जब से मुझे पद्म पुरस्कार के बारे में पता चला है, मैं बहुत प्रसन्नता महसूस कर रहा हूं। मैं 4-5 साल की उम्र से ही सरिंंदा बजा रहा हूं। दिल्ली, कामाख्या से लेकर दार्जिलिंग तक हर जगह सरिंदा बजाया है। – मंगला कांति रॉय
पद्मश्री सम्मान के लिए चुने गए पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के सरिंदा वादक मंगला कांति रॉय 102 वर्ष के हैं। वह संभवत: सबसे पुराने सरिंदा वादक और लोक संगीतज्ञ हैं। वह सरिंदा के माध्यम से पक्षियों की अनोखी आवाज निकालने के लिए जाने जाते हैं।
वे पिछले आठ दशकों से सरिंदा वाद्य यंत्र को बढ़ावा दे रहे हैं। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि वह इस बात से खुश हैं कि उन्हें प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया है। साथ ही, वे यह भी कहते हैं कि कला के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के बावजूद उन्हें इससे कोई आर्थिक मदद नहीं मिली।
आज सरिंदा बजाने वाले ढूंढने पर भी नहीं मिलते हैं। सरिंदा के संरक्षण को बहुत जरूरी बताते हुए वह कहते हैं कि जब वह पांच साल के थे, तभी से यह लोक वाद्य यंत्र बजाना शुरू कर दिया था। वह 8 दशकों से कार्यशालाओं और प्रदर्शनों के माध्यम से सरिंदा वाद्य यंत्र का प्रचार और संरक्षण कर रहे हैं।
उनकी आय का एकमात्र स्रोत सरकारी समारोहों में सरिंदा बजाने से मिलने वाली मामूली राशि है, जो सूचना एवं संस्कृति विभाग देता है। लेकिन वह इस बात के लिए संतोष जताते हैं कि इस कला ने उन्हें भरपूर सम्मान दिया। मंगला समुदाय में व्यापक रूप से सम्मानित हैं। 2017 में पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें बंग रत्न से सम्मानित किया था।
कोरोना काल में जब लॉकडाउन लगाया गया तो सामाजिक समारोहों के आयोजन पर भी पाबंदी थी। उस समय उनके पास आय का दूसरा कोई साधन नहीं था। इसलिए लॉकडाउन के दौरान उन्हें बहुत परेशानी झेलनी पड़ी। वे इसे लेकर भी चिंता जताते हैं कि आज सरिंदा बजाने वाले ढूंढने पर भी नहीं मिलते हैं।
सरिंदा के संरक्षण को बहुत जरूरी बताते हुए वह कहते हैं कि जब वह पांच साल के थे, तभी से यह लोक वाद्य यंत्र बजाना शुरू कर दिया था। वह 8 दशकों से कार्यशालाओं और प्रदर्शनों के माध्यम से सरिंदा वाद्य यंत्र का प्रचार और संरक्षण कर रहे हैं।
टिप्पणियाँ