महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती : समाज और स्वतंत्रता की जगाई अलख
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती : समाज और स्वतंत्रता की जगाई अलख

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने जहां एक ओर वेदों का प्रचार किया, वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता की लड़ाई में भी भाग लिया। यही कारण है कि उनके अनेक शिष्यों ने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया

by प्रो. (डॉ.) व्यासनन्दन शास्त्री ‘वैदिक’
Feb 12, 2023, 12:36 pm IST
in भारत
महर्षि दयानन्द सरस्वती

महर्षि दयानन्द सरस्वती

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

फाल्गुन दशमी, विक्रमी संवत् 1881 तद्नुसार 12 फरवरी, 1824 ई. को गुजरात के टंकारा में एक बालक का जन्म हुआ। वही बालक बाद में देश-दुनिया में महर्षि दयानन्द सरस्वती के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

उन्नीसवीं शताब्दी भारत के इतिहास का घोरतम अंधकारमय युग था। इस गहन अंधकार में लोग एक ऐसी दिव्य-आत्मा की कामना कर रहे थे, जिसमें गौतम, कपिल, कणाद, कुमारिल भट्ट का पांडित्य हो, जिसमें हनुमान और भीष्म पितामह का ब्रह्मचर्य हो, जो शंकराचार्य जैसा योगी हो। यही नहीं, उसमें भीम जैसा बल, महात्मा बुद्ध का अनुपम त्याग और वैराग्य, श्रीराम का आदर्श, श्रीकृष्ण की नीति, शिवाजी की निमित्ता, महाराणा प्रताप जैसा शौर्य हो। भगवान ने लोगों की कामना पूरी की और शनिवार, फाल्गुन दशमी, विक्रमी संवत् 1881 तद्नुसार 12 फरवरी, 1824 ई. को गुजरात के टंकारा में एक बालक का जन्म हुआ। वही बालक बाद में देश-दुनिया में महर्षि दयानन्द सरस्वती के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

धीर-वीर, गंभीर और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी युगद्रष्टा महर्षि दयानन्द की उन्नीसवीं सदी के महापुरुषों में अलग पहचान है। विशेषकर ब्रह्मा से लेकर जैमिनी मुनि के पश्चात् वेदों पर अपनी गहनतम गहराई के लिए और उनकी ऋतम्भरा बुद्धि मानवमात्र के हितचिन्तन के लिए विशेष ध्यातव्य है। महर्षि दयानन्द का सर्वहितकारी चिन्तन और उनकी दिव्य दृष्टि पूर्णत: सत्य धर्म पर आधारित रही। वैदिक सभ्यता और संस्कृति के रक्षण, पोषण और प्रसारण में उनका संपूर्ण जीवन समर्पित रहा।

महर्षि दयानन्द के चिन्तन का सर्वोपरि आधार वेद रहे हैं। इसीलिए दयानन्द नाम की याद आते उसके साथ एक और नाम की याद स्वत: हो आती है, वह है वेद। दयानन्द यदि देह है तो वेद उसकी आत्मा। दयानन्द से पूर्व वेदों की वह स्थिति नहीं थी जो आज है। वेद संस्कृत-साहित्य के विशाल अम्बार की सबसे निचली सतह में पड़े थे। जीवन-लीला समाप्त हो जाती थी, पर उस तक किसी की पहुंच ही नहीं हो पाती थी। इस स्थिति को दयानन्द ने एक ही दृष्टि में भांप लिया। उन्होंने एक ही झटके में स्थिति को पलट दिया। जो ऊपर था, वह नीचे हो गया और जो नीचे था, वह ऊपर आ गया। परिणामत: दयानन्द के हाथ सर्वप्रथम वेद लगे, मानो सच-झूठ की कसौटी हाथ लग गई।

