‘‘मैं तो उस दूब घास की तरह हूं, जिसे कुचलकर लोग आगे बढ़ते रहते हैं। इसके बाद भी दूब घास हर स्थिति में उगती है और पूजा में भी काम आती है।’’ -पद्मश्री धनीराम टोटो
भारत और भूटान की सीमा पर एक गांव है टोटोपाड़ा। यह पश्चिम बंगाल में पड़ता है। जिला मुख्यालय अलीपुरद्वार से इस गांव की दूरी है 77 किलोमीटर। इसी गांव के निवासी हैं धनीराम टोटो। 59 वर्षीय धनीराम सरकारी कर्मचारी हैं। इस समय इनकी नियुक्ति टोटोपाड़ा में ही है। टोटो एक जनजाति समुदाय है।
इस समय इस समुदाय की कुल जनसंख्या केवल 1,600 है। धनीराम अपने समुदाय के ऐसे तीसरे व्यक्ति हैं, जिन्होंने माध्यमिक तक की शिक्षा ग्रहण की है। घोर अभाव के बीच उन्होंने कूच बिहार में पढ़ाई की। संयोग से उनकी नौकरी लग गई। इसके बाद उन्होंने अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा अपने समाज के विकास के लिए लगाना शुरू किया।
धनीराम कहते हैं, ‘‘मैं तो उस दूब घास की तरह हूं, जिसे कुचलकर लोग आगे बढ़ते रहते हैं। इसके बाद भी दूब घास हर स्थिति में उगती है और पूजा में भी काम आती है।’’ उन्होंने यह भी बताया कि टोटो संस्कृति पर निरंतर प्रहार हो रहे हैं। हमारे लोग इस प्रहार को झेलने योग्य बन जाएं, यही एक मात्र कामना है। -धनीराम टोटो
उन्होंने टोटोपाड़ा के बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की। इसके साथ ही टोटो संस्कृति को सहेजने के लिए लेखन कार्य किया। अब तक वे बांग्ला भाषा में तीन उपन्यास लिख चुके हैं। उनका अनुवाद टोटो और अंग्रेजी में भी हुआ है। धनीराम के प्रयासों से गांव के एक मात्र टोटो मंदिर, जिसे डेमसा कहा जाता है, का भी जीर्णोद्धार हुआ है।
अब भी वे अपनी गांठ से पैसा लगाकर समाज की सेवा करते हैं। धनीराम कहते हैं, ‘‘मैं तो उस दूब घास की तरह हूं, जिसे कुचलकर लोग आगे बढ़ते रहते हैं। इसके बाद भी दूब घास हर स्थिति में उगती है और पूजा में भी काम आती है।’’ उन्होंने यह भी बताया कि टोटो संस्कृति पर निरंतर प्रहार हो रहे हैं। हमारे लोग इस प्रहार को झेलने योग्य बन जाएं, यही एक मात्र कामना है।
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