अमेरिका सहित तमाम देशों की तथाकथित सेकुलर, पश्चिमी निहित स्वार्थी ताकतों के कथित दबाव में काम करने वाली अनेक संस्थाएं, संगठन, गुट भारत से शायद चिढ़े हुए हैं। चिढ़ इस बात की है कि सार्वजनिक रूप से खुद को गर्व से हिन्दू कहने वाला व्यक्ति यहां प्रधानमंत्री कैसे बन गया और कैसे वह मंदिरों में जाकर पूजानुष्ठान करने की ‘हिम्मत’ दिखा रहा है। चिढ़ इस बात से भी है कि एक अत्यंत मामूली परिवार से आने वाले नरेन्द्र मोदी आज भारत ही नहीं, दुनिया के ‘भाग्यविधाता’ कैसे माने जा सकते हैं! यही वजह है कि 2014, जबसे नरेन्द्र मोदी ने भारत की सत्ता के सूत्र हाथ में लिए हैं, एक खास इस्लामपरस्त, ईसाई मिशनरी परस्त गुट भारत का वैश्विक मंचों पर बदनाम करने की मुहिम छेड़े हुए है।
जिस प्रकार 2020, 2021 और 2022 में अमेरिका का ‘पांथिक स्वतंत्रता आयोग’ भारत को ‘विशेष चिंता के देश’ के तौर पर चिन्हित करने के लिए अमेरिकी प्रशासन पर दबाव बनाता आ रहा है, वैसी कोशिशें इस साल भी वहां सक्रिय इस्लामवादी गुट अमेरिकी ईसाई मिशनरियों के संगठनों की मदद से कर रहे हैं। जबकि पिछले साल इस तरह का मुद्दा उठने के बाद भारत ने स्पष्ट कहा था कि उक्त ‘पांथिक स्वतंत्रता आयोग’ की ग्रेडिंग की हैसियत ही क्या है जो इसे अमेरिकी सरकार गंभीरता से लेगी।
इस तथाकथित आयोग ने अमेरिकी सरकार से अप्रैल 2022 में अपनी रिपोर्ट के जरिए यह कहा था कि पांथित स्वतंत्रता की बदतर स्थिति को देखते हुए भारत को ‘विशेष चिंता का देश’ माना जाना चाहिए। उस वक्त विशेष वार्ता के लिए अमेरिका गए भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि उक्त आयोग की हैसियत क्या है जो उसकी रिपोर्ट और ग्रेडिंग को कोई महत्व दिया जाए। जयशंकर ने एक ताकतवर देश के रूप में उभर रहे भारत की झलक दिखाई थी। लेकिन इस साल फिर से भारत विरोधी कट्टर इस्लामी गुट अपनी उस नफरती कोशिश में जुटे हुए हैं, ऐसे संकेत मिल रहे हैं।
तथाकथित आयोग ने अमेरिकी सरकार से अप्रैल 2022 में अपनी रिपोर्ट के जरिए यह कहा था कि पांथित स्वतंत्रता की बदतर स्थिति को देखते हुए भारत को ‘विशेष चिंता का देश’ माना जाना चाहिए। उस वक्त विशेष वार्ता के लिए अमेरिका गए भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि उक्त आयोग की हैसियत क्या है जो उसकी रिपोर्ट और ग्रेडिंग को कोई महत्व दिया जाए। जयशंकर ने एक ताकतवर देश के रूप में उभर रहे भारत की झलक दिखाई थी।
2021 में लौटकर देखें तो तब अमेरिका के इस ‘हिन्दूफोबिक’ आयोग ने कहा था कि ‘भारत में पांथिक स्वतंत्रता की स्थिति ‘काफी खराब’ हो गई है। तब इस स्वतंत्र निकाय ने सिफारिश की थी कि भारत को ‘विशेष चिंता’ वाले देशों की सूची में डाल देना चाहिए। उसके अनुसार, भारत ‘पांथिक स्वतंत्रता के मानदंडों पर सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों की श्रेणी’ में आना चाहिए।
दिलचस्प बात है कि अमेरिका के विदेश विभाग का अपना एक अंतरराष्ट्रीय पांथिक स्वतंत्रता कार्यालय है, इसलिए वह उक्त स्वतंत्र आयोग की सिफारिशों से बंधा हुआ नहीं है। 2020, 2021, 2022 में उसने भारत के संदर्भ में उस आयोग की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया था।
