्र के लिए पाकिस्तान द्वारा डाले जा रहे दबाव के प्रति अपनी निराशा व्यक्त की है। विश्व बैंक ने 1960 में संधि पर हस्ताक्षर करने की सुविधा प्रदान की थी। उल्लेखनीय है कि इस संधि से जुड़े किसी भी विवाद को निपटाने के लिए स्थापित प्रक्रिया का पाकिस्तान द्वारा उल्लंघन लगभग स्थाई भाव बन चुका है।

भारत का स्पष्ट रूप से मानना है कि पाकिस्तान ने सिंधु जल समझौते के आर्टिकल 9 का उल्लंघन किया है। यही कारण है कि भारत ने इस मामले को एक विशेषज्ञ के पास भेजने के लिए भी अनुरोध किया है। भारत लगातार इन मामलों में मध्यस्थता के द्वारा निराकरण का प्रयास करता रहा लेकिन पाकिस्तान की हठधर्मिता ने हमेशा ही रुकावटें पैदा की हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान ने 2017 से लेकर 2022 के बीच स्थाई सिंधु आयोग की 5 बैठकों में हिस्सा लिया लेकिन इस मामले पर वार्ता से इनकार किया। 2015 में शुरू हुए इस घटनाक्रम में पाकिस्तान ने भारत की किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति जताई थी और इस हेतु उसने एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति के लिए अनुरोध भी किया था। परंतु इसके तुरंत बाद 2016 में पाकिस्तान ने इस अनुरोध को वापस ले लिया और मध्यस्थ्ता अदालत के द्वारा उसकी आपत्तियों के निराकरण हेतु दवाब बनाने लगा जो कि सिंधु जल समझौते के अनुच्छेद का उल्लंघन है। यही कारण है कि भारत को यह कदम उठाना पड़ा है।

किशनगंगा नदी पर बांदीपोरा जिले में किशनगंगा परियोजना, जो झेलम नदी की एक सहायक नदी है, का कायार्रंभ 2018 में किया गया था। वहीं दूसरी ओर किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी पर रातले जलविद्युत परियोजना, वर्तमान में निमार्णाधीन है। अपनी आदत के अनुरूप पाकिस्तान ने बिजली उत्पादन के लिए बने भारतीय बांधों के डिजाइन के बारे में चिंता जताई और दावा किया कि यह इन दोनो नदियों के जलप्रवाह को बाधित करेगा जो उसकी फसलों की सिंचाई हेतु जल की 80% मात्रा उपलब्ध कराती हैं। और उसका यह तर्क है कि यह भारत द्वारा इस संधि का उल्लंघन है।

सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू

    समझौते पर संकट

  • 19 सितंबर, 1960 को हुआ था सिंधु जल समझौता
  • 6 नदियों को लेकर हुई भारत-पाकिस्तान में जल संधि
  • संधि के तहत 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान के हिस्से
  • भारत के हिस्से में महज 20 प्रतिशत पानी आता है
  • पूर्वी नदियों – ब्यास, रावी, सतलुज का पानी भारत को
  • पश्चिमी नदियों – सिंधु, चिनाब, झेलम का पानी पाकिस्तान को
    36 लाख एकड़ फुट पानी भारत पश्चिमी नदियों से ले सकता है

क्या है सिंधु जल समझौता?
सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों में उपलब्ध पानी का उपयोग करने के लिए विश्व बैंक की मध्यस्थ्ता में किया गया जल-वितरण समझौता है। इस पर 19 सितंबर, 1960 को कराची में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। इस सिंधु जल संधि के प्रावधानों के तहत, पूर्वी नदियों सतलुज, ब्यास और रावी का पानी, जिसका परिमाण सालाना लगभग 3.3 करोड़ एकड़ फुट (एमएएफ) है, भारत को अप्रतिबंधित उपयोग के लिए आवंटित किया गया। पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – का लगभग 13.5 करोड़ एकड़ फुट पानी पाकिस्तान को सौंपा गया है। यहां इस संधि का भेदभावपरक दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। और तब से लेकर आज तक इस संधि के प्रावधानों का दुरुपयोग कर पाकिस्तान भारत की विकास परियोजनाओं मे रुकावटें पैदा करने की कोशिश करता रहा है।

पाकिस्तान में पानी की बर्बादी

पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो तेजी से सूखता जा रहा है और जहां पेयजल का संकट यहां के महानगरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैे अपनी अन्य समस्याओं की तरह पाकिस्तान इस संकट का दोष भी भारत के सर ही मढ़ता है और सिन्धु जल समझौते के क्रियान्वयन में भारत द्वारा किए जा रहे कथित भेदभाव को मुद्दा बनाने की कोशिश करता हैे परन्तु वास्तविकता इससे बिलकुल उलट है। सिन्धु जल समझौते में पाकिस्तान को भारत की तुलना में चार गुना अधिक पानी दिया गया। यदि इसे जनसंख्या के अनुपात में लाया जाए तो यह 30 गुने से भी अधिक बैठता है। वास्तविकता में पाकिस्तान का पानी का कुप्रबंधन इसका एकमात्र कारण है और इसका खामियाजा वह निकट भविष्य में कहीं अधिक तीव्रता से भुगतने जा रहा है।

