दलाई लामा के समर्पित अनुयायी के रूप में कर्मा वांग्चु अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में सामाजिक गतिविधियों में काफी सक्रिय रहे और मोनपा संस्कृति एवं परंपराओं के संरक्षण के लिए निरंतर कार्य करते रहे। — कर्मा वांग्चु
पद्मश्री सम्मान के लिए मरणोपरांत चुने गए अरुणाचल प्रदेश के तवांग निवासी कर्मा वांग्चु को मोनपा संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण के लिए जाना जाता है। तवांग जिले के सेरू गांव में 1936 में जन्मे कर्मा वांग्चु राज्य सरकार में मंत्री बनने वाले जिले के पहले व्यक्ति थे। वे तोमो रिबा सरकार में स्वास्थ्य, परिवहन और सहकारिता विभाग के मंत्री थे। वर्ष 1978 से 1994 तक अपने राजनीतिक जीवन में वांग्चु ने राज्य के सीमावर्ती इलाकों में सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं प्रोत्साहन के लिए कार्य किया।
राजनीति में आने से पूर्व श्री वांग्चु खुफिया अधिकारी के रूप में मैकमोहन लाइन पर तैनात रहे थे। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय उन्हें बुमला, मागो-थिंगबू और जेमिथांग जैसे इलाकों में भारतीय सेना के लिए खुफिया जानकारी एकत्र करने का दायित्व सौंपा गया था।
कर्मा वांग्चु 16 वर्ष की उम्र में तिब्बत के ल्हासा शहर गए थे और पोटाला पैलेस में 14वें दलाई लामा से मुलाकात की थी। दलाई लामा से उनके रिश्ते बने रहे और दलाई लामा दो बार- 1997 और 2003 में – तवांग में वांग्चु के आवास पर गए थे। दलाई लामा के समर्पित अनुयायी के रूप में वांग्चु सामाजिक गतिविधियों में काफी सक्रिय रहे और मोनपा संस्कृति एवं परंपराओं के संरक्षण के लिए बिना थके कार्य करते रहे।
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राजनीति में आने से पूर्व श्री वांग्चु खुफिया अधिकारी के रूप में मैकमोहन लाइन पर तैनात रहे थे। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय उन्हें बुमला, मागो-थिंगबू और जेमिथांग जैसे इलाकों में भारतीय सेना के लिए खुफिया जानकारी एकत्र करने का दायित्व सौंपा गया था।
समाजसेवी के रूप में श्री वांग्चु ने चोयफेलिंग पब्लिक स्कूल की स्थापना कर 1256 से अधिक बच्चों को आवासीय सुविधा के साथ मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराई। इनमें अधिकांश मागो, थिंगबू और जेमिथांग जैसे सीमावर्ती गांवों के अत्यंत गरीब, अनाथ और वंचित बच्चे थे।
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