ज्योतिर्लिंग बाबा केदार नाथ ने शरद काल में बर्फ की चादर ओढ़ ली है, हिमपात के बाद करीब पांच से छह फुट तक बर्फ बारी से केदार घाटी के खूबसूरत नजारे दिखाई दे रहे है।
केदारनाथ धाम के द्वार शरदकाल में दीपावली के आसपास बंद हो जाते है और केदारघाटी में कुछ साधु और आईटीबीपी के सुरक्षा कर्मियों के अलावा और कोई नही रह सकता। पिछले तीन दिन से हो रहे हल्के हिमपात के बाद आज भारी बर्फबारी हुई जिसके बाद ऐसा लगा की पूरी केदारघाटी में सफेद चादर सी बिछ गई हो।
बाबा केदार ने मानो ये सफेद चादर खुद ओढ़ ली हो। मंदिर की छत और प्रांगण में बर्फ ही बर्फ नजर आ रही है। नदी जी भी बर्फ में ढक गए है। मंदिर कॉरिडोर में करीब पांच से छह फीट तक बर्फ जम चुकी है, हिमालय से आ रही पावन मन्दाकनी का जल भी जम चुका है।
कहा जाता है कि केदारनाथ, पांडवकाल से भी पुराना मंदिर है और ये हिमकालखंड में बरसो तक बर्फ में भी दबा रहा, स्वाभाविक रूप से ये कथन आज के समय में सत्य इस लिए लगती है कि हजारों साल पहले केदारनाथ मंदिर तक आने जाने के इतने साधन नही थे ,केदारनाथ, बद्रीनाथ यमनोत्री गंगोत्री चारो धाम ग्लेशियर के मुहाने पर बने हुए है। इतिहास में यदि देखें तो कभी धामों की घाटियां बर्फ से ढकी रहती थी और ग्रीष्म काल में जब द्वार खुलते है तो बर्फ वहां आज भी मिलती है। जब हिमकाल खंड का समय रहा होगा तो केदारघाटी के बर्फ में केदारनाथ धाम सैकड़ों साल तक दबा रहा होगा।
केदारनाथ मंदिर की विशेषता कहिए या बाबा केदारनाथ का चमत्कार इसकी वास्तुकला जिसे कत्यूरी शैली कहा जाता है, हिमकाल खंड में दबे रहने और हर साल हिमपात होने के बावजूद उसी अवस्था में खड़ा हुआ है। 2013 में आई भीषण आपदा ने केदारघाटी में सब कुछ बहा दिया लेकिन मंदिर को कुछ नही हुआ। कहा जाता है कि भोले शंकर यहां बैल रूप में विद्यमान है जो स्वयंभू शिवलिंग है वो बैल का ऊपरी पीठ का हिस्सा है ,बैल का अगला हिस्सा काठमांडू में श्री पशुपति नाथ के रूप में विद्यमान है।
बरहाल केदारघाटी में बाबा केदारनाथ सफेद चादर ओढ़ कर मानो ध्यान मग्न है ऐसा नजारा यहां महसूस किया जा रहा है।
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