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बचा लीं बेटियां

असम में बाल विवाह की स्थितियां भयावह रही हैं और माना जाता था कि उन्हें सुधार पाना आसान नहीं है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा उनके संरक्षक बनकर खड़े हो गए हैं

by दिव्य कमल बोरदोलोई
Feb 13, 2023, 02:46 pm IST
in भारत, असम, विश्लेषण
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असम में बाल विवाह की स्थितियां भयावह रही हैं और माना जाता था कि उन्हें सुधार पाना आसान नहीं है। कभी इसके लिए सामाजिक बातें की जाती थीं, तो कभी कानूनों में मौजूद कमियों का हवाला दिया जाता था। लेकिन इस बार हिमंता सरकार ने बाल विवाह के विरुद्ध निर्णायक कार्यवाही की है। जो बच्चियां दुलहन बनाई जा सकती थीं, अब उन्हें डरने की आवश्यकता नहीं रह गई है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा उनके संरक्षक बनकर खड़े हो गए हैं

हर साल जब असम देश में मातृ मृत्यु दर में सबसे ऊपर होता है, तो कांग्रेस और एआईयूडीएफ जैसी विपक्षी पार्टियां राज्य सरकार की आलोचना करने से नहीं चूकतीं। लेकिन वे इसके मूल कारणों का विश्लेषण करने की कोशिश कभी नहीं करती हैं, जबकि यह साबित हो चुका है कि बाल विवाह और किशोर गर्भावस्था राज्य में उच्च एमएमआर के प्रमुख कारणों में से एक हैं अब मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा मूल कारण को जड़ से खत्म करने में जुट गए हैं, तब भी इन राजनीतिक दलों, खासकर मुस्लिम नेताओं को यह हजम नहीं हो रहा। वे राज्य सरकार द्वारा की जा रही कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं। वहीं, मुख्यमंत्री ने कहा है कि सरकार अपने फैसले पर अडिग है और 2026 तक असम में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लगा देगी। हालांकि, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने राज्य सरकार के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय जाने की बात कही है।

राज्यव्यापी अभियान
हिमंता बिस्व सरमा की अगुआई वाली भाजपा सरकार ने एक कैबिनेट फैसले के बाद बीती 23 जनवरी से असम में बाल विवाह की सामाजिक बुराई के विरुद्ध कठोर कदम उठाना शुरू कर दिया है। बाल विवाह के विरुद्ध व्यापक अभियान में राज्य सरकार ने बाल विवाह के 8,000 से अधिक मामले चिह्नित किए हैं। अभी तक राज्य पुलिस ने 4,074 मामले दर्ज किए हैं। 3 फरवरी से अब तक 2,528 अपराधियों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिनमें 75 काजी और 78 महिलाएं भी हैं।

गिरफ्तार आरोपियों के लिए गोलपारा में 3,000 की क्षमता वाला मटिया ट्रांजिट कैम्प और सिलचर में एक स्टेडियम को अस्थायी जेल में बदला गया है। अधिकांश गिरफ्तारियों मध्य और निचले जिलों से हुई हैं, जहां बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिये रहते हैं। निचले जिलों में धुबरी, बरपेटा, डारंग, बिस्वनाथ चराली, चिरांग, बोंगईगांव, गोलपारा, जबकि मध्य असम के नागांव और मोरीगांव जिले हैं। धुबरी में 370, होजई में 255, मोरीगांव में 224, उदलगुरी में 235 और कोकराझार में 204 मामले दर्ज किए गए हैं। सर्वाधिक गिरफ्तारी बिश्वनाथ जिले में हुई है, जहां 80 प्रतिशत से अधिक आबादी हिंदू है।

केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेशी घुसपैठियों की बहुतायत आबादी वाले बरपेटा में किशोर गर्भावस्था दर 28.7 प्रतिशत, धुबरी में 27.9 प्रतिशत, गोलपारा में 24.1 प्रतिशत, गोलपारा में 22.3 प्रतिशत, कोकराझार में 21.9 प्रतिशत, डारंग में 21.1 प्रतिशत और मोरीगांव में 20 प्रतिशत है। राज्य में मातृ और नवजात शिशु मृत्यु दर के अधिक होने के पीछे यह सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है।

 

सरकार अडिग
मुख्यमंत्री का कहना है, ‘‘बाल विवाह के विरुद्ध हमारा अभियान सार्वजनिक स्वास्थ्य और जन कल्याण के लिए है, क्योंकि असम में किशोर गर्भावस्था अनुपात बहुत खतरनाक स्तर पर है। 16.8 प्रतिशत लड़कियां किशोरावस्था में मां बन जाती हैं। इसलिए हम इस अभियान को तब तक जारी रखने का संकल्प लेते हैं, जब तक अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर लेते। मैं आग्रह करता हूं कि लोग इस हानिकारक प्रवृत्ति को नियंत्रित करने में हमारा सहयोग करें।’’

2011 की जनगणना के अनुसार, असम में 44 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले ही हो गई थी। इनमें अधिकांश बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं। बाल विवाह के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई को जरूरी बताते हुए मुख्यमंत्री हिमंता ने कहा, ‘‘क्या मैं अपनी बेटी की शादी 12-13 की उम्र में होने दूंगा? बाल विवाह की बुराई से लाखों लड़कियों को बचाने के लिए एक पीढ़ी को इस दर्द को सहना ही होगा।’’ साथ ही, राज्य सरकार ने स्पष्ट किया कि इस सामाजिक कुरीति के विरुद्ध कार्रवाई तटस्थ और पंथनिरपेक्ष है। और किसी समुदाय विशेष को निशाना नहीं बनाया जा रहा।

राज्य सरकार के अनुसार, 14 से कम उम्र की लड़कियों की शादी करने पर पॉक्सो कानून तथा 14-18 वर्ष के बच्चों की शादी करने पर बाल विवाह रोकथाम अधिनियम-2006 के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी के साथ विवाह को भी अवैध घोषित किया जाएगा। वर 14 वर्ष से कम का होगा तो उसे सुधार गृह भेजा जाएगा। 23 जनवरी, 2023 को कैबिनेट बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि बाल विवाह कराने वाले काजियों, पुरोहितों व परिवार के सदस्यों पर भी मुकदमा दर्ज किया जाएगा।

चिंता का कारण
दरअसल, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) और भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा प्रस्तुत नमूना पंजीकरण प्रणाली सांख्यिकीय रिपोर्ट चिंताजनक है। इसमें कुछ स्वास्थ्य संचेतकों में राज्य का प्रदर्शन खराब है। खासकर, असम में मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) देश में सबसे अधिक है। इसके पीछे बाल विवाह को प्रमुख कारण बताया गया है। 2019-20 के बीच किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, असम में 20 से 24 वर्ष की आयु की 31.8 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष की कानूनी उम्र से पहले हो गई है, जो राष्ट्रीय औसत से 23.3 प्रतिशत से अधिक है। चिंताजनक बात यह है कि सर्वेक्षण की अवधि के दौरान 15 से 19 वर्ष की 11.7 प्रतिशत महिलाएं मां बन चुकी थीं या गर्भवती थीं, जबकि राष्ट्रीय औसत 6.8 प्रतिशत था। इसलिए हिमंता सरकार को यह कठोर फैसला लेना पड़ा।

राज्य सरकार बाल विवाह पर अंकुश लगाना चाहती है, क्योंकि एनएफएचएस-5 में कहा गया है कि राज्य की कुल प्रजनन दर (प्रति महिला द्वारा जन्म दिए गए बच्चों की औसत संख्या) 1.9 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत 2 प्रतिशत से कम है। लेकिन मुस्लिम महिलाओं में यह दर 2.4 प्रतिशत है, जो देश में सबसे अधिक है। हालांकि, राज्य में मुसलमानों के बीच प्रजनन दर 2005-06 के 3.6 के उच्च स्तर से काफी कम हो गया है। लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती संख्या और मुसलमानों में उच्च प्रजनन दर के कारण राज्य में जनसांख्यिकी परिवर्तन की आशंका जताई जा रही है, जो चिंता का विषय है। 1971 और 1991 के बीच असम में मुस्लिम आबादी 77.42 प्रतिशत बढ़ी, जबकि हिंदू आबादी 41.89 प्रतिशत बढ़ी। इस अवधि के दौरान मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत 55.04 प्रतिशत से अधिक रही। इसी समय, हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत 48.38 प्रतिशत से कम दर्ज की गई।

