एक ‘नया भारत’ विश्व स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहा है। जो विदेशी शक्तियां हमें निरंतर संघर्ष में बनाए रखने की साजिश रच रही थीं, उनमें पराजय बोध व्याप्त हो गया है। सबसे बड़े बाजार और सबसे बड़े युवा कार्यबल में से एक के तौर पर हम बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अपने आचरण, क्षमता और साहस का अधिकतम उपयोग कर रहे हैं। लेकिन बड़ी सफलताओं में हमेशा बड़ी चुनौतियां छुपी होती हैं। हमने संक्रमण के इस दौर में कुछ चुनौतियों की पहचान की है।
पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया (पीएफआई) एक ऐसा संगठन है, जिसे हम ‘नए भारत’ के संक्रांति काल में बाधा डालने के लिए विदेशी शक्तियों के दिमाग की उपज मान सकते हैं। इसका घोषित एजेंडा ‘मुस्लिम युवा, मुस्लिम शक्ति, मुस्लिम रणनीति और मुस्लिम एकता’ है। हालांकि इसके मूल में जबरदस्त व्यूह-रचना और भारी हिंसा है, जो आईएसआईएस जैसे वैश्विक आतंकी संगठनों के साथ इसके गहरे संबंधों से स्वयं सिद्ध है।
युद्ध की नई तकनीक
वास्तव में पीएफआई आतंकवादी संगठनों के बदलते तौर-तरीकों को समझने का एक अच्छा उदाहरण है। इससे उन आतंकवादी संगठनों को समझने में मदद मिलती है, जिन्होंने बड़े पैमाने पर 5वीं पीढ़ी की युद्ध (5जीडब्ल्यू) तकनीक को अपनाया है। 5जीडब्ल्यू युद्ध तकनीक एक ऐसी युद्ध प्रणाली है, जिसमें युद्धक अभियानों का संचालन करने के लिए फौज की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें मुख्य रूप से सोशल इंजीनियरिंग, गलत सूचनाओं या अफवाहों के प्रसार, साइबर हमले आदि का प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही नई उभरती प्रौद्योगिकियों, जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और पूरी तरह स्वायत्त प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है। 5जीडब्ल्यू मूल रूप से ‘सूचना और धारणा’ का युद्ध है।
प्रौद्योगिकी की बदलती प्रकृति और तेजी से बढ़ती वैश्वीकरण प्रक्रिया के साथ युद्ध की रणनीति में पीढ़ीगत बदलाव आया है। युद्ध रणनीति में एक क्रांति आ चुकी है। वैश्वीकरण के दौर में अब यह कहा जा सकता है कि बिना तोपों और बमों के भी युद्ध लड़ा जा सकता है। अब शत्रु बखूबी जानते हैं कि वे विभिन्न प्रकार के सामरिक युद्ध प्रारूपों के जरिए अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। युद्ध का तरीका या दृष्टिकोण लचीला हो सकता है। सीधे शब्दों में, हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं, जिसमें कमान की शृंखला बहुत कठोर नहीं होती, बल्कि यह ध्यान रखा जाता है कि विभिन्न गतिविधियों का युद्ध क्षेत्र की परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठा कर विभिन्न आयामों से विरोधी को परास्त किया जाए।
अमेरिकी शब्दावली में इस प्रकार के युद्ध को ‘हाइब्रिड वार’ कहा जाता है। अफवाहों के माध्यम से सोशल इंजीनियरिंग इस प्रकार के युद्ध का एक सामान्य लक्षण है। यह एक सांस्कृतिक और नैतिक युद्ध भी है, जिसमें लोगों के मनो-मस्तिष्क में उनकी परंपराओं और राष्ट्रीय पहचान के बारे में गलत धारणाएं भर दी जाती हैं और अपने बारे में उनके सोच को विभिन्न तरीकों से विकृत किया जाता है। उन्हें चालाकी भरी बातें समझा दी जाती हैं, ताकि वे अपने ही समाज को अस्थिर करने और अपने ही राज्य के खिलाफ जाने को प्रेरित हों।