पाकिस्तान में पानी के उपयोग और मांग के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर है। इसकी वाटर इंटेंसिटी – घन मीटर में पानी की मात्रा जो सकल घरेलू उत्पाद की प्रति इकाई के निर्माण में उपयोग की जाती है विश्व में सबसे अधिक है, जो यह दर्शाती है कि पाकिस्तान की तुलना में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था अधिक जल-गहन नहीं है। अगर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आंकड़ों की बात करें तो इसके अनुसार, पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 1,017 क्यूबिक मीटर है – जो कि 1,000 क्यूबिक मीटर की कमी सीमा के खतरनाक रूप से करीब है। 2009 में वापस, पाकिस्तान की पानी की उपलब्धता लगभग 1,500 क्यूबिक मीटर थी। और यह लगातार गिरती जा रही है। पाकिस्तान के शहरों और गांवों में कानून और व्यवस्था की स्थिति को चुनौती देने वाले कारकों में जल संसाधनों में कमी एक महत्वपूर्ण कारक है

पाकिस्तान को सिन्धु जल समझौते से जितना प्राप्त होता है, उसका अधिकांश हिस्सा बर्बाद हो जाता है क्योंकि इसको रोकने के लिए पर्याप्त बांध और रिजर्वायर्स जैसी संरचनाओं का गहन अभाव हैे इस देश के दो प्रमुख जलाशय तारबेला और मंगला बांध की क्षमता बहुत कम हो गई है। पाकिस्तान को हर साल लगभग 14.5 करोड़ एकड़ फुट पानी मिलता है, लेकिन वह केवल 1.37 करोड़ एकड़ फुट ही बचा सकता है। बाढ़ के द्वारा ही पानी का 2.9 करोड़ एकड़ फुट बर्बाद हो जाता है। और अगर देखा जाए तो पाकिस्तान को 4 करोड़ एकड़ फुट पानी की जरूरत है, जो उसको दिए जा रहे पानी का मात्र 25 प्रतिशत है। ऐसी स्थिति में इस जल संसाधन का पाकिस्तान को दुरुपयोग करने हेतु देना पूर्णत: औचित्यहीन है।

पाकिस्तान का दोहरा रुख
पाकल दुल कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब नदी की एक सहायक नदी मरुसुदर पर एक निमार्णाधीन बांध है जिसका प्राथमिक उद्देश्य जलविद्युत ऊर्जा उत्पादन है। इसके साथ ही बनने वाले रिजर्वायर में 1,08,000 एकड़ फुट पानी का अनुमानित सकल भंडारण है। इस परियोजना को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि जून और अगस्त के बीच हर मानसून के मौसम में बांध को भरने में सुविधा होगी।

इसके साथ ही पाकिस्तान ने 624 मेगावाट की किरू और 48 मेगावाट की लोअर कलनई परियोजनाओं पर पांच प्रमुख आपत्तियां उठाई हैं, जो फ्री बोर्ड, इनटेक, स्पिलवे, पोंडेज और लो-लेवल आउटलेट से संबंधित हैं और जिनके बारे में उसका कहना है कि यह 1960 की संधि का उल्लंघन है। चिनाब नदी से संबंधित इन परियोजनाओं पर पाकिस्तान यह आरोप लगाता रहता है कि इनका डिजाइन पाकिस्तान में चिनाब नदी के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है, इसका सीधा असर सियालकोट के पास एक प्रमुख जलाशय, हेड माराला पर निर्भर कृषि क्षेत्रों पर पड़ेगा। परंतु पाकिस्तान का यह आरोप निराधार है। वास्तव में पाकिस्तान इस जल का प्रयोग कर ही नहीं पा रहा है और वह पूर्णत बर्बाद हो रहा है। न तो इसका उपयोग करने के लिए उसके पास उपयुक्त हार्डवेयर उपलब्ध हैं, न उपयोगिता। विवाद का एक नया आयाम खोलना ही उसका उद्देश्य है।

उल्लेखनीय है कि चिनाब नदी पर 1,000 मेगावाट की पाकल दुल जलविद्युत परियोजना के मुद्दे पर पाकिस्तान के सिंधु जल आयुक्त ने सर्वप्रथम संधि के अनुच्छेद 9 को लागू करने पर जोर दिया था जो मध्यस्थता के विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों के माध्यम से मतभेदों और विवादों के समाधान का प्रावधान करता है। लेकिन उस समय भारतीय पक्ष का विचार था कि संधि के अनुच्छेद 9 को लागू करना जल्दबाजी होगी, क्योंकि अभी आयुक्त स्तर पर ही इस परियोजना पर हुई चर्चा ऐसे चरण तक नहीं पहुंची है, जहां इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाया जा सके।

भारत के प्रतिनिधिमंडल ने इस्लामाबाद की चिंताओं को दूर करने का हरसम्भव प्रयास किया और उसे इन परियोजनाओं के संबंध में आगे और भी सूचनाएं उपलब्ध कराने हेतु तत्पर भी है। इसके साथ ही लोअर कलनई के विषय में भी भारतीय पक्ष ने बताया कि 2014 की बाढ़ ने इस परियोजना को नुकसान पहुंचाया था और तब से विकास कार्यों को फिर से शुरू नहीं किया जा सका और वर्तमान में चल रहा कार्य इसी का अगला चरण है। परंतु पाकिस्तान का यह अड़ियल रवैया द्विपक्षीय संबंधों मे सुधार के प्रति पाकिस्तान की ‘गंभीरता’ को दिखाता है।

यह पहला अवसर नहीं था जब पाकिस्तान ने इस तरह मामलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उछालने की कोशिश की। वह 2010 में, सिंधु की एक छोटी सहायक नदी, किशनगंगा (पाकिस्तान में नीलम के रूप में जाना जाता है) पर भारत की 330-मेगावाट जलविद्युत परियोजना पर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू करवा चुका है। लेकिन जब भारतीय पक्ष इस मध्यस्थता के स्तर पर राजी हुआ, पाकिस्तान अपने स्वभाव के अनुसार एक बार फिर आगे के स्तर पर पहुंच गया।

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