ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ नाम से एक प्रोपोगेंडा डॉक्यूमेंट्री बनाई है। देश के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और पूर्व नौकरशाहों ने इस डॉक्यूमेंट्री की निंदा करते हुए भ्रामक और तथ्यात्मक त्रुटियों से भरा हुआ करार दिया है।
बीबीसी के इस प्रोपोगेंडा डॉक्यूमेंट्री पर भारत के 300 से अधिक सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, सेवानिवृत्त नौकरशाहों और सेवानिवृत्त सशस्त्र बलों के अधिकारियों ने पत्र लिखकर आपत्ति जताई है। इनमें 33 सेवानिवृत्त न्यायाधीश, 133 सेवानिवृत्त नौकरशाह और 156 सेवानिवृत्त सशस्त्र बल अधिकारी हैं। पत्र पर राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह और पूर्व रक्षा सचिव योगेंद्र नारायण सहित अन्य ने हस्ताक्षर किए हैं। पत्र में कहा गया है कि डॉक्यूमेंट्री तथ्यात्मक त्रुटियों से भरी हुई है।
इन अधिकारियों ने अपने बयान में कहा कि बीबीसी ने इस डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी को बदनाम करने की साजिश की है। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री प्रोपेगेंडा का हिस्सा है। यह सीरीज केवल भ्रामक रिपोर्टिंग पर आधारित है। बीबीसी ने ऐसा करके भारत सहित हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपमानित करने का कार्य किया है।
पत्र में कहा गया है कि डॉक्यूमेंट्री गलत तरीके से सरकार की कुछ नीतियों को मुस्लिम विरोधी करार देती है। जहां तक स्पष्ट तथ्यात्मक त्रुटियों की बात है। इसमें नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर बीबीसी ‘मुस्लिमों के प्रति अनुचित’ कहता है। वास्तव में, यह पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे अल्पसंख्यकों (हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, बौद्धों और जैनियों) की मदद करने वाला कानून है। इसका भारतीय मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है। अधिनियम के पाठ में मुसलमानों के बारे में कोई शब्द नहीं है। क्या बीबीसी ने यह झूठा आरोप लगाने से पहले सीएए का पूरा पाठ पढ़ा है?
अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बारे में पत्र में कहा गया है, “अनुच्छेद 370 भारत के संविधान का एक अस्थायी प्रावधान था, जिसका मतलब कभी भी स्थायी नहीं था। इस प्रकार, इसे हटाना किसी भी तरह से संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन नहीं था। आज अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता है क्योंकि जम्मू और कश्मीर और लद्दाख की केंद्र शासित सरकारें उन नीतियों को लागू करती हैं जो क्षेत्र के सभी लोगों को उनके धर्म के बावजूद लाभान्वित करती हैं।
उल्लेखनीय है कि डॉक्यू्मेंट्री पर बढ़ते विवाद के बाद बीबीसी ने अपने यूट्यूब से इसे हटा दिया गया है। भारत सरकार ने इसे यूट्यूब और ट्वीटर से हटाने का आदेश दिया है।
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