मैं पुरस्कार के लिए सरकार का बहुत आभारी हूं। इसने मुझे ढेर सारी खुशियां दी हैं। यह पुरस्कार उन लोगों के लिए है, जिन्होंने मुझे यह हुनर सिखाया है। – गुलाम मोहम्मद जाज
पद्मश्री सम्मान के लिए चुने गए कश्मीर के 81 वर्षीय शिल्पकार गुलाम मोहम्मद जाज 12 साल की उम्र से संतूर बना रहे हैं। कश्मीर में 200 साल से बेहतरीन संतूर बनाने वाले परिवार की वह 8वीं पीढ़ी हैं। पुश्तैनी परंपरा को जीवित रखने वाले वह आखिरी व्यक्ति हैं। उन्हें कश्मीर का आखिरी शिल्पकार भी कहा जाता है।
यह मेरे और कश्मीर घाटी के लिए गर्व की बात है, क्योंकि हमारे काम को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है। वह कहते हैं, ‘मुझसे पहले परिवार में सात पीढ़ियां ये वाद्य यंत्र बनाती रही हैं। – गुलाम मोहम्मद जाज
गुलाम मोहम्मद जम्मू-कश्मीर में संतूर, रबाब और सारंगी जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्र बनाने वाले इकलौते कलाकार हैं। इनके बनाए वाद्य यंत्र न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। ये यूरोप, अमेरिका और मध्य पूर्व के संगीतकारों के लिए भी वाद्य यंत्र बनाते हैं।
पद्मश्री मिलने पर खुशी जताते हुए उन्होंने कहा कि यह मेरे और कश्मीर घाटी के लिए गर्व की बात है, क्योंकि हमारे काम को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है। वह कहते हैं, ‘मुझसे पहले परिवार में सात पीढ़ियां ये वाद्य यंत्र बनाती रही हैं।
यह शिल्पकला हमेशा परिवार के भीतर रही। मैंने पैसों के लिए यह काम नहीं किया।’ एक घटना को याद करते हुए वह कहते हैं कि परिवार के एक शुभचिंतक ने भविष्यवाणी की थी कि जाज परिवार में संतूर बनाने की कला केवल सात पीढ़ियों तक चलेगी। मैं 8वीं पीढ़ी का हूं लेकिन मैं इन वाद्य यंत्रों को बनाता आ रहूंगा। लेकिन मेरे साथ यह कला खत्म हो जाएगी। उनका दावा है कि उनके बनाए वाद्य यंत्र भारत में कहीं नहीं बनाए जाते।
कश्मीरी संतूर में वैसे तो 100 तार होते हैं, लेकिन जब भारतीय शास्त्रीय संगीत में इसका प्रयोग शुरू हुआ तो तारों की संख्या कम कर दी गई। उनके द्वारा निर्मित समलंबाकार संतूर में 87 तार और 28 ब्रिज होते हैं।
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