जनसांख्यिकीय परिवर्तन के खतरे को बांग्लादेश से लगते दो जिलों धुबरी और कोकराझार में जनसंख्या वृद्धि दर से समझा जा सकता है। धुबरी में, जहां लगभग 85 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। 2001 और 2011 के बीच एक दशक में इनकी जनसंख्या वृद्धि दर 24 प्रतिशत थी। वहीं, पड़ोसी कोकराझार जिले में ज्यादातर बोडो जनजाति का प्रभुत्व है, यह वृद्धि केवल 5 प्रतिशत है। एनएफएचएस-5 के अनुसार, धुबरी में कुल महिला आबादी में से 50.8 प्रतिशत की शादी 18 वर्ष से पहले ही हो गई थी। वहीं, एक अन्य मुस्लिम बहुल जिला दक्षिण सलमारा बाल विवाह के मामले में 44.7 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है। इसकी तुलना दीमा हसाओ के वनवासी बहुल जिले से करें, जहां यह संख्या महज 16.5 प्रतिशत है।

बाल विवाह रोकथाम अधिनियम, 2006

इस कानून के अनुसार, बाल विवाह अवैध है, लेकिन शून्य नहीं है। इस कानून की धारा-3 के तहत अधिकांश मामलों में विवाह ‘शून्य’ माने जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में यह लड़की या लड़के पर निर्भर करता है। इसमें बाल विवाह पर कठोर सजा का प्रावधान है। बाल विवाह करने वाले, कराने वाले, निर्देशित करने या विवाह के लिए उकसाने पर भी सजा का प्रावधान है। आरोपी को दो साल कैद या एक लाख रुपये तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। यदि कोई नाबालिग (लड़का/लड़की) विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए अदालत में जाता है तो इसे शून्य किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए वह याचिका वयस्क होने के दो साल के भीतर या उससे पहले दाखिल कर सकता है। यदि वर-वधू चाहें तो वयस्क होने पर विवाह को जारी रखकर वैधता प्राप्त कर सकते हैं। इस कानून के प्रावधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति या संगठन बाल विवाह रुकवाने के लिए अदालत का आदेश ला सकता है। हालांकि कुछ मामलों में बाल विवाह कानून लागू नहीं होता, क्योंकि मुसलमानों का अपना पर्सनल लॉ है, जिसमें 15 वर्ष की लड़की को ‘वयस्क’ माना जाता है।

एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट

        असम

  •  1 लाख से अधिक लड़कियों की शादी कच्ची उम्र में 2019-20 में
  •  1 प्रतिशत की वृद्धि बाल विवाह में 2015-16 के मुकाबले 2019-20 में
  •  11.7 प्रतिशत लड़कियां कम उम्र में ही गर्भवती हो जाती हैं
  •  50 प्रतिशत से अधिक विवाह कानूनी उम्र से पहले ही हो रहे हैं

    देश
  •  23 प्रतिशत महिलाओं (20 से 24 वर्ष की) का विवाह 18 वर्ष से पहले हो जाता है एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार
  •  47प्रतिशत महिलाओं का विवाह 2005-06 (एनएफएचएस-3) में, 2015-16 में 27 प्रतिशत हो गया एनएफएचएस-4 (2015-16) में

फैसले का समर्थन
एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार, असम में शिशु मृत्यु दर भी उच्च स्तर है। राज्य में औसतन 31 प्रतिशत विवाह निषिद्ध आयु में होते हैं। राज्य के पुलिस महानिदेशक जी.पी. सिंह कहते हैं, ‘‘हमारी मंशा किसी को परेशान करने की नहीं है। हम अगले 2-3 वर्ष में राज्य में बाल विवाह की सामाजिक कुरीति को पूरी तरह से रोकना चाहते हैं। लेकिन अब हमारी सबसे बड़ी चुनौती 60 से 90 दिन के अंदर आरोप-पत्र दाखिल करने की है।’’ वहीं, असम राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एएससीपीसीआर) की अध्यक्ष सुनीता चांगकाकोटी ने कहा कि सरकार के इस कदम का लंबे समय से इंतजार था। यह बाल विवाह के खतरे के विरुद्ध समाज को एक मजबूत संदेश देगा।

बाल विवाह पर कानूनी कार्रवाई की सराहना करते हुए प्रोफेसर ज्ञानेंद्र बर्मन कहते हैं, ‘‘असम के मुस्लिम बहुल (जहां बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं) जिलों, जैसे-धुबुरी, गोलपारा, दक्षिण सलमारा और मनकचर में बाल विवाह खतरनाक अनुपात में बढ़ा है। इन जिलों में प्रजनन दर भी अधिक है। राज्य में हिंदुओं की प्रजनन दर 1.6 प्रतिशत, जबकि बांग्लादेशी घुसपैठियों में यह दर 3.4 प्रतिशत से अधिक है।

15-19 वर्ष में मां बनने या गर्भवती होने वाली महिलाओं की दर इन जिलों में तुलनात्मक रूप से अधिक है। स्कूल जाने की उम्र में एक लड़की को शादी के लिए मजबूर करना एक अपराध है। संयुक्त राष्ट्र ने भी बाल विवाह को मानवाधिकार का उल्लंघन करार दिया है। हमारे यहां बाल विवाह को लेकर कानून है, लेकिन यह बिना दांत के बाघ की तरह बना रहा, क्योंकि इसे कड़ाई से लागू ही नहीं किया गया। अब हिमंता सरकार ने इस मुद्दे को संबोधित किया है और वह इस खतरे को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है। समाज का नेतृत्व करने वालों को भी इस मुद्दे के हल के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।’’

समिति की सिफारिश

केंद्रीय महिला एंव बाल विकास मंत्रालय ने जून 2020 में जया जेटली की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। इसका उद्देश्य विवाह और मातृत्व के बीच संबंधों की जांच करना था, जिसमें गर्भावस्था, प्रसव व उसके बाद मां-शिशु का स्वास्थ्य, पोषण की स्थिति, शिशु मृत्यु दर, मातृत्व मृत्यु दर, कुल प्रजनन दर, जन्म के समय लिंगानुपात, बाल लिंगानुपात और स्वास्थ्य व पोषण से जुड़े दूसरे विषय शामिल थे। समिति को प्रजनन स्वास्थ्य, महिलाओं में शिक्षा आदि कारकों पर उपाय भी सुझाने थे। इसने दिसंबर 2020 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें महिलाओं के विवाह की उम्र बढ़ाकर 21 वर्ष करने का सुझाव दिया गया था।

आंकड़े शर्म के

कर्नाटक- बाल विवाह में अव्वल। बीते साल 894 मामले दर्ज हुए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में बीते 5 साल में 1,065 बाल विवाह हुए, जबकि 10,352 शिकायतें दर्ज।
तमिलनाडु- बाल विवाह में दूसरे स्थान पर। 2021 में 649 मामले दर्ज हुए। 2022 में जनवरी से अगस्त तक हर दिन औसतन 10 मामले आए। इस दौरान 38 जिलों में 2,516 मामले दर्ज। इनमें 1,782 बाल विवाह को रोका गया। 
पश्चिम बंगाल- देश में तीसरे स्थान पर। यहां 2021 में 619 मामले दर्ज हुए। एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार, 20-24 वर्ष की 41.6 प्रतिशत महिलाओं की शादी किशोरावस्था में हुई, जिनमें 16.4 प्रतिशत गर्भवती थीं।
असम- बाल-विवाह में चौथे स्थान पर है, जहां 2021 में 596 मामले दर्ज हुए।
महाराष्ट्र- यह 5वें स्थान पर है, जहां 2021 में 280 मामले दर्ज हुए।
तेलंगाना- 2021 में 248 दर्ज मामलों के साथ देश में छठवें स्थान पर है।
हरियाणा- 2021 में 202 दर्ज मामलों के साथ देश में 7वें स्थान पर है।
आंध्र प्रदेश- बाल विवाह के मामले में 8वें स्थान है। यहां 2021 में 194 मामले दर्ज हुए।
राजस्थान- देश में 9वें स्थान पर है, जहां 2021 में केवल 93 मामले दर्ज किए गए।
झारखंड- 11वें स्थान पर है, जहां 32.2 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं। राज्य में 5.8 प्रतिशत लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी जाती है, जिसका नतीजा लगभग 37.9 प्रतिशत शिशु मृत्यु दर के रूप में दिखाई देता है। यहां 15-19 आयु वर्ग की अधिकांश महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं।

ये कर रहे विरोध
ऐसा नहीं है कि बाल विवाह कुरीति के विरुद्ध राज्य सरकार के साहसिक कदम की सभी सराहना ही कर रहे हैं। कांग्रेस, एआईयूडीएफ और एआईएमआईएम जैसे राजनीतिक दल इसका विरोध भी कर रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन बोरा चाहते हैं कि सरकार बाल विवाह जैसे अपराध करने वालों के प्रति इंसानियत दिखाए। वहीं, बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाली एआईयूडीएफ का कहना है कि भाजपा सरकार राज्य में मुस्लिम आबादी को निशाना बना रही है।

