नई दिल्ली। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के उपलक्ष्य में साल भर चलने वाले समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती ने आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व विश्व को श्रेष्ठ बनाने, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने और पर्यावरण व प्रकृति की संभाल कर रखने का आह्वान किया था। आजादी के अमृत-काल में देश उन सुधारों का साक्षी बन रहा है, जो स्वामी दयानंद की प्राथमिकताओं में थीं। आज विवादों में फंसे विश्व में स्वामी दयानंद का बताया मार्ग करोड़ों लोगों में आशा का संचार कर रहा है। जो बीज स्वामी जी ने रोपा था, वह आज विशाल वट-वृक्ष के रूप में पूरी मानवता को छाया दे रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्तमान समय में भी जिन विषयों को उठाना कठिन होता है, उस पर स्वामी दयानंद ने आज से 150-200 साल पूर्व कार्य किया है। उन्होंने भेदभाव और कुरीतियों को दूर करने तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में प्रयास किए। स्वामी दयानंद ने उस समय प्रयास किया जब यूरोप में महिला अधिकारों का विषय दूर की बात होती थी। आज हम देश को बिना भेदभाव की नीतियों और प्रयासों के साथ आगे बढ़ते देख रहे हैं। गरीब, पिछड़ों और वंचितों की सेवा पहला यज्ञ है। ‘वंचितों को वरीयता’ इस मंत्र को लेकर हर गरीब के लिए मकान, उसका सम्मान और हर व्यक्ति के लिए चिकित्सा उपलब्ध करवाई जा रही है।
प्रधानमंत्री ने स्वामी दयानंद की भेदभाव दूर करने और लोगों को भारत की प्राचीन संस्कृति व परंपरा से जोड़ने के प्रयासों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि गुलामी के दौर में अध्यात्म और आस्था आडंबर का रूप धारण कर लेती हैं। उनका प्रयास उस दौर में था, जब विदेशियों की ओर से भारतीय परंपरा के खिलाफ ‘नरेटिव’ गढ़े जा रहे थे। स्वामी दयानंद परंपरा को दूषित करने के प्रयास के उस दौर में ‘संजीवनी’ बूटी बनकर आए थे। उन्होंने कहा कि आज देश पूरे गर्व के साथ ‘अपनी विरासत पर गर्व’ का आह्वान कर रहा है। आज देश पूरे आत्मविश्वास के साथ कह रहा है कि हम देश में आधुनिकता लाने के साथ ही अपनी परंपराओं को भी समृद्ध करेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पूजा-पाठ और रीति रिवाज से अलग भारत में धर्म का निहितार्थ बिल्कुल अलग रहा है। वेदों ने जिस जीवन पद्धति को परिभाषित किया है, उसमें कर्तव्य ही सबसे पहला मानव धर्म है। कर्तव्यों का भान करते हुए हमारे ऋषियों और मुनियों ने राष्ट्र और समाज के कई आयामों की जिम्मेदारी उठाई और भारतीय संतों ने भाषा, योग और दर्शन जैसे विभिन्न विषयों पर अपना योगदान दिया। स्वामी दयानंद जी ने भी आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ गुरुकुलों के जरिए भारतीय परिवेश में ढली शिक्षा व्यवस्था की वकालत की थी। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए देश ने अब इसकी भी बुनियाद मजबूत की है।
उन्होंने कहा कि भारत आज विश्व के लिए एक पथ प्रदर्शक की भूमिका निभा रहा है। हमने प्रकृति से समन्वय के विजन को अपनाते हुए एक ग्लोबल मिशन ‘लाइफ’ जिसका अर्थ है ‘लाइफस्टाइल फॉर इन्वार्मेंट’ की भी शुरुआत की है। प्रधानमंत्री ने आर्य समाज से आग्रह किया कि वह गांव-गांव तक प्राकृति खेती ले जाने का संकल्प लें। साथ ही उसे अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करें।
1875 में की थी आर्यसमाज की स्थापना
महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को हुआ था। वे समाज सुधारक थे। उन्होंने 1875 में तत्कालीन सामाजिक असमानताओं से निपटने के लिए आर्य समाज की स्थापना की थी। आर्य समाज ने सामाजिक सुधारों और शिक्षा पर जोर देकर देश की सांस्कृतिक एवं सामाजिक जागृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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