चंडीगढ़। दिल्ली में सिंघू बार्डर पर चले कथित किसान आंदोलन को आम किसानों का आंदोलन कहने वाले लोगों की आंखों से एक बार फिर पर्दा उठा है। इस आंदोलन में किसानों के नाम पर नक्सलियों, खालिस्तानियों व कथित किसानों का जमावड़ा हुआ था और इन तीनों की जुगलबंदी एक बार फिर सामने आई है। चंडीगढ़-मोहाली के बीच खालिस्तानी आतंकियों की रिहाई की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में किसान संगठनों का भी प्रवेश हो गया है।
पंजाब के नक्सली विचारधारा वाले किसान संगठनों ने चंडीगढ़-मोहाली सीमा पर बंदी सिखों (खालिस्तानी आतंकियों) की रिहाई की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों का समर्थन किया है। किसान संगठन 20 फरवरी को कट्टरपंथियों के कौमी इंसाफ मोर्चा के समर्थन में विरोध-प्रदर्शन करेंगे। किसान संगठनों के आगे आ जाने से जहां सरकार की चिंता बढ़ गई है, वहीं कट्टरपंथियों को भी मंच मिलना शुरू हो गया है। शनिवार को कट्टरपंथियों ने मोहाली के एसएसपी आवास के पास खालिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगाए थे।
बंदी आतंकियों की रिहाई के लिए चल रहे आंदोलन में 32 किसान संगठनों ने बीते दिनों फगवाड़ा में बैठक कर निर्णय लिया कि मोर्चा के समर्थन में मोहाली में अपना कैडर भेजेंगे। इसमें किरती किसान यूनियन, भाकियू (कादियां), भाकियू (क्रांतिकारी), भाकियू (उगराहां), पंजाब किसान यूनियन और क्रांतिकारी किसान यूनियन के कार्यकर्ता शामिल होंगे। किरती किसान यूनियन के रमिंदर सिंह पटियाला ने कहा कि हम चाहते हैं कि सजा पूरी कर चुके सभी कैदियों को रिहा किया जाना चाहिए। मोर्चा का समर्थन करना 32 किसान संगठनों का सामूहिक निर्णय था, इसलिए कोई भी इससे पीछे नहीं हट सकता है।
उधर कई किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों और सदस्यों ने मोहाली में विरोध स्थल का दौरा किया है। उल्लेखनीय है कि 8 फरवरी को प्रदर्शन तब हिंसक हो गया था, जब कौमी इंसाफ मोर्चा ने बंदी सिखों की रिहाई के लिए चंडीगढ़ स्थित मुख्यमंत्री भगवंत मान के आवास के बाहर धरना देने की घोषणा की थी। किसान आंदोलन के दौरान भी जहां खालिस्तानी नारेबाजी होती रही और झंडे फहराये जाते रहे वहीं आंदोलन के दौरान किसान यूनियन जेलों में बंद नक्सली आतंकियों की रिहाई की भी मांग कर चुकी हैं।
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