ये पार्टियां इस सच्चाई को कभी स्वीकार नहीं करतीं कि राज्य में 70 प्रतिशत से अधिक बाल विवाह मुसलमानों में होते हैं। एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि बाल विवाह के विरुद्ध कदम उठाने से पहले सरकार को मुसलमानों में साक्षरता दर को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए थी। ओवैसी ने उस समय भी राज्य सरकार के फैसले की आलोचना की थी, जब मुस्लिम छात्रों को आधुनिक शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए सूबे के लगभग 4000 मदरसों को नियमित स्कूलों में बदला गया था।

प्रो. हिरोक ज्योति शर्मा का मानना है कि भारत में राजनीतिक दल ही नहीं, मुस्लिम देशों और वामपंथियों द्वारा समर्थित प्रचार वेबसाइट्स सहित विदेशी मीडिया असम सरकार के कदम को मुस्लिम विरोधी बता रहा है। ये वही हैं, जो चाहते हैं कि मुसलमान केवल मदरसों में ही पढ़ें। कांग्रेस, वामपंथी सहित तमाम विपक्षी दल कभी मुसलमानों में शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने की बात नहीं करते। अगर सरकार समुदाय की बेहतरी के लिए कुछ करना चाहती है तो ये राजनीतिक दल अल्पसंख्यक अधिकारों के नाम पर इसका विरोध करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

कर्नाटक ने दिखाया रास्ता
हिमंता सरकार ने कर्नाटक से प्रेरित होकर यह कदम उठाया है। कनार्टक में बाल विवाह रोकने के उद्देश्य से बसवराज बोम्मई की अगुआई वाली भाजपा सरकार ने बीते माह 21 जनवरी को कैबिनेट बैठक में ‘पूर्ति योजना’ के लिए 12.51 करोड़ रुपये जारी करने की मंजूरी दी थी। इस योजना के तहत महिला एवं बाल कल्याण विभाग एक साल तक जागररूकता अभियान चलाएगा। इसमें गैर-सरकारी संगठनों को भी शामिल किया जाएगा। कोप्पला जिले में पायलट आधार पर लागू इस योजना के सफल होने के बाद इसे कुछ अन्य जिलों में लागू किया जाना है। इसके तहत लड़कियों को शिक्षित किया जाएगा और उन्हें कौशल विकास कार्यक्रमों की पेशकश की जाएगी। इस कार्यक्रम को राज्य के बागलकोट, विजयपुरा, बेलागवी, कलबुर्गी और रायचूर जिलों में लागू किया जाएगा। इसमें केंद्र सरकार भी मदद कर रही है। इससे पहले, अप्रैल 2017 में कर्नाटक राज्य विधानमंडल ने बाल विवाह अधिनियम की धारा 3 में एक उप-धारा (1 ए) को शामिल किया था। इसमें बाल विवाह को शुरू से ही अमान्य करार दिया जाता है। बाल विवाह चाहे कानून लागू होने से पहले हुआ हो या बाद में, सभी को इसके दायरे में रखा गया है।

क्या है पॉक्सो कानून?

पॉक्सो, यौन अपराधों से बच्चों (18 वर्ष से कम आयु के लड़के/लड़कियों) का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम का संक्षिप्त नाम है। बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 में संशोधन किया गया, ताकि इसे और कठोर बनाया जा सके। यह लैंगिक रूप से तटस्थ कानून है, जिसके तहत नाबालिग लड़के/लड़कियों को अवैध यौन गतिविधियों के विरुद्ध संरक्षण दिया गया है। बाल यौन शोषण के दायरे में केवल बलात्कार या गंभीर यौन आघात ही नहीं आते, बल्कि बच्चों को गलत तरीके से छूना, जबरन यौन कृत्य के लिए विवश करना, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, इरादतन यौनिक कृत्य दिखाना आदि गतिविधियां भी आती हैं। पॉक्सो के तहत यौन उत्पीड़न एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है यानी आरोपी को पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। यह कानून नाबालिग की सहमति को वैध नहीं मानता है। इस कानून में यौन अपराधों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना करने का प्रावधान है। संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते के तहत भारत पर सभी बच्चों को सभी प्रकार के यौन शोषणों से बचाने का कानूनी दायित्व है, क्योंकि भारत भी इसका एक पक्षकार है। पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा-4, धारा-5, धारा-6, धारा-9, धारा-14, धारा-15 और धारा-42 में संशोधन बाल यौन अपराध के पहलुओं से उचित तरीके से निबटने के लिए किया गया है।

क्या कहता है सर्वोच्च न्यायालय?
सर्वोच्च न्यायालय ने बाल विवाह को सामाजिक बुराई करार देते हुए कहा था कि यह एक लड़की के जीवन और स्वास्थ्य को खतरे में डालता है। अदालत ने ऐसे विवाह को शून्य घोषित करने का सुझाव देते हुए कहा था कि परिवार के सदस्यों और ऐसे विवाह को प्रोत्साहन देने वालों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए। अदालत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा था कि सभी राज्य विधानमंडल बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति पर रोक लगाने वाले कर्नाटक सरकार के फार्मूले को अपना सकते हैं। सरकार का यह कदम मील का पत्थर साबित हो सकता है।

‘‘बाल विवाह के विरुद्ध हमारा अभियान सार्वजनिक स्वास्थ्य और जन कल्याण के लिए है, क्योंकि असम में किशोर गर्भावस्था अनुपात बहुत खतरनाक स्तर पर है। 16.8 प्रतिशत लड़कियां किशोरावस्था में मां बन जाती हैं। इसलिए हम इस अभियान को तब तक जारी रखने का संकल्प लेते हैं, जब तक अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर लेते। मैं आग्रह करता हूं कि लोग इस हानिकारक प्रवृत्ति को नियंत्रित करने में हमारा सहयोग करें।’’ –मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा 

हालांकि मुस्लिम लड़कियों के निकाह की न्यूनतम उम्र से जुड़ी एक याचिका शीर्ष अदालत में लंबित है। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने जून 2022 में एक फैसले में कहा था कि 15 की उम्र पूरी करने के बाद मुस्लिम लड़की अपनी पसंद के लड़के से निकाह कर सकती है। यानी इस प्रकार का विवाह बाल विवाह रोकथाम अधिनियम, 2006 के अनुसार अवैध नहीं हैं। उच्च न्यायालय के इस फैसले को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी। इसके बाद शीर्ष अदालत ने अगले आदेश तक उच्च न्यायालय के फैसले को मिसाल के तौर पर नहीं लेने पर भी रोक लगा दी है। नवंबर 2022 में ऐसे ही एक मामले में शीर्ष अदालत ने पंजाब सरकार को नोटिस जारी किया था। हरियाणा वाले मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पक्षकार बनने के लिए अपील करेगा। मुस्लिम पर्सनल लॉ 15 साल की अवयस्क लड़की को निकाह की अनुमति देता है।

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पाकिस्तान पर भारत की डिजिटल स्ट्राइक : ओटीटी पर पाकिस्तानी फिल्में और वेब सीरीज बैन, नहीं दिखेगा आतंकी देश का कंटेंट

Brahmos Airospace Indian navy

अब लखनऊ ने निकलेगी ‘ब्रह्मोस’ मिसाइल : 300 करोड़ की लागत से बनी यूनिट तैयार, सैन्य ताकत के लिए 11 मई अहम दिन

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ

पाकिस्तान की आतंकी साजिशें : कश्मीर से काबुल, मॉस्को से लंदन और उससे भी आगे तक

Live Press Briefing on Operation Sindoor by Ministry of External Affairs: ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की प्रेस कॉन्फ्रेंस

ओटीटी पर पाकिस्तानी सीरीज बैन

OTT पर पाकिस्तानी कंटेंट पर स्ट्राइक, गाने- वेब सीरीज सब बैन

सुहाना ने इस्लाम त्याग हिंदू रीति-रिवाज से की शादी

घर वापसी: मुस्लिम लड़की ने इस्लाम त्याग अपनाया सनातन धर्म, शिवम संग लिए सात फेरे

‘ऑपरेशन सिंदूर से रचा नया इतिहास’ : राजनाथ सिंह ने कहा- भारतीय सेनाओं ने दिया अद्भुत शौर्य और पराक्रम का परिचय

उत्तराखंड : केन्द्रीय मंत्री गडकरी से मिले सीएम धामी, सड़कों के लिए बजट देने का किया आग्रह

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