बीबीसी डॉक्यूमेंट्री: दुष्प्रचार की टूलकिट BBC के विरुद्ध ब्रिटेन में लामबंद हुए प्रवासी भारतीय
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बीबीसी डॉक्यूमेंट्री: दुष्प्रचार की टूलकिट BBC के विरुद्ध ब्रिटेन में लामबंद हुए प्रवासी भारतीय

अनेक अनिवासी भारतीय संगठनों ने एक विरोध रैली करके बीबीसी को भारत विरोध से बाज आने की चेतावनी दी। लंदन के अलावा मैनचेस्टर, ग्लासगो, न्यूकैसल और बर्मिंघम में भी बीबीसी के कार्यालयों के सामने प्रदर्शन हुए

by WEB DESK
Jan 30, 2023, 02:40 pm IST
in विश्व
बीबीसी के लंदन स्थित मुख्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन करते अनिवासी भारतीय

बीबीसी के लंदन स्थित मुख्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन करते अनिवासी भारतीय

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ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन यानी बीबीसी ने मानो भारत विरोध का सेकुलर ठेका लिया हुआ है, मानो वह भारत को तोड़ने वाली ता​कतों का हस्तक बन चुका है। उसकी अधिकांश रिपोर्ट तथ्यों से परे झूठ पर आधारित होती हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य भारत, भारत के सम्मानित नेतृत्व, भारत की वैश्विक छवि को लांछित करना ही दिखता है।

हाल में उसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विवाद में घेरने के लिए एक फर्जी डॉक्यूमेंट्री बनाई जिसे लेकर सेकुलर जमात ने पूर्वयोजना के तहत मोदी को निशाना बनाना शुरू कर दिया। लेकिन भारत ही नहीं, बीबीसी की इस हरकत का दुनिया के अनेक देशों में भारी विरोध होने पर बीबीसी खुद घेरे में आ गया है।

बीबीसी के मूल उद्गम वाले देश ब्रिटेन की राजधानी लंदन ऐसे ही एक विरोध प्रदर्शन का गवाह बना। बीबीसी के लंदन स्थित मुख्यालय के सामने कल अनेक अनिवासी भारतीय संगठनों ने एक विरोध रैली करके बीबीसी को भारत विरोध से बाज आने की चेतावनी दी। लंदन के अलावा मैनचेस्टर, ग्लासगो, न्यूकैसल और बर्मिंघम में भी बीबीसी के कार्यालयों के सामने प्रदर्शन हुए।

भारत में अनेक सेकुलर दल, संगठन, एनजीओ, जेएनयू और जामिया के टुकड़े—टुकड़े गैंग वाले प्रधानमंत्री मोदी और उनके नेतृत्व में बनी भारत की वैश्विक छवि से चिढ़े हुए हैं

इस विरोध प्रदर्शन में जिन प्रवासी भारतीय संगठनों ने भाग लिया उनमें मुख्य थे, इंडियन डायस्पोरा यूके, फ्रेंड्स ऑफ इंडिया सोसाइटी इंटरनेशनल यूके, इनसाइट यूके तथा हिंदू फोरम ऑफ ब्रिटेन। प्रदर्शन में शामिल लोगों ने तिरंगे थामे हुए थे, उनके हाथ में नारे लिखी तख्तियां थीं। संगठनों के पदाधिकारियों ने उपस्थित प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए बीबीसी को ऐसी ओछी हरकतों से बाज आने को कहा।

प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आधारित डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ को लेकर आक्रोश में थे। उनका कहना था कि यह बहुत ही पक्षपाती है। गुजरात दंगों को लेकर लोगों को भ्रम में डालने की कोशिश की गई है जबकि भारत की न्यायपालिका उस संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी को हर तरह से निर्दोष बता चुकी है। दरअसल भारत में भी अनेक सेकुलर दल, संगठन, एनजीओ, जेएनयू और जामिया के टुकड़े—टुकड़े गैंग वाले प्रधानमंत्री मोदी और उनके नेतृत्व में बनी भारत की वैश्विक छवि से इतने चिढ़े हुए हैं कि कुछ—कुछ दिन बाद बेवजह के मुद्दे उछालने की कोशिश करते हैं और आखिर में मुंह की खाते हैं।

इस विरोध प्रदर्शन में जिन प्रवासी भारतीय संगठनों ने भाग लिया उनमें मुख्य थे, इंडियन डायस्पोरा यूके, फ्रेंड्स ऑफ इंडिया सोसाइटी इंटरनेशनल यूके, इनसाइट यूके तथा हिंदू फोरम ऑफ ब्रिटेन। प्रदर्शन में शामिल लोगों ने तिरंगे थामे हुए थे, उनके हाथ में नारे लिखी तख्तियां थीं। संगठनों के पदाधिकारियों ने उपस्थित प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए बीबीसी को ऐसी ओछी हरकतों से बाज आने को कहा।

प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे—’बायकॉट बीबीसी’, ‘स्टॉप द हिंदूफोबिक नैरेटिव’, ‘बीबीसी वालों शर्म करो’, ‘भारत माता की जय’ आदि। संगठन एफआईएसआई यूके के पदाधिकारी जयु शाह का कहना था कि प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर रखकर जो डॉक्यूमेंट्री बनाई गई है वह एकतरफा चीजें दिखाती है और तथ्यों से परे है। क्या बीबीसी खुद को जज और न्यायपालिका की भूमिका में देखती है?

उन्होंने आगे कहा कि इस तरह के भ्रामक, भारत विरोधी प्रोपेगेंडा के विरुद्ध खुलकर आवाज उठानी होगी। प्रदर्शनकारियों ने बीबीसी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच की मांग की; उनका कहना था कि बीबीसी अपने कर्तव्य में विफल रही है, इसके सभी निदेशकों की जांच होनी चाहिए। कहा गया कि बीबीसी जो झूठ फैला रहा है और भारत के विरुद्ध जिस तरह का माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है उसका व्यापक विरोध किया जाना चाहिए।

बीबीसी की बनाई तथ्यों से परे डॉक्यूमेंट्री में कहा गया है कि वह 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े पहलुओं की पड़ताल को सामने रखती है। ध्यान रहे कि 2002 में आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे। भारत के विदेश विभाग ने भी डॉक्यूमेंट्री को प्रोपेगेंडा से जुड़ा बताया है और इसे सिरे से खारिज किया है। विदेश विभाग का कहना है कि इसमें निष्पक्षता नहीं दिखती और इससे बीबीसी की औपनिवेशिक मानसिकता ही झलकती है।

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