राष्ट्र निर्माण में बंजारा कुंभ का महत्व

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पंकज जगन्नाथ जयस्वाल

राष्ट्र निर्माण में बंजारा कुंभ का महत्व
25 से 30 जनवरी तक जलगांव जिले के गोद्री में बंजारा और लबाना नाइकाडा समुदाय एकत्रित हुए है। शबरी कुंभ और नर्मदा कुंभ पहले 2006 में गुजरात और 2020 में मध्य प्रदेश में आयोजित किए गए थे। कुंभ का मतलब संतों के सम्मेलन से है। देश भर से संत प्रार्थना और आशीर्वाद के लिए इकट्ठा होते हैं, साथ ही विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करते हैं। विभिन्न विचारों और विचारों के मंथन से राष्ट्र को गति और दिशा मिलती है। अलग-अलग समय सिंहस्थ कुंभ और इस कुंभ का आयोजन होता है। उनके बीच एकमात्र अंतर रूप और स्थान में है। शेष लक्ष्य वही रहता है।

बंजारा कुंभ क्यों आयोजित किया गया है ?
“धर्म” पर चलने वाले अनुयायियों से हटकर “रिलीजन” को मानने वाले अनुयायियों की मानसिकता खतरनाक मोड ले रही है और पर्यावरणक्षति सहित पूरी दुनिया में अशांति पैदा कर रही है। इन रिलीजन अनुयायियों, विशेष रूप से कुछ ईसाई मिशनरियों की प्रत्येक गैर-ईसाई खासकर हिंदू धर्मीय को ईसाई में परिवर्तित करने की विचार प्रक्रिया विशेष रूप से समाज और समुदाय में दरार और विनाश पैदा करने के इरादे से संबंधित है। आखिर लक्ष्य क्या है? क्या ईसाई धर्म या किसी अन्य धर्म में जबरन धर्मांतरण, या भ्रामक मायाजाल के उपयोग ने धर्म परिवर्तित व्यक्ती को खुशी, मन की शांति और बेहतर सामाजिक और आर्थिक स्थिति लाने में मदद की है क्या?

जबकि मैं सभी धर्मों और संप्रदायों का सम्मान करता हूं, जमीन पर तथ्यों को नजरअंदाज करना अज्ञानी और खतरनाक दोनों है। यदि ईसाई धर्म श्रेष्ठ है, तो बहुसंख्यक ईसाई आबादी वाले देशों में मानसिक व शारीरिक परेशानिया, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और सामाजिक अस्थिरता क्यों है? कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच झगड़ा क्यों है? ईसाइयों में जातिगत भेदभाव क्यों है? इतने सारे ईसाई-बहुल देश आर्थिक और सामाजिक रूप से क्यों धराशायी हो रहे हैं?

हम सनातन संस्कृति और उसके सिद्धांतों का पालन करने वाले कई ईसाइयों की भावना का स्वागत करते हैं और उनकी सराहना करते हैं, हालांकि, सनातन धर्म के द्वेषी सनातन अनुयायियों को परिवर्तित कर रहे हैं, धर्मान्तरित लोगों के बीच गहरी घृणा पैदा कर रहे हैं। आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर, ईशा के संस्थापक जग्गी वासुदेव, माता अमृतानंदमयी, स्वामीनारायण, इस्कॉन, और कई अन्य आध्यात्मिक गुरुओं और संगठनों के दुनिया भर में बड़ी संख्या में अनुयायी हैं, लेकिन वे उन्हें कभी भी धार्मिक रूप से परिवर्तित नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे अपने सभी अनुयायियों को अपना धर्म बदले बिना सनातन सिद्धांतों का पालन करने का आशीर्वाद देते हैं। इसलिए सर्वहित के लिए सनातन धर्म की रक्षा करनी चाहिए। जो व्यक्ति, समाज, विश्व और पर्यावरण के लिए सनातन धर्म के मूल्य को पहचानते हैं, उन्हें खुलकर बोलना चाहिए, जिसमें अधिकांश ईसाई भी शामिल हैं, जो ईसाई मिशनरी प्रॉपगेंडा में विश्वास नहीं करते। आरएसएस, कई अन्य संगठनों के साथ सदियों पुराने विभाजन को पाटने का काम कर रहा है। उनका मंत्र कहता है, “हम सब एक हैं।”

