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उत्तराखंड में हो रहा जनसंख्या का असंतुलन, बढ़ रही मुस्लिम आबादी, कौन है इसके लिए जिम्मेदार?

जनसंख्या असंतुलन की वजह से उत्तराखंड में हिमाचल की तरह सशक्त भू-कानून बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है।

दिनेश मानसेरा by दिनेश मानसेरा
Jan 24, 2023, 04:06 pm IST
in उत्तराखंड
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

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उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी असम के बाद सबसे ज्यादा बढ़ रही है। ये देश के जनसंख्या के आंकड़े कह रहे हैं। नई जनसंख्या के आंकड़े आने तक उत्तराखंड की मुस्लिम आबादी करीब सोलह प्रतिशत हो जाएगी। दिलचस्प बात ये है कि यूपी से लगते और मैदानी जिलों की आबादी 35 फीसदी हो जाने की संभावना है।

जानकारी के मुताबिक मुस्लिम आबादी की बढ़त अब पिथौरागढ़, चंपावत, पौड़ी जिलों में दिखाई देने लगी है। आने वाले समय में उत्तराखंड में जनसंख्या असंतुलन एक बड़ा मुद्दा बन रहा है। यही वजह है कि उत्तराखंड में हिमाचल की तरह सशक्त भू-कानून बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है। हिमाचल में राज्य बनने के वक्त मुस्लिम आबादी दो फीसदी थी और आज भी दो ही फीसदी के आसपास है। हिमाचल में बाहरी व्यक्तियों के जमीन लेकर बसने में कुछ पाबंदी है, जबकि उत्तराखंड में बाहरी व्यक्ति को करीब तीन हजार वर्ग फुट जमीन लेकर बसने में कोई पाबंदी नहीं है। उत्तराखंड के विषय में बड़ा दिलचस्प आंकड़ा ये सामने आ रहा है कि यहां मुस्लिम आबादी वन, रेलवे, नजूल भूमि में अवैध कब्जे किए हुए है।

किन क्षेत्रों में हो रहा है जनसंख्या असंतुलन
उत्तराखंड के चार मैदानी जिलों में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। उधमसिंहनगर, हरिद्वार जिला में मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ी है, पछुवा देहरादून, नैनीताल जिले के हल्द्वानी, रामनगर, कालाढूंगी और पर्यटन नगरी नैनीताल में जनसंख्या असंतुलन होने जा रहा है। हल्द्वानी की रेलवे की जमीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला इसी का उदाहरण है।

नदियों में खनन है बड़ी वजह
उत्तराखंड में हिमालय, शिवालिक से आई नदियां अपने साथ रोड़ी, पत्थर, रेता, बजरी लेकर आती हैं। राज्य में चौदह बड़ी नदियां हैं और उनकी सहायक नदियों की संख्या करीब दो दर्जन है। इन नदियों से चुगान या खनन के लिए बड़ी संख्या में बाहरी राज्यों से मुस्लिम मजदूर यहां आकर बस गए हैं या कहें कि राजनीतिक संरक्षण में बसाए गए हैं। ज्यादातर ये मुस्लिम या तो पश्चिम यूपी से हैं या फिर बिहार, बंगाल, बांग्लादेशी रोहिंग्या हैं। इनका कभी भी बारीकी से सत्यापन नहीं हुआ। इस बारे में ये भी जानकारी आई है कि इनके आधार कार्ड या पहचान पत्र जहां से बनते हैं वहां से सत्यापित करने वाले मुस्लिम हैं। ऐसे सबूत सामने आए हैं कि असम से बड़े पैमाने में लोग देहरादून के विकास नगर, कालसी के नदियों किनारे, यमुना, टौंस, रिस्पना, सांग नदी किनारे उत्तराखंड की वन भूमि में आकर अवैध रूप से बसते जा रहे हैं, इन्हीं के बीच अवैध मजारें बनती जा रही हैं।

देहरादून जिले में हिमाचल और यूपी से लगे बॉर्डर एरिया में सबसे ज्यादा तेजी से मुस्लिम आबादी बढ़ी है। यहां सेलाकुई औद्योगिक क्षेत्र में काम करने बाहरी प्रदेशों से बड़ी संख्या में मुस्लिम आए हैं और इनके नाम वोटर लिस्ट में चढ़ाने का खेल राजनीति दलों ने खेला है। उधमसिंह नगर जिले में कोसी, कैलाश, शारदा नदियों के खनन क्षेत्र की वन भूमि में हजारों मुस्लिम मजदूर आकर अवैध कब्जे कर चुके हैं।