दयानन्द ने उद्घोष किया, ‘‘वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है, जो इस पर खरा उतरे, उसे ले लो, शेष सब छोड़ दो। व्यर्थ के व्यामोह में मत पड़ो।’’ इस प्रकार का कथन दयानन्द के ज्ञान का मथा हुआ मक्खन था। लगभग 150 वर्ष पूर्व इस प्रकार की उक्ति के लिए अत्यंत साहसपूर्ण चिन्तन और आत्मविश्वास की आवश्यकता थी। महर्षि दयानन्द ने वेद के लिए जो कुछ किया, वह अद्भुत है। वेद नाम में जो इतनी शक्ति भर गई है, उसे जो गौरव प्राप्त हुआ है, जो तेजस्विता और राष्ट्रीय मानस में पुन: प्रतिष्ठित हुई है, इन सबका श्रेय महर्षि दयानन्द को जाता है।

वेदों का अस्तित्व तो स्वामी दयानन्द से पूर्व भी था, परन्तु उस तक पहुंच किसी की नहीं थी। मध्यकालीन आचार्यों में एक भी ऐसा नहीं हुआ, जो वेदों तक पहुंचा हो। चाहे आचार्य शंकर हों, बल्लभ हों, निम्बार्क हों, या रामानुज, सबकी पहुंच उपनिषदों, गीता और वेदान्त-दर्शन तक थी। उनके मतों का आधार ये तीन ग्रंथ रहे, जिन्हें ‘प्रस्थानत्रयी’ के नाम से जाना जाता है। दयानन्द ने ‘प्रस्थानत्रयी’ को छोड़कर ‘वेदत्रयी’ को अपनाया। यही आर्ष-परंपरा थी। इसी कारण दयानन्द सरस्वती को ‘वेदोद्धारक’ अथवा ‘वेदों वाले ऋषि’ कहा जाता है।

‘‘वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है, जो इस पर खरा उतरे, उसे ले लो, शेष सब छोड़ दो। व्यर्थ के व्यामोह में मत पड़ो।’’
इस प्रकार का कथन दयानन्द के ज्ञान का मथा हुआ मक्खन था।– दयानन्द ने उद्घोष

राष्ट्रधर्म और चिन्तन
महर्षि दयानन्द सरस्वती चाहते तो अकेले ही मोक्ष की प्राप्ति कर लेते, किन्तु उन्होंने 18 घंटे की समाधि छोड़कर राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि माना और अर्चन्नु स्वराज्यम्् (ऋग्वेद) यतेमहि स्वराज्ये (यजुर्वेद) और वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता: (यजुर्वेद) इत्यादि मंत्रों के प्रमाण से उनका राष्ट्रधर्म प्रखर हो उठा। 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। स्वामी दयानन्द के गुरु बिरजानन्द दण्डी स्वामी, उनके गुरु स्वामी पूर्णानंद और उनके गुरु स्वामी ओमानंद ने बड़ा योगदान किया था।

उन सबकी आयु क्रमश: 33 वर्ष, 79 वर्ष, 108 वर्ष और 160 वर्ष की थी। उसमें लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, नाना साहेब, बिहार के जगदीशपुर के राजा वीर कुंवर सिंह जैसे क्रांतिकारियों सहित अनेक साधु, सन्त, महात्माओं ने भाग लिया था। उस समय स्वामी दयानन्द सरस्वती ‘दस्स बाबा’ के नाम से जाने जाते थे। इसकी चर्चा महान् क्रान्तिवीर विनायक दामोदर सावरकर की पुस्तक ‘द वार आफ इंडिपेंडेंस’ तथा पं. घासीराम उपाध्याय कृत ‘स्वामी दयानन्द सरस्वती की जीवनी’ में मिलती है।

राष्ट्र को नवीन चेतना प्रदान करने में आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। 15 अगस्त, 1947 को जिस स्वाधीनता यज्ञ की पूर्णाहुति हुई, उसे प्रारंभ करने वालों में से महर्षि दयानन्द भी एक थे। महात्मा गांधी को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाने वाले गोपाल कृष्ण गोखले के प्रेरणास्रोत महादेव गोविन्द रानाडे 1875 में स्वामी दयानन्द के संपर्क में आए। स्वामी दयानन्द ने 1874 में ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के आठवें समुल्लास में स्वराज्य की घोषणा करते हुए लिखा था, ‘‘आर्यावर्त में आर्यों का अखंड, स्वतंत्र स्वाधीन निर्भय राज्य इस समय नहीं हुआ है। जो कुछ है वह भी विदेशियों के पदाक्रान्त है। कुछ से राजा स्वतंत्र हैं। दुर्दिन जब आता है तब देशवासियों को अनेक प्रकार के दु:ख भोगने पड़ते हैं। कोई कितना भी करे परन्तु स्वदेशी राज्य सर्वोपरि उत्तम होता है।’’ श्रीमती एनी बेसेन्ट ने कहा था, ‘‘भारत भारतवासियों के लिए है, इसके प्रथम उद्घोषक स्वामी दयानन्द सरस्वती थे।’’

