40 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद अब मेरी कला को सम्मान मिला है। वर्षों पहले जिन युवाओं के हाथ में बंदूक थी, आज वह काष्ठ कला में काम कर रहे हैं। — अजय कुमार मंडावी
छत्तीसगढ़ के कांकेर निवासी अजय कुमार मंडावी को काष्ठ कला में उत्कृष्ट कार्य के लिए वर्ष 2023 के पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया है। अजय के पिता आरपी मंडावी मिट्टी की मूर्तियां बनाते थे। उनकी माता सरोज मूर्तियों पर पेंटिंग करती थीं। इससे बालक अजय के मन में भी कला के प्रति प्रेम जगा और वे लकड़ी से खिलौने बनाने लगे।
काष्ठ कला, लिम्का बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड, भगवद्गीता, राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत, बाइबिल
स्नातक होने पर जब जनपद पंचायत में नौकरी मिली तो अजय ने काष्ठ कला को गति देना प्रारंभ किया। काष्ठ पर नक्काशी की अजय कुमार मंडावी की गोंड जनजातीय कला को धीरे-धीरे मान्यता मिलने लगी। वर्ष 2006 में उन्हें प्रदेश स्तर पर काष्ठ कला के लिए पुरस्कृत किया गया। वर्ष 2007 में उन्होंने लिम्का बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह बनाई और, 2008 में फिर चित्रकूट में पुरस्कृत हुए।
वर्ष 2010 में अजय कुमार मंडावी की इस कला को एक नई दिशा तब मिली जब कांकेर के कलेक्टर एन.के. खाखा ने उन्हें जेल में बंद कैदियों को काष्ठ कला का प्रशिक्षण देने का अवसर दिया। वे अब तक 250 नक्सली और 150 अन्य कैदियों को प्रशिक्षण दे चुके हैं। लगभग सभी प्रशिक्षित कैदी रिहा हो चुके हैं और काष्ठ कला का काम कर गुजर-बसर कर रहे हैं।
अजय कुमार मंडावी के कांकेर स्थित घर से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी है। उसी के पास अपने फार्म हाउस में कला केंद्र बनाकर वह लकड़ियों पर नक्काशी कर नई-नई कलाकृतियां बनाते हैं। वे लकड़ी पर भगवद्गीता, राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत, बाइबिल, प्रसिद्ध कवियों की रचनाएं उकेर चुके हैं।
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