इसी तरह नैनीताल जिले में गौला नदी, रामनगर कोसी, दाबका, नाधौर नदियों किनारे बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी ने फॉरेस्ट की जमीन पर अवैध कब्जे कर लिए हैं। ये आबादी नदियों में खनन करते वक्त, साप्ताहिक बाजार के दिन या फिर राजनीतिक दलों की जन सभाओं में दिखाई देती है। हरिद्वार जिले में गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी ने जंगल की जमीन पर कब्जे किए हुए है। गंगा के चंडी घाट पर दिव्य आश्रम के बराबर में बनी झोपड़ बस्ती में कौन लोग अवैध कब्जे किए हुए हैं? हरकी पौड़ी तक मुख मार्ग से लगे खाली क्षेत्र में किनकी झोपड़ियां है? जानकारी मिली है कि हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थल जिले के हालात जनसंख्या असंतुलन की दृष्टि से सबसे ज्यादा खराब हैं। यही वजह है कि यहां राजनीतिक सामाजिक परिदृश्य बदल चुका है।

जल विद्युत परियोजना भी कारण
उत्तराखंड में बन रहे पावर प्रोजेक्ट्स भी मुस्लिम आबादी के विस्तार का एक बड़ा कारण है। यहां ज्यादातर काम करने वाले मजदूर मुस्लिम हैं और धीरे- धीरे परिवार के साथ आकर बस गए हैं। टिहरी डैम के पास मुस्लिम समुदाय द्वारा मस्जिद बनाए जाने का मामला सुर्खियों में आया था। पावर प्रोजेक्ट के मजदूर धीरे-धीरे अपने सहयोगियों को कारपेंटर, प्लंबर, राज मिस्त्री, फल-सब्जी, बारबर आदि के कारोबार के लिए बुला लेते हैं और यहां सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से काबिज होते जा रहे हैं।

नारियल, फल-सब्जी, छोटे कारोबारी
उत्तराखंड के शहरों में योजनाबद्ध तरीके से नारियल का तख्त लगाकर उसके पीछे झोपड़ी बनाकर सरकारी जमीन पर काबिज हो रहे हैं। फल-सब्जी के ठेले लगाने वाले नगर के फुटपाथ रेखा पर काबिज हो चुके हैं। देखने में आया है कि इनका सामान रात में भी वहीं बंधा रहता है और काबिज व्यक्ति आसपास कहीं सोया हुआ रहता है। बारबर, प्लंबर, मिस्त्री और मोबाइल शॉप पर काम करने वाले मुस्लिमों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होती जा रही है। ड्राइवर, गाइड, क्लीनर और अन्य छोटे काम करने वाले मुस्लिमों की संख्या भी एकाएक बढ़ती जा रही है।

मोबाइल शॉपकीपर
उत्तराखंड में बीच शहरों में मोबाइल रिपेयरिंग और एसेसरीज की दुकानें कुकरमुत्ते की तरह उग आई हैं, महंगे रेंट पर ये दुकानें मुस्लिम समुदाय द्वारा ली जा रही है। इतनी महंगी शॉप्स का किराया कैसे निकल रहा है ये बड़ा सवाल है।

बगीचों-उद्यानों में कब्जे
उत्तराखंड में ज्यादातर बगीचों के मालिक कभी हिंदू समुदाय से हुआ करते थे जो अब धीरे-धीरे मुस्लिम समुदाय के हो चुके हैं, जहां लीची, आम के बगीचे हैं वो फसल साझे में मुस्लिमों के होते जा रहे हैं। यही हाल तराई के बड़े- बड़े धान, गेहूं के खेतों का हो गया है। बटाईदार मुस्लिम साझेदार हैं और वो अपने मुस्लिम मजदूरों के साथ वहीं काबिज हैं। ऐसे कई असंगठित क्षेत्र हैं, जहां मुस्लिम समुदाय अपनी आबादी का विस्तार करती जा रही है। इसी क्रम में मजार जिहाद, लव जिहाद, सरकारी जमीनों में खास कर फॉरेस्ट लैंड, शत्रु संपत्ति, नजूल संपत्ति पर अवैध कब्जे करने के मामले सामने आए हैं।

धामी सरकार भी हुई सजग
उत्तराखंड राज्य में जनसंख्या असंतुलन का मुद्दा धीरे-धीरे व्यापक रूप ले रहा है, जिसकी वजह से उत्तराखंड की धामी सरकार ने भू-कानून में बदलाव के लिए समिति बनाई है, सरकार ने पलायन आयोग को भी सक्रिय किया है, क्योंकि पहाड़ के मूल लोग अपने घर छोड़ रहे हैं और मुस्लिम वहां जाकर बस रहे हैं।

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