जिस समय महर्षि दयानन्द का कार्यक्षेत्र में आगमन हुआ उस समय अंग्रेजों का अखंड साम्राज्य था। महर्षि ने भारत की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है, ‘‘यह आर्यावर्त देश ऐसा है कि जिसके सदृश भूगोल में दूसरा देश नहीं है। आर्यावर्त देश ही सच्चा पारसमणि है, जिसको लोहा रूपी विदेशी छूते ही स्वर्ण अर्थात् धनाढ्य हो जाते हैं।’’ स्वामी दयानन्द ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के एकादश समुल्लास में भारतवासियों के हृदय में स्वाभिमान को जागृत किया। उन्होंने लिखा, ‘‘सृष्टि से लेकर पांच सहस्र वर्ष पूर्व आर्यों का सार्वभौम चक्रवर्ती अर्थात् भूगोल में सर्वोपरि एकमात्र राज्य था।’’

महर्षि दयानन्द ने भारतवर्ष की परतंत्रता के मूल कारणों को जाना। उन्होंने अनुभव किया कि मानसिक स्वतंत्रता तथा सामाजिक स्वाधीनता के बिना राजनीतिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता नहीं आ सकती। अत: उन्होंने वैदिक धर्म को आधार बनाकर आध्यात्मिक चेतना जगाकर लोगों के आत्मगौरव को जागृत किया तथा सामाजिक विषमता को भी दूर कर राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने का काम किया।

स्वामी दयानन्द ने 1874 में ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के आठवें समुल्लास में स्वराज्य की घोषणा करते हुए लिखा था, 

दुर्दिन जब आता है तब देशवासियों को अनेक प्रकार के दु:ख भोगने पड़ते हैं। कोई कितना भी करे परन्तु स्वदेशी राज्य सर्वोपरि उत्तम होता है।’’

श्रीमती एनी बेसेन्ट ने कहा था, ‘‘भारत भारतवासियों के लिए है, इसके प्रथम उद्घोषक स्वामी दयानन्द सरस्वती थे।’’

स्वामी दयानन्द सरस्वती अपने प्रवचनों और लेखों के माध्यम से भारतीयों को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अहर्निश प्रेरित करते रहे। दानापुर (बिहार) में जोन्स नामक एक अंग्रेज व्यापारी से वातार्लाप करते हुए स्वामी जी ने कहा, ‘‘यदि भारतीयों में एकता और सच्ची देशभक्ति के भाव उत्पन्न हो जाएं तो विदेशी शासकों को अपना बोरिया-बिस्तर उठाकर तुरन्त जाना पड़ेगा।’’ महर्षि दयानन्द ने 1876 में ‘आर्याभिविनय’ नामक पुस्तक ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना एवं उपासना के लिए लिखी थी। इस पुस्तक में अनेकश: स्वराज्य और चक्रवर्ती राज्य की ईश्वर से प्रार्थना की गई है।

आर्य समाज को माता और स्वामी दयानन्द को पिता मानने वाले लाला लाजपत राय ने पंजाब से अंग्रेजों के विरुद्ध सिंहनाद किया। 1919 में जब ब्रिटिश सरकार ने रोलेक्ट एक्ट बिल पास किया तो उसके विरोध में जुलूस का नेतृत्व करते हुए आर्य नेता स्वामी श्रद्धानन्द ने गरजते हुए कहा था, ‘‘चला दो गोलियां, संन्यासी का सीना खुला है।’’ आज भी चांदनी चौक, दिल्ली में इस घटना से जुड़ा स्मारक बना हुआ है।

महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन (1921) को गति देने वाले स्वामी श्रद्धानन्द के असंख्य आर्य वीर सैनिक थे। आर्य समाज के गुरुकुलों में भारत माता के वीर सपूत प्रशिक्षित किए जाते थे, जो भारत माता के लिए मर-मिटने के लिए तैयार रहते थे। कांग्रेस के इतिहास लेखक डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने लिखा है, ‘‘भारत की स्वतंत्रता में भाग लेने वालों में 85 प्रतिशत आर्यसमाजी थे।’’ बता दें कि नेहरू जी ने एक सर्वेक्षण कराया था। इस सर्वेक्षण की रपट के आधार पर ही डॉ. रमैया ने उपरोक्त बात लिखी है।

आर्य वीरांगनाएं
भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में आर्य वीरांगनाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। आर्य समाज मेरठ की सदस्या विद्यावती, सत्यवती, बरसो देवी, प्रकाशवंती तथा शकुन्तला देवी की देशभक्ति अतुलनीय है। 1983 में अजमेर में आयोजित महर्षि दयानन्द निर्वाण शताब्दी समारोह का उद्घाटन करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था, ‘‘एक समय भारत में विधवा को अपमान और अशुभ मानकर बहिष्कृत और प्रताड़ित किया जाता था, किन्तु आज मुझ विधवा स्त्री को देखने और सुनने के लिए लाखों की संख्या में लोग आए हैं, ऋषि-महात्मा और विद्वानों का आशीर्वाद मिल रहा है। इसका पूरा का पूरा श्रेय महर्षि दयानन्द और आर्य समाज को जाता है।’’

हैदराबाद के निजाम ने जब हिन्दुओं के मन्दिर जाने पर रोक लगा दी और मन्दिरों में मूर्ति पूजा, घंटा-घड़ियाल बजाने पर प्रतिबंध लगा दिया तब महात्मा नारायण स्वामी तथा स्वामी स्वतंत्रतानन्द के संयुक्त आह्वान पर संपूर्ण देश के आर्यसमाजी हैदराबाद पहुंचे, सत्याग्रह किया और कठोर यातनाएं सहीं। हैदराबाद के निजाम ने हिन्दुओं के मन्दिरों में पूजा-पाठ पर लगे प्रतिबंध को हटाया और आर्यों की जीत हुई।

सशस्त्र क्रान्ति में योगदान
पं. श्याम जी कृष्ण वर्मा महर्षि दयानन्द के प्रथम शिष्य थे। उन्होेंने महर्षि की आज्ञा से इंग्लैंड जाकर भारतीय युवकों को भारत की स्वतंत्रता के लिए संगठित एवं प्रेरित किया। पं. श्याम जी कृष्ण वर्मा के प्रभावोत्पादक विचारों से प्रभावित होकर मदन लाल ढींगरा, भाई परमानन्द, लाला हरदयाल, विनायक दामोदर सावरकर जैसे अनेक वीर क्रान्तिकारियों ने देश के लिए प्राणोत्सर्ग किया। राष्ट्र की बलिवेदी पर आर्य समाज के प्रचारक, उपदेशक तथा अनुयायियों ने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए जेल, कालापानी और फांसी को गले लगाया। काकोरी कांड के शहीद पं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह तथा विष्णुशरण दुब्लिश आर्य समाज की पाठशाला में ही दीक्षित हुए थे। बिस्मिल नित्य हवन करने वालों में से एक थे। शहीदे-आजम भगत सिंह के दादा सरदार अर्जन सिंह आर्य समाजी थे।

महर्षि दयानन्द के अनन्य शिष्यों में उनका नाम बड़े आदर से लिया जाता है। वे नित्य हवन करने वाले उच्च कोटि के उपदेशक थे। भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह आर्य समाज के सदस्य थे। सुखदेव भी आर्यकुमार सभाओं में जाते थे। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस द्वारा संचालित आजाद हिन्द फौज का योगदान राष्ट्र की स्वतंत्रता में अभूतपूर्व है। इसके तीन प्रमुख नायकों में से सहगल आर्य समाजी
परिवार की देन हैं। उनके पिता महाशय अछरूराम जी जाने-माने आर्यसमाजी थे।