आज युद्ध की बदलती प्रकृति में युद्धकाल और शांतिकाल, सैनिक और अ-सैनिक के बीच विभाजन स्पष्ट नहीं रह गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि युद्ध का शिकार व्यक्ति यह नहीं जानता है कि उस पर किसी ने हमला किया है और न ही उसे यह पता चलता है कि वह युद्ध हार रहा है। अर्थात् युद्ध की कभी पहचान ही नहीं होती। वास्तव में विशुद्ध सैन्य कार्रवाई की जगह आधुनिक युद्ध रणनीति राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक तत्वों और कार्यों की मिश्रित कार्रवाई है। 5वीं पीढ़ी के युद्ध में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समाज के सांस्कृतिक प्रतीकों का शोषण किया जाता है। 5जीडब्ल्यू की प्रभावशीलता इस पर भी निर्भर करती है कि युद्ध संचालन का कोई मुख्य केंद्र नहीं होता। इससे यह और अधिक प्रभावी हो जाता है। पीएफआई इस प्रकार के युद्ध का एक नमूना झलकाता है।
कैसे संचालित होता है पीएफआई?
केरल में पीएफआई की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (एनडीएफ) के उत्तराधिकारी के रूप में की गई थी। एनडीएफ वह संगठन था जो मराड में हुए हिंदुओं के नरसंहार में शामिल था। इसकी आलोचना करते हुए भाकपा (मार्क्सवादी) के तत्कालीन केरल राज्य सचिव पिनराई विजयन ने एनडीएफ को एक ‘आतंकवादी संगठन’ कहा था, जिसने ‘सुनियोजित सामूहिक हत्याकांड’ को अंजाम दिया था। हालांकि पीएफआई खुद को एक ‘सामाजिक संगठन बताता है, जो समाज के गरीबों और दलितों के लिए काम करता है’।
इसका गठन कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी, मनिथा नीथी पासराई (तमिलनाडु), गोवा सिटीजन फोरम, राजस्थान कम्युनिटी फॉर सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, पश्चिम बंगाल की नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति, मणिपुर की लिलोंग सोशल फोरम और आंध्र प्रदेश की एसोसिएशन फॉर सोशल जस्टिस जैसे संगठनों के विलय से हुआ था।
पीएफआई ने समाज को अस्थिर करने के अपने वास्तविक उद्देश्य के लिए सभी प्रतिबंधित साथी संगठनों का इस्तेमाल किया। इसने दावा किया कि इसका संगठन ‘सत्य सारणी’ एक ‘शैक्षिक और मजहबी संगठन’ था, जिसका मुख्यालय मलप्पुरम में था।
प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश
पीएफआई ने तब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रची थी। 27 अक्तूबर, 2013 को पटना में एक रैली थी। इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने, जो प्रतिबंधित सिमी के सदस्य थे, उनकी रैली में बमबारी की थी। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इसके बाद, 12 जुलाई, 2022 को प्रधानमंत्री मोदी के पटना दौरे के समय भी पीएफआई ने उनकी हत्या की साजिश रची थी। पीएफआई के गुर्गों द्वारा गलत पहचान किए जाने के कारण उसका यह षड्यंत्र उजागर हो गया।
फुलवारी शरीफ के एसएचओ मो. इकरार अहमद को पीएफआई के एक गुर्गे ने गलत पहचान के आधार पर एक पर्चा भेजा, जिसमें लिखा था- ‘‘शर्म करो, डूब मरो। फुलवारी शरीफ अवाम, असली मुसलमान कब बनोगे? नबी की शान पर कब बोलोगे? सारी दुनिया के मुसलमान आवाज उठा रहे हैं। तुम कब आवाज उठाओगे? क्या यूं ही मुर्दा बने रहोगे? जुम्मे की नमाज में 10 जून, 2022 को जामा मस्जिद, नया टोला, फुलवारी शरीफ पहुंचो और इश्क-ए-रसूल का सुबूत दो।’’
इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 24 सितंबर, 2022 को केरल के कोझिकोड से पीएफआई कार्यकर्ता शफीक पायथे को गिरफ्तार किया। ईडी ने अपने रिमांड नोट में दावा किया कि इस संगठन ने 12 जुलाई, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पटना यात्रा के दौरान उन पर हमला करने के लिए एक प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया था।
कैसे बढ़ता गया पीएफआई?
