उत्तराखंड में नैनीताल के समीप भीमताल मार्ग पर एक अनूठा “लोक संस्कृति संग्रहालय” है, जिसकी स्थापना पद्मश्री डॉ यशोधर मठपाल ने की है। गांधीवादी व्यक्तित्व सादा जीवन उच्च विचारो के धनी डॉ. मठपाल ने पाषाण गुफा चित्रों का दुनियाभर के देशों में अध्ययन किया और अपनी उपलब्धियों को उन्होंने अपने निवास के पास ही एक संग्रहालय में संजोकर रख दिया है, ताकि कला, चित्रकारी और संस्कृति में रुचि रखने वाले लोग इसको देख सकें।
6 जून 1939 को अल्मोड़ा जिले के नौला ग्राम में जन्मे डॉ. यशीधर मठपाल ने मनीला और रानीखेत में प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर, लखनऊ से ललित कला में पांच वर्षीय डिप्लोमा कर स्वर्ण पदक हासिल किया। उसके बाद आगरा में पढ़ाई की। पूना से पुरात्व में पीएचडी हासिल की। उसके बाद डॉ. मठपाल ने दुनिया के अनेक देशों में गुफाओं के पाषाण युग कालीन चित्रों के अध्ययन करके अपने दो सौ शोध पत्र तैयार किए, जिन्हें दुनिया भर में मान्यता मिली।
डॉ मठपाल खुद भी एक मंझे हुए चित्रकार थे वे अध्ययन के साथ-साथ उनके चित्र भी हू-ब-हू बना लिया करते रहे। डॉ मठपाल का मानना है कि पाषाण युग में आदि मानव द्वारा पत्थरों पर उकेरे गए चित्रों को संभाल कर रखने का यही एक मात्र उपाय है। उनके इस दावे को 1986 में इंग्लैंड में हुए विश्व पुरातत्व सम्मेलन में भी मान्यता मिली। ऋषिमुनि जैसे जीवन व्यतीत करने वाले डॉ यशोधर मठपाल ने 1973 मध्यप्रदेश में संग्रहालय स्थापित किया और गुफा चित्रों के साथ-साथ लोक संस्कृति से जुड़ी अनूठे रहस्यों को भी समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया। उनके इस प्रयास को यूनेस्को द्वारा भी मान्यता प्रदान की गई।
डॉ मठपाल ने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप आदि देशों की पौराणिक गुफाओं में सालों रहकर एक-एक चित्र पर शोध किया और उनकी वास्तविक आयु और कला के बारे में दुनियाभर के पुरातत्व विशेषज्ञों का मार्गदर्शन किया। उनका महान व्यक्तित्व इस बात से परिभाषित किया जा सकता है कि इटली में रॉक आर्ट ऑर्गनाईजेशन के विश्व सम्मेलन का फीता काट कर शुभारंभ किया। देश-दुनिया में तीस से ज्यादा शहरों में आदि मानव के चित्र, पाषाण युग के पत्थर, जीवाश्म, आदि वस्तुओं की प्रदर्शनी लगा चुके डॉ मठपाल ने उत्तराखंड के भीमताल में अपना घर बसाया और यही 1983 में एक अनूठे लोक संस्कृति संग्रहालय की स्थापना की।
कैसा है लोक संस्कृति संग्रहालय :
भीमताल नैनीताल मार्ग पर स्थापित लोक संस्कृति संग्रहालय में इस पृथ्वी के करोड़ों साल पुराने जीवाश्म, पाषाण युग के पत्थर, मध्यकालीन युग में इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं, उपकरण, बर्तन आदि रखे गए हैं, जो समय- समय पर डॉ यशोधर मठपाल को अपने व्यक्तिगत शोध अध्ययन के दौरान मिलते रहे। उनके द्वारा बनाए गए गुफा चित्रों की पेंटिंग्स, देश की पौराणिक संस्कृति से जुड़े चित्र यहां संजोकर रखे गए हैं। इस संग्रहालय को स्थापित करने में भी डॉ मठपाल को पुरातत्व विभाग से लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी। बाद में उत्तराखंड सरकार ने उनके इस निजी संग्रहालय को मान्यता प्रदान की। आज भी कोई इस अनूठे संग्रहालय को देखने जाता है और यदि वो घर पर है तो खुद आकर एक गाइड की तरह सामान्य भाव से हर चित्र हर वस्तु की जानकारी देते हैं। उनके पुत्र सुरेश मठपाल भी इस संग्रहालय की देख रेख करते हैं। यहां उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों का संकलन भी मिलता है।
जीवन इस धरा को समर्पित है : डॉ यशोधर मठपाल
डॉ यशोधर मठपाल कