देवभूमि उत्तराखण्ड का पिथौरागढ़ भारत को खेलों के क्षेत्र फुटबॉल में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देने वाला गढ़ रहा है। सन 1962 की भारतीय फुटबॉल टीम विश्व की अब तक की सबसे फुर्तीली फुटबॉल टीमों में गिनी जाती है। भारत की उस फुटबॉल टीम में भी सबसे फुर्तीले खिलाड़ी त्रिलोक सिंह बसेड़ा हुआ करते थे। सम्पूर्ण विश्व के खेल जगत में उन्हें आयरन वॉल ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता था। भारत के तत्कालिक प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी उस समय त्रिलोक सिंह बसेड़ा के बड़े प्रशंसकों में सम्मिलित थे।
त्रिलोक सिंह बसेड़ा का जन्म 18 अक्तूबर सन 1934 को पिथौरागढ़ में देवलथल के छोटे से ग्राम भंडारी में किसान लक्ष्मण सिंह बसेड़ा और माता कौशल्या बसेड़ा के घर हुआ था। पहाड़ में भौगोलिक परिस्थितियां विपरीत होने के बावजूद यहां के लोग बड़े परिश्रमी होते होते हैं। उन्होंने सन 1948 में देवलथल पिथौरागढ़ से जूनियर हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। उन्हें बचपन से ही फुटबॉल खेलने का बेहद शौक था। उनको सभी सामान्य पहाड़ी युवाओं की तरह बचपन से ही सेना में जाने का शौक था। वह सन 1950 में सेना की इलेक्ट्रॉनिकल एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स कोर में भर्ती हो गए थे। उनको जल्द ही एथलेटिक्स में प्रतिभा दिखाने का मौका मिला। सेना की बटालियन एथलेटिक्स टीम में 100 मीटर, 200 मीटर और 800 मीटर दौड़ में वह प्रथम स्थान पर रहे थे। वह कुछ समय बाद ईएमई सेंटर की सर्विसेज फुटबॉल टीम में शामिल हो गए और उसके बाद हमेशा फुटबॉल के होकर रह गए थे।
त्रिलोक सिंह को भारतीय टीम में शामिल कर लिया गया था। सन 1958 में ऑल इंडिया हीरोज टूर्नामेंट तथा उसी साल हुए संतोष ट्राफी की विजेता टीम में त्रिलोक सिंह प्रमुख सदस्य खिलाड़ी थे। उन्होंने सन 1961 में चौथे मार्डेको शताब्दी फुटबॉल प्रतियोगिता मलाया में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया था। वह सन 1962 में जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का प्रमुख हिस्सा रहे थे। एशियन गेम्स के पहले ग्रुप मैच में भारत को दक्षिण कोरिया ने 2–0 से हराया था, इसके बाद भारतीय खिलाडियों त्रिलोक सिंह की बेहतरीन रणनीतिक योजना से खेलते हुए फ़ाइनल में दक्षिण कोरिया को 2–1 से हरा दिया था। एशियन गेम्स में त्रिलोक सिंह बैक पोजीशन पर खेले थे। भारतीय फुटबॉल टीम का यह स्वर्णिम दौर था। त्रिलोक सिंह ने चार एशियन प्रतियोगिताओं में भारतीय फुटबॉल टीम का प्रतिनिधित्व किया था। त्रिलोक सिंह बसेड़ा के बेहद फुर्तीले खेल के कारण उन्हें एशियन गेम्स सन 1962 के बाद से आयरन वॉल ऑफ़ इंडिया कहा जाने लगा था। उनके बेहतरीन प्रदर्शन के लिये भारत के तत्कालिक प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार दिया था। उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के दम पर ही भारतीय सेना एकादश और रूस सेना एकादश फुटबाल प्रतियोगिता में भारतीय सेना एकादश ने शानदार प्रदर्शन से जीत अर्जित की थी।
अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय खेलों में निरंतर अच्छे प्रदर्शन के कारण त्रिलोक सिंह बसेड़ा को भारतीय सेना में पहले हवलदार पद और फिर सन 1966 में जेसीओ का पद मिला था। त्रिलोक सिंह ने खेलों के अतिरिक्त सन 1962, सन 1965, सन 1971 के युद्धों में भी अपनी बटालियन के साथ सम्मिलित रहे थे। उनका निशाना भी अचूक था। दुर्भाग्य से खेल के मैदान में लगी एक सामान्य चोट ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया की फुटबॉल का यह महान खिलाड़ी केवल 45 वर्ष की उम्र में भारतीय सेना में रहते हुए देश को अलविदा कह गया। उनका 29 जनवरी सन 1979 को लंबी बीमारी के बाद सिकंदराबाद में देहावसान हो गया था।
आयरन वॉल के नाम से विख्यात इतनी उपलब्धियों के बाद भी त्रिलोक सिंह बसेड़ा को कभी कोई राष्ट्रीय पुरस्कार न मिल सका था। सन 2009 में उत्तराखण्ड सरकार ने पिथौरागढ़ शहर के भाटकोट में उनकी पत्नी राधिका बसेड़ा को मात्र एक नाली जमीन दी। उत्तराखण्ड सरकार ने उनकी स्मृति में देवलथल जीआईसी का नाम त्रिलोक सिंह बसेड़ा जीआईसी कर दिया था। सन 2014 में उत्तराखंड सरकार ने त्रिलोक सिंह बसेड़ा को मरणोपरांत उत्तराखंड खेल रत्न के अलंकरण से सम्मानित किया।
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