2001 से 2010 के बीच प्रतिबंधित किए गए कई प्रमुख आतंकवादी संगठनों, जैसे- सिमी (2001), लश्कर-ए-तैयबा (2001), इंडियन मुजाहिदीन (2010) ने कई तरीकों से पीएफआई को मजबूत बनाने में योगदान दिया। सिमी मूलत: एक छात्र आधारित संगठन था, जिसने उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदी भाषी क्षेत्रों से पढ़े-लिखे युवाओं और समर्थकों को पीएफआई के साथ जोड़ा, जबकि लश्कर ने खाड़ी देशों से फंडिंग चैनलों को जोड़ा और आईएम नेटवर्क ने तमिलनाडु और कर्नाटक के साथ-साथ केरल में पीएफआई को मदद और ताकत प्रदान की। सिमी ने देशभर के पुराने शहरों में पुराने मुस्लिम मुहल्लों में बने अपने अड्डे भी पीएफआई को प्रदान किए। इस तरह के संयोजन और कई क्षेत्रीय कट्टरपंथी संगठनों के विलय ने पीएफआई का बहुत कम समय में एक अखिल भारतीय नेटवर्क बना दिया, जिसके सदस्यों की संख्या बहुत अधिक थी। सिमी, लश्कर और आईएम की कार्यशक्ति और धनशक्ति भी एकसाथ पीएफआई को मिल गई।
शुरुआती दौर में पीएफआई में बरेलवियों को शामिल नहीं किया गया, क्योंकि यह माना जाता है कि ये उत्तर प्रदेश वाले बड़बोले होते हैं और अपने गैर-जिम्मेदार व्यवहार के कारण संगठन का भांडा फोड़ सकते हैं। इसलिए शुरुआती दौर में पीएफआई के दिल्ली कार्यालय में ज्यादातर पदाधिकारी दक्षिण भारत और उत्तर-पूर्व के थे। पीएफआई रणनीतिक तरीके से हिंसा को अंजाम देता था, ताकि वह खाड़ी देशों से धन जुटा सके। वह देशभर में विरोध प्रदर्शनों में ‘भीड़युद्ध की रणनीति’ का उपयोग करने में सफल रहा।
इस तरह के विरोध प्रदर्शनों के लिए केरल और पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्टों को प्रशिक्षण दिया गया था। इस शैली में बहुस्तरीय विरोध प्रदर्शन में बच्चों को अग्रिम पंक्ति में रखा जाता था।
दूसरी पंक्ति महिलाओं की होती थी और तीसरी पंक्ति में दंगाई या पथराव करने वाले शामिल होते थे, जो हथियारों और गोला-बारूद से लैस होते थे।
‘इंडिया विजन-2047’ और 5जीडब्ल्यू का खुलासा
जुलाई 2022 में बिहार पुलिस ने ‘इंडिया विजन 2047’ शीर्षक से पीएफआई के 8 पन्नों के दस्तावेज का खुलासा किया। यह दस्तावेज केवल आंतरिक प्रकाशन के लिए था। इसमें साफ-साफ लिखा है कि मुसलमानों को ‘कायर हिंदुओं’ को सबक सिखाना होगा। साथ ही, इसमें 2047 तक भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने का भी उल्लेख किया गया है। दस्तावेज के कुछ अंश नीचे इस प्रकार थे-
- अफसोस, कभी देश के शासक समुदाय रहे मुसलमानों को अब दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया है।
- हम सपना देखते हैं कि 2047 वह साल होगा, जब राजनीतिक शक्ति मुस्लिम समुदाय के पास वापस आ जाएगी।
- हमने इस देश में इस्लामिक सरकार लाने के लिए खुद को सन् 2047 का लक्ष्य दिया है।
दस्तावेज में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अगर पीएफआई मुस्लिम आबादी का 10 प्रतिशत हिस्सा भी अपने पीछे ला सकी, तो ‘कायर बहुसंख्यक समुदाय यानी हिंदुओं’ को उनके सामने घुटने टेकने होंगे। पूरे कैडर को ‘इस्लाम की शान’ वापस लाने के लिए काम करना होगा।
दस्तावेज भारत में इस्लामिक शासन की स्थापना के लिए चार चरणों में काम करने का प्रस्ताव करता है-
पहला चरण: इसमें कहा गया है कि मुसलमानों को पीएफआई के एक बैनर के तहत एकजुट किया जाए और उन्हें लगातार उनकी शिकायतों के बारे में बताया जाए और एक ऐसी पहचान स्थापित की जाए कि वे इस अवधारणा से परे हैं कि वे भारतीय हैं। फिर उन्हें शारीरिक शिक्षा विभाग में भर्ती किया जाए और शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया जाए।
दूसरा चरण: इसमें कहा गया है कि मुस्लिम शिकायतों की कहानी का विस्तार किया जाए। वास्तविक इरादों को संविधान और राष्ट्रीय ध्वज जैसे राष्ट्रीय पहचान के प्रतीकों की मदद से छिपाया जाए। कैडर को न्यायिक और प्रशासनिक प्रणाली में घुसपैठ करनी चाहिए, ताकि इन संस्थानों से लाभ उठाया जा सके। यह भी कहा गया है कि पार्टी को ‘राष्ट्रीय ध्वज’, ‘संविधान’ और ‘आंबेडकर’ जैसी अवधारणाओं का उपयोग इस्लामिक शासन स्थापित करने के वास्तविक इरादे को ढाल प्रदान करने और एससी/एसटी/ओबीसी तक पहुंचने के लिए करना चाहिए।
तीसरा चरण: इसमें कहा गया है कि चुनाव जीतकर पार्टी का राजनीतिक विस्तार किया जाए और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग से गठजोड़ किया जाए, फिर फर्जी कहानियां बनाकर रा.स्व.संघ और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच खाई पैदा की जाए। कहानी यह हो कि ‘आरएसएस केवल उच्च जाति के हिंदुओं के कल्याण के लिए काम करती है’। अन्य तथाकथित पंथनिरपेक्ष दलों को उनके पंथनिरपेक्षवादी झुकाव पर भी सवाल करना चाहिए और उन्हें जनता के बीच बदनाम करना चाहिए। इस तीसरे चरण में ही है कि ‘हथियारों और विस्फोटकों का भंडारण’ किया जाना चाहिए।
चौथा चरण: इस अंतिम चरण में कहा गया है कि पार्टी को पूरे मुस्लिम समुदाय का एकमात्र नेता और आवाज बनना चाहिए। पार्टी को 50 प्रतिशत एससी/एसटी/ओबीसी का विश्वास हासिल करना चाहिए और उनके प्रतिनिधि के रूप में भी उभरना चाहिए। इतना वोट साझा करना पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए पर्याप्त होगा। एक बार सत्ता में आने के बाद कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ-साथ पुलिस और सेना के सभी महत्वपूर्ण पदों को वफादार कैडरों से भरा जाना है।
यदि हम पीएफआई के ‘इंडिया विजन 2047’ का ठीक से विश्लेषण करें, तो स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं कि यह युद्ध के एक लोचदार और संकर मॉडल पर काम कर रहा था, जो कट्टरपंथी आतंकी संगठनों के पिछले स्वरूपों से अलग था। अगर पीएफआई को समग्रता में समझा जाए, तो भविष्य में भारत के सामने आने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है।
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