हमें अपनी जनजातीय संस्कृति तथा उसके साहित्य को सदा स्मरण रखना होगा। अपनी मातृ भाषा कभी भूलना नहीं चाहिए, उसे संरक्षित करना चाहिए। मैं इस सम्मान के लिए केन्द्र सरकार का आभारी हूं। -प्रो. बी.रामकृष्ण रेडडी
आंध्र प्रदेश के उस्मानिया विश्वविद्यालय और पोट्टी श्रीरामुलु तेलुगु विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान विषय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर बी. रामकृष्ण रेड्डी को साहित्य के क्षेत्र में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया है। उनका शिक्षा, विशेष रूप से जनजातीय और दक्षिण भारतीय भाषाओं जैसे कुवी, मांडा और कुई के संरक्षण में अनूठा योगदान है।
प्रो. रेड्डी ने नि:संदेह जनजातीय भाषाओं को दूसरी भाषाओं से जोड़ने वाला एक सांस्कृतिक सेतु बनाया है। जनजातीय संस्कृति और उसके साहित्य को जीवित रखने के लिए प्रो. रेड्डी ने मांडा-अंग्रेजी और उड़िया-अंग्रेजी शब्दकोशों का एक मसौदा तैयार किया है। उन्होंने इसी विषय पर पांच पुस्तकों का सह-लेखन भी किया है। प्रो. रेड्डी ने आंध्र प्रदेश के कुप्पम में द्रविड़ विश्वविद्यालय की स्थापना भी की है।
हमें अपनी मातृभाषा को कभी भूलना नहीं चाहिए, उसको संरक्षित करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। -प्रो. रेड्डी
जनजातीय साहित्य को संरक्षित करने की आवश्यकता के संदर्भ में प्रो. रेड्डी का मानना है कि लोग भले सोचते हों कि एक प्रतिष्ठित कॉलेज या विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करके वे जीवन में बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। अगर किसी छात्र ने अपनी मातृभाषा में अध्ययन किया है, तो वह भी जीवन में बहुत कुछ पा सकता है।
हमें अपनी जनजातीय संस्कृति तथा उसके साहित्य को सदा स्मरण रखना होगा। प्रो. रेड्डी का आग्रह है कि हमें अपनी मातृभाषा को कभी भूलना नहीं चाहिए, उसको संरक्षित करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। इस सम्मान के लिए उन्होंने केन्द्र सरकार का आभार व्यक्त किया है।
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