हैदराबाद सत्याग्रह-1935 में हैदराबाद के निजाम ने जब हिन्दुओं के मन्दिर जाने पर रोक लगा दी और मन्दिरों में मूर्ति पूजा, घंटा-घड़ियाल बजाने पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया तब तत्कालीन सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष महात्मा नारायण स्वामी तथा स्वामी स्वतंत्रतानन्द के संयुक्त आह्वान पर संपूर्ण देश के आर्यसमाजी हैदराबाद पहुंचे, सत्याग्रह किया और कठोर यातनाएं सहीं। इस क्रम में बहुत से लोगों ने अपने सिर कटाए और बलिदान हो गए। फलत: हैदराबाद के निजाम ने हिन्दुओं के मन्दिरों में पूजा-पाठ पर लगे प्रतिबंध को हटाया और आर्यों की जीत हुई।
धन्य हैं महर्षि दयानन्द सरस्वती और धन्य है हमारा भारतवर्ष।
(लेखक रामेश्वर महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष हैं)

Topics: राष्ट्रधर्म और चिन्तनMadan Lal Dhingraकाकोरी कांडविनायक दामोदर सावरकरexistence of Vedasमहान् क्रान्तिवीर विनायक दामोदर सावरकरBhai Parmanandशहीद पं. राम प्रसाद बिस्मिलVinayak Damodar SavarkarNational religion and thinkingद वार आफ इंडिपेंडेंसLala Hardayalठाकुर रोशन सिंहगीताgreat revolutionary Vinayak Damodar Savarkarवेदान्त-दर्शनHyderabad Satyagrahaविष्णुशरण दुब्लिश आर्य समाजहनुमानThe War of Independenceआर्य वीरांगनाएंKakori Kandशहीदे-आजम भगत सिंह के दादा सरदार अर्जन सिंह आर्यभीष्म पितामहGitaसशस्त्र क्रान्तिMartyr Pt. Singh AryaHanumanब्रह्मचर्यVedanta-philosophyआर्याभिविनयBhishma Pitamahशंकराचार्य जैसा योगी होArya heroinesपुस्तक ईश्वर की स्तुतिBrahmacharyaमहर्षि दयानन्द का सर्वहितकारी चिन्तनArmed Revolutionमदन लाल ढींगराBe a yogi like Shankaracharyaसत्य धर्मAryabhinayभाई परमानन्दMaharishi Dayanand's all-beneficial thinkingवेदों का अस्तित्वPraise of Godहैदराबाद सत्याग्रहलाला हरदयालSatya Dharma
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

विनायक दामोदर सावरकर

सावरकर जयंती पर विशेष : हिंदू राष्ट्र के मंत्रद्रष्टा

सीता राम राधे श्याम मंदिर का विहंगम दृश्य

गयाना में विराजे 16 फीट ऊंचे बजरंग बली, भारतीय समुदाय में आनंद, उच्चायोग ने प्रतिमा को बताया भरोसे और दोस्ती की निशानी

तुलसी गबार्ड को अमृत कलश भेंट करते पीएम मोदी

पीएम मोदी ने महाकुंभ का अमृत कलश तो तुलसी गबार्ड ने भेंट की तुलसी की माला, गीता और भगवान कृष्ण में गहरी आस्था

सोमवती अमावस्या पर लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी

भोपाल में गीता पाठ करते आचार्य

गीता पाठ का बना विश्व रिकॉर्ड, भोपाल में 5000 से अधिक आचार्यों ने किया सामूहिक पाठ, मुस्लिम महिलाएं भी हुईं शामिल

काकोरी एक्शन ब्रिटिश राज की कायरता का प्रमाण, 4,679 रुपए की लूट के लिए खर्च किए 10 लाख

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Donald Trump

टैरिफ युद्ध अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने ने बसाया उन्ही के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिलवुमन का झलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

Loose FASTag होगा ब्लैकलिस्ट : गाड़ी में चिपकाना पड़ेगा टैग, नहीं तो NHAI करेगा कार्रवाई

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies