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होम भारत उत्तराखंड

उत्तराखंड : रामनगर, कॉर्बेट, कालाढूंगी फॉरेस्ट में कुकुरमुत्ते की तरह कैसे उग गई मजारें ?

पुलिस वन विभाग की गोपनीय रिपोर्ट शासन को मिली, क्या सोची समझी साजिश के तहत कॉर्बेट सिटी "रामनगर" को मजार जिहाद से घेरा गया ?

उत्तराखंड ब्यूरो by उत्तराखंड ब्यूरो
Jan 21, 2023, 06:42 pm IST
in उत्तराखंड
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उत्तराखंड में “मजार जिहाद ” को लेकर सरकार द्वारा करवाए गए एक सर्वे में नैनीताल जिले के रामनगर क्या, कालाढूंगी,कॉर्बेट पार्क के जंगलों में दर्जनों की संख्या में अवैध मजारों के बन जाने का खुलासा हुआ है। शासन को मिली एक रिपोर्ट में कोसी नदी किनारे बसे  “राम” नाम के नगर और जंगलों को किस तेजी से मजारों ने फॉरेस्ट की जमीन पर अपने  अवैध कब्जे किए इस बात का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है।

उल्लेखनीय है राम नगर का नाम राम की नगरी के रूप में जाना जाता रहा है और यही से कुछ ही दूरी पर सीतावनी  भी है, कहा जाता है कि जब भगवान राम से परित्याग होने के पश्चात सीता महा ऋषि वाल्मीकि के साथ वन गई थी तब वे इसी वन में रही थी।रामनगर ढिकुली कत्यूरी वंश की कभी राजधानी भी रहा, आर्यसमाज के संस्थापक महाऋषि दयानंद सरस्वती के चरण भी यहां पड़े।

कॉर्बेट सिटी रामनगर मुख्य रूप से गढ़वाल और कुमायूं की व्यापारिक मंडी है और आसपास के गांव लीची आम के फलों के बगीचों के लिए  जाने जाते रहे है। संपन्न क्षेत्र होने की वजह से यहां के बगीचों के फलों को तोड़ने और उन्हें बाजार तक लेजाने के कारोबार और कोसी नदी में खनन मजदूरी के लिए  यूपी के मैदानी क्षेत्रों के मुस्लिम यहां आए और धीरे धीरे यही कब्जे कर बसते चले गए। लकड़ी और जड़ी बूटी की मंडी के रूप में विकसित राम की नगरी अब पूरी तरह से सामाजिक  आर्थिक  और धार्मिक रूप से मुस्लिम आबादी वाली हो चुकी है। मुस्लिम आबादी ने अपने पैर जमाने के लिए यहां मस्जिदे तो बनाई लेकिन यहां बड़ी संख्या में अवैध रूप से मजारे भी बना कर अपने कब्जे कर लिए, इस बारे में एक खुफिया रिपोर्ट शासन को भेजी गई है जिसमे लिखा गया है कि शहर राम नगर और आसपास जनसंख्या असंतुलन का खेल हो चुका है। राम नगर और आसपास मुस्लिम आबादी जो राज्य बनने के दौरान पन्द्रह हजार भी नही थी बढ़ कर पचपन हजार से ज्यादा हो चुकी है।

नैनीताल जिले रामनगर और कालाढूंगी का वन क्षेत्र में अतिक्रमण कर जिस तरह से मजारे बनाई गई है वो मजार जिहाद का हिस्सा बताई जा रही है।

पुलिस खुफिया विभाग ने शासन को भेजी अपनी रिपोर्ट में वन विभाग की कार्य प्रणाली पर  ये सवाल भी उठाए है कि कैसे विभागीय लापरवाही की वजह से उत्तराखंड से बाहरी प्रदेशों के लोगो ने जंगलों में आकर वन भूमि पर कब्जे कर मजारे बना ली और बकायदा पक्के निर्माण कर लिए, इस बारे में पुलिस के द्वारा कॉर्बेट पार्क के भीतर बिजरानी जोन में पानियासेल मजार का उदाहरण दिया  कि जिस टाइगर रिजर्व के जंगल में आम आदमी के जाने पर मनाही है वहां कॉर्बेट प्रशासन बाहरी लोगो को जाने देता रहा और यहां उर्स भी करवाता रहा,कॉर्बेट प्रशासन ने यहां बिजली भी दे रखी है , हालांकि पिछले दो सालों से होली के दिन लगने वाले उर्स को कॉर्बेट प्रशासन ने कोविड की वजह से अनुमति नहीं दी। कॉर्बेट के जंगल में ढेला रेंज में स्वाल्दे में सड़क किनारे कालू सैय्यद बाबा की मजार पिछले कुछ सालो में कैसे बन गई?  जबकि कालू  सैय्यद की दर्जनों मजारे पहले से इन आरोपों के घेरे में है कि एक पीर को कितनी जगह दफनाया गया होगा?

