इस पुरस्कार के लिए चुना जाना मेरे लिए आश्चर्य की बात है। यह प्राचीन लोक कला को बढ़ावा देने में बहुत सहायक होग। इस सम्मान के लिए मैं भगवान और अपने पूर्वजों का धन्यवाद करता हूं। – मुनिवेंकटप्पा
पद्मश्री सम्मान के लिए चुने गए कर्नाटक के चिक्काबल्लापुर जिले के पिंडापापनहल्ली गांव के रहने वाले मुनिवेंकटप्पा लोक वाद्य यंत्र थमाटे के संरक्षण और इसके प्रचार-प्रसार करने के लिए जाने जाते हैं।
हाथ से बजाए जाने वाले ड्रम पर लोक धुन बजाने वाले 77 वर्षीय मुनिवेंकटप्पा युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। थमाटे को अपना जीवन बनाने वाले मुनिवेंकटप्पा 60 साल से इस कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। जब वे 17 वर्ष के थे, तब उन्होंने इस वाद्य यंत्र को बजाना सीखा। वे नई पीढ़ी तक इस विधा को पहुंचा रहे हैं। अब तक वे हजारों युवाओं इसका प्रशिक्षण दे चुके हैं।
कन्नड़ और संस्कृति विभाग ने राज्य सरकार द्वारा आयोजित त्योहारों, विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय खेल, जिला उत्सवों, मैसूर दशहरा में मुनिवेंकटप्पा को थमाटा बजाने के का न्योता देना शुरु किया। कर्नाटक ही नहीं, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी उनकी विशेष पहचान है। मुनिवेंकटप्पा अमेरिका, जापान सहित कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं।
गरीब वंचित परिवार से संबंध रखने वाले 77 वर्षीय मुनिवेंकटप्पा चौथी कक्षा तक पढ़े हैं। जब वे 17 साल के थे, तब एक दुर्घटना में उनके पिता पापन्ना का निधन हो गया था। इसके बाद गांव में थमाटे बजाने वाला कोई नहीं था। तब गांव के लोगो ने मुनिवेंकटप्पा से थमाटे बजाना शुरू करने का आग्रह किया।
इसके बाद उन्होंने इसे बजाना शुरू किया। बाद में उन्होंने थमाटे पर लोक धुन बजाना सीखा और इसे अपना पेशा बनाया। फिर उन्होंने 13 लोगों की एक टीम बनाई और मेलों, त्यौहारों, समारोहों आदि में थमाटे बजाने लगे।
इसे देखकर कन्नड़ और संस्कृति विभाग ने राज्य सरकार द्वारा आयोजित त्योहारों, विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय खेल, जिला उत्सवों, मैसूर दशहरा में मुनिवेंकटप्पा को थमाटा बजाने के का न्योता देना शुरु किया। कर्नाटक ही नहीं, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में भी उनकी विशेष पहचान है। मुनिवेंकटप्पा अमेरिका, जापान सहित कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं।
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