2021 की अपने रिपोर्ट में वह कथित इस्लाम और ईसाइयत परस्त आयोग कहता है, “इस साल भारत सरकार ने अपने हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को बढ़ावा दिया है।। यह चीज मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों और अन्य पांथिक अल्पसंख्यकों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।” रिपोर्ट में आगे कहा गया, “सरकार ने मौजूदा तथा नए कानूनों के माध्यम से देश के पांथिक अल्पसंख्यकों के प्रति शत्रुतापूर्ण परिवर्तनों के माध्यम से राष्ट्रीय और राज्यीय, दोनों स्तरों पर हिंदू राज्य की अपने वैचारिक एजेंडे पर चलना जारी रखा।”
इस पांथिक स्वतंत्रता आयोग की हिमाकत का अंदाजा रिपोर्ट में भारत की आंतरिक परिस्थिति पर बेवजह की टिप्पणी से भी होता है। भारत के संदर्भ में रिपोर्ट आगे कहती है, ”सरकार ने उस पर उंगली उठाने वालों की ‘आवाज को दबाया’ है”। याद करिए, यही सब जुमले हैं कांग्रेस पार्टी के नेता और लुटियन मीडिया अक्सर मोदी सरकार के विरोध में उछालता आ रहा है। रिपोर्ट कश्मीरी एक्टिविस्ट खुरान परवेज की गिरफ्तारी और अक्तूबर 2020 में पादरी स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी पर भी ‘आंसू’ बहाती है। कन्वर्जन के विरुद्ध बने कानूनों से भी इस ‘आयोग’ को चिढ़ है।
भारत को विकास के पथ पर तेजी से आगे ले जाना जिन निहित स्वार्थी ताकतों को रास नहीं आ रहा, और जिनकी ‘अल्पसंख्यकों’ के नाम पर ‘मुफ्त की मलाई’ रुक गई है, वे भारत में रहकर ऐसे ‘आयोगों’ को खाद—पानी उपलब्ध करा रहे हैं। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने तो अभी पिछले दिनों पूरे भारत में घूम—घूमकर भारत को विश्व स्तर पर बदनाम करने की पूरी कोशिश की थी।
अमेरिकी समाजविज्ञानी साल्वाटोर बाबोनेस ने कल एक ट्वीट किया था, जिसमें संकेत किया था कि इस्लामी एक्टिविस्ट समूह अमेरिकी ईसाई मिशनरियों की ‘लॉबिंग’ की ताकत का इस्तेमाल करके भारत को ‘विशेष चिंता वाला देश’ घोषित कराने की कोशिशों में जुटी हुई हैं। सिडनी विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे, भारत में विशेष रुचि रखने वाले साल्वाटोर इस इस्लामी—ईसाई मिशनरी गठजोड़ को ‘नापाक गठजोड़’ कहते हैं।
आखिर इन भारत विरोधी भारतीय राजनीतिक दलों और विदेशी ताकतों को भारत को उक्त सूची में शामिल कराकर क्या मिल जाएगा? या भारत का क्या नुकसान होगा? इस दृष्टि से इसे देखें तो, सबसे पहले तो दुनिया के दो सबसे बड़े और ताकतवर लोकतांत्रिक देशों में संबंधों में दरार आएगी, अमेरिका और भारत के बीच जो भी रणनीतिक, कूटनीतिक सहयोग बढ़ा है वह जाता रहेगा। तीसरे, भारत जिस तेजी से प्रगति कर रहा है और दुनिया के देशों में अग्रिम पंक्ति में खड़ा हुआ है, उस स्थिति का धक्का पहुंचेगा। और ये नफरती ‘ताकतें’ यही तो चाहती हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि जब तक मोदी के हाथ में शासन के सूत्र हैं, तब तक वे भारत को गर्त में ले जाने के अपने मंसूबों को अमल में नहीं ला पाएंगे। इसलिए यह समय है जब भारत के हर नागरिक को सभी तरह के अंतर्विरोधों को भुलाकर भारत के साथ खड़े रहने की जरूरत है।
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