सेवा वास्तव में क्या है ?
समाज और पर्यावरण की अधिक भलाई के लिए बिना स्वार्थ के प्रदान की गई सेवाएं। क्या यह सच नहीं है कि ईसाई मिशनरियों और उनके संगठनों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं का उद्देश्य उनका धर्मांतरण करना है? ऐसी सामाजिक सेवाएं किस काम की हैं? जैसा कि मैंने पहले कहा, कई भारतीय आध्यात्मिक, धार्मिक और सामाजिक संगठन दुनियाभर में सामाजिक सेवाएं प्रदान करते हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है मन की शांति और खुशी का विकास करना, जो हर किसी के जीवन का सबसे कठिन और महत्वपूर्ण पहलू है। हालांकि, ये सभी सामाजिक सेवाएं अच्छे इरादों के साथ और बिना किसी स्वार्थ के प्रदान की जाती हैं। सेवा में दोनो धाराओं की इस असमानता को सरकारों, विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों द्वारा अधिक जागरूकता और समझ के साथ संबोधित किया जाना चाहिए।

बंजारा कुंभ सबके भले के लिए सभी को एकजुट करने के लिए कार्य करता है। बंजारा समाज में पिछले 15 से 20 सालों में दो बड़ी चुनौतियां सामने आई हैं। पहला ईसाई धर्म का प्रसार है, और दूसरा बुतपरस्ती का जानबूझकर प्रचार है। परिणामस्वरूप, पुजारियों, संतों और बंजारा समुदाय के सदस्यों ने पहल की और कुंभ करने का फैसला किया। हर कुछ वर्षों में यह पता चलता है कि प्रत्येक जाति जनजाति में उनका एक अलग धर्म है।

ऐसा क्यों किया जाता है ?
यह एक जटिल प्रश्न है। आज की स्थिति में यह चंद राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव जीतने के लिए वोट बैंक बनाने की राजनीतिक ताकत के दुरुपयोग की साजिश है। हालांकि, इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। सनातन समाज को बांटकर सत्ता हासिल करने की विनाशकारी मंशा को सभी को समझना होगा और कुम्भ की ऐसी पहलों का उत्साहपूर्वक और अपनेपन की भावना से समर्थन करना होगा।

धर्म परिवर्तन
उत्तर प्रदेश और गुजरात में मुस्लिम बंजारों के कई समुदाय हैं, जो केवल बंजारा समाज से धर्म परिवर्तित हुए हैं। मुस्लिम आक्रमणकारी औरंगजेब के आक्रमण के बाद केवल कुछ बंजारों ने इस्लाम में जबरन धर्म परिवर्तन करना स्वीकार किया। उन्हें उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों के साथ-साथ हैदराबाद में भी देखा गया है। बंजारों का ईसाईकरण महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और भारत के कुछ अन्य हिस्सों में हुआ है। आश्चर्यजनक रूप से कुछ बंजारों के ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के बाद भी वे हिंदू परंपराओं का पालन करते रहे। शादी, बारात और हिंदू त्योहार और शादी मे हल्दी स्नान।

कुल देवता और संत परंपरा
बंजारों की पारिवारिक देवी माता महाकाली और माता जगदंबा हैं, जिन्हें माता महागौरी के नाम से भी जाना जाता है। महागौरी गौर वंश को इंगित करती हैं। वेंकटेश्वर तिरुपति बालाजी और बंजारी देवी की भी पूजा की जाती है। खासकर गौर बंजारा समुदाय में सती भवानी की पूजा की जाती है। भगवान शंकर के वाहन नंदी की पूजा आज भी बड़े उत्साह के साथ की जाती है। इसे ‘गरशा’ भी कहते हैं। छत्तीसगढ़ के बंजारे देवी ‘बंजारा’ की पूजा करते हैं, जो इस जाति की देवी हैं और मातृशक्ति की प्रतीक हैं। साथ ही ये महानुभाव संप्रदाय से भी जुड़े हुए हैं, जिसके कारण ये भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी करते हैं। बंजारे देवताओं के साथ संतों की भी पूजा करते हैं। सतगुरु हाथीराम बाबा महाराज, संत सेवालाल महाराज, राणा लखीराय बंजारा (राणा लखी शाह), बंजारी माता, संत रूप सिंह महाराज, समकी माता, संत समतदादा, संत लक्ष्मण चैतन्य महाराज, संत ईश्वर सिंह महाराज, संत राम राव महाराज आदि की पूजा की जाती है। बंजारा समुदाय संतों के विचारों को दिल से मानते हैं।

हमारे महान संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा के लिए हमारे जनजाति भाई-बहनों ने बहुत कष्ट सहे हैं। आइए हम उन्हें सहयोग दें, अपनेपन की भावना रखें और बिना किसी इच्छा के उन्हें सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित करने में मदद करें।

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