वन विभाग की जमीन पर राम नगरब्से पिरुमदारा मार्ग पर हम्मन शाह बाबा की मजार  का भी जिक्र शासन को भेजी रिपोर्ट में किया गया है।इसी तरह से तुमड़िया खत्ता मालधन में वन भूमि पर कब्जा कर बाबा भूरे शाह के नाम से एक नही तीन तीन मजारे एक साथ बना दी गई है। मालधन क्षेत्र में शिवनाथपुर में एक साथ कई मजारे फॉरेस्ट लैंड में बनाई गई है जोकि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद अस्तित्व में आई इनमे तरबेज बाबा की मजार, जलाल शाह बाबा की मजार में तो चौदह मजारे एक साथ बना दी गई और फॉरेस्ट की करीब तीस एकड़ जमीन पर अवैध कब्जे कर पक्के निर्माण कर लिए गए। यहीं पास में  बसई में शाहमदार  मजार को लेकर हिंदू और मुस्लिम समुदाय में विवाद भी हो चुका है।

हल्दुआ के जंगल की जमीन में नत्थन पीर बाबा की मजार के बराबर में अब कब्रस्तान भी बन गया है और वन विभाग सोता रहा।

रामनगर से लगे कालाढूंगी फॉरेस्ट डिविजन में अवैध मजारों की बाढ़  आ गई है मजार जिहाद के सबूत यहां आसानी से देखे जा सकते है। नवाढ गुज्जर खत्ता में कुछ समय पहले दरगाह शरीफ सेख बाबा नाम से मजार बना दी गई और वन गुज्जर समुदाय ने इसकी शिकायत वन विभाग से भी की थी उनका कहना है कि यहां संदिग्ध लोगो का आना जाना है, इसके बावजूद वन विभाग खामोशी की चादर ओढ़ कर सोया रहा।

कालाढूंगी बाजपुर मार्ग पर फॉरेस्ट की जमीन पर सबसे ज्यादा कब्जे कर  अवैध  मजारे बनाई गई जोकि पिछले दस सालो में बनी इनमे पडलिया खत्ते में सैय्यद निराले मियां की मजार ने एक एकड़ से ज्यादा जमीन पर कब्जा कर पक्का निर्माण कर लिया है और यहां दर्जनों लोगो ने रहना  शुरू कर दिया है।

गडप्पू बैरियर से तीन किमी आगे  और करीब आधा किमी जंगल में दादा सरकार बाया बानी अखदून शाह की मजार हाल ही में दो एकड़ में अवैध कब्जा कर बन गई और यहां बड़े बड़े कमरे बन गए यहां जंगल के बेशकीमती सागौन के बड़े बड़े पेड़ो को चूना डाल सूखा कर काट डाला गया, यहां वन भूमि पर कुआं खोद दिया गया और सोलर पम्प भी लगा दिया यहां शैतान को बांधने का ,झाडफूंक अंध विश्वास का धंधा चल रहा है  और वन विभाग सोया हुआ है।

कालू सैय्यद  बाबा की एक और मजार गडप्पू वन विभाग की चौकी से आधा किमी भीतर  फॉरेस्ट में बना दी गई है। दिलचस्प बात यही है कि आखिर कालू सैय्यद पीर बाबा तो एक ही स्थान पर दफनाए गए होंगे फिर उनकी एक दर्जन से ज्यादा मजारे कैसे बनती चली गई?

ग्राम धमोला से लगे जंगल में एक मजार बनाए जाने का षड्यंत्र लगातार चल रहा है यूपी से मुस्लिम लोग यहां बार बार आकर पत्थर एकत्र करके टीला बनाते है और चादर रख जाते है जिसे हिंदू संगठन के लोग इसे हटा देते है पिछले दो सालों से ये जद्दोजेहद चल रही है।

कालाढूंगी में चार एकड़ जमीन पर कब्जा कर एक साथ सात मजारे बना दी गई है और यहां बरेली भोजीपुरा के खिदमत अली शाह नाम का शख्स आकर अपना झाड़ फूंक का धंधा चला रहा है।

ढेला क्षेत्र में मकबूल शाह की मजार, गांव धनपुर में अली मुद्दीन शाह की मजार भी उत्तराखंड राज्य के बनने के बाद जंगल की जमीन पर बनी और धीरे धीरे इनका कब्जा व्यापक होता गया। रिंगोड़ा में भूरे शाह अली की मजार भी वन भूमि में बनी हुई है।

रामनगर के धार्मिक स्वरूप या कहे जनसंख्या असंतुलन की बात करे तो शहर कोतवाली के कुछ ही दूरी पर हजरत अब्दुल्ला शाह की मजार जो कि वक्फ बोर्ड में एक मात्र पंजीकृत मजार है, इसके अलावा शहर में मासूम मियां की मजार है,एक मजार दादा मियां इमली वाले पचेजतन की गुल्लर घटी में है ,जानकारी में आया है कि यहां रोडवेज को आबंटित भूमि है ,मजार प्रबंधकों और रोडवेज प्रशासन के बीच यहां की जमीन के स्वामित्व को लेकर न्यायालय में विवाद भी चल रहा है।लखनपुर क्षेत्र में शेर अली शाह की मजार है।

पुलिस की सर्वे रिपोर्ट में खास बात ये भी दर्ज की गई है कि सभी मजारे या तो सरकारी जमीनों, नजूल भूमि या फिर फॉरेस्ट की भूमि पर अवैध रूप से कब्जे कर के बनाई गई है।

कोसी नदी में खनन करने वाले मजदूर नदी किनारे अवैध रूप से बस्ती बना कर बसे हुए है।इन बस्तियों के भीतर भी मजार जिहाद के सबूत देखे जा सकते है,गरीब भोले भाले मजदूरों को इन मजारों में झाड़ फूंक कर पैसा बटोरने वाले तथाकथित बाबा यहां चोगे पहने बैठे मिल जायेंगे।

पुलिस की खुफिया रिपोर्ट ये कहती है कि वन विभाग की जमीन पर एक सोची समझी साजिश के तहत ऐसा हुआ  प्रतीत होता है, रिपोर्ट में ऐसा भी लिखा गया है कि इन मजारों में संदिग्ध लोगो का आना जाना भी लगा रहता है।

ऐसे शुरू होता है मजार जिहाद

पुलिस और वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार अवैध मजारे कोई एक दिन में नही बन जाती इसके लिए बकायदा पहले रेकी की जाती है, जंगल में ऐसी सुनसान जगह देखी जाती है जोकि मुख्य मार्ग से नही दिखती हो, पहले मुख्य सड़क के पेड़ो पर हरे कपड़े बांध दिए जाते है ,फिर रास्ते में पत्थरों को रख कर चूना लगा कर रास्ता बना दिया जाता है। जहां मजार बनानी होती है वहां पहले मिट्टी का टीला बनाया जाता उस पर पत्थर आदि रख कर चादर डाल कर अगरबत्ती , दीया जलाया जाता है, जब इस पर कोई विरोध नहीं करता तो पहले एक झोपड़ी  डाल दी जाती है एक एक दो लोग आकर रहने लगते है, उत्तराखंड में अवैध मजारे बनाने के लिए बरेलवी समुदाय के लोग आते है,जब झोपड़ी नही हटती तो धीरे धीरे मजार का चबूतरा बनता है और फिर झोपड़ी पक्की इमारत में तब्दील हो जाती है। ये कब्जेदार बड़ी चालाकी से आसपास के हरे पेड़ों की जड़ों में चूने का पानी डालते रहते है ताकि पेड़ सूख जाए।

नैनीताल जिले के रामनगर कालाढूंगी कॉर्बेट के जंगलों में इतनी मजारे बन गई है जिन्हे देख कर इस बात की हैरानी होती कि इतने पीर बाबा यहां आकर कैसे दफन हो गए ? क्या इन मजारों के भीतर कोई फकीर या पीर है भी की नही? क्या ये राम के नाम की नगरी को मजारों की नगरी बनाए का कोई षड्यंत्र तो नही था?

ये ही कहीं मजार जिहाद तो नही?

ये बात इसलिए भी सही साबित होती है कि वन विभाग और पुलिस विभाग की आंखे तब खुली जब धामी सरकार ने ” पाञ्चजन्य” में छपी खबरों के बाद जंगलों में अवैध मजारों का सर्वे करवाया। वन विभाग और पुलिस विभाग के उच्च अधिकारी अब इस बात की भी जांच कर रहे है कि आखिर किस अधिकारी के कार्यकाल में ये मजारे बनती चली गई, उल्लेखनीय है कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध भवन के निर्माण को लेकर कई आईएफएस और अधिकारियों को सजा भुगतनी पड़ी और अब जब करीब तेरह सौ अवैध मजारों का जिक्र सामने आया तो क्या इस पर उत्तराखंड सरकार विभागीय जांच नही बिठाएगी? विश्वस्त सूत्र बताते है कि इन मजारों को संरक्षण देने में कथित रूप देवएक आईएफएस की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है। बरहाल  रामनगर, कालाढूंगी कॉर्बेट के जंगलों में मजार जिहाद का मामला सुर्खियों में है, देखना अब ये है कि वन विभाग इस और क्या कदम उठाता है।

Topics: illegal tombs on forest department landIllegal tomb in Uttarakhand Newstomb jihadउत्तराखंड समाचारUttarakhandमजार जिहादउत्तराखंड में अवैध मजारेंवन विभाग की जमीन पर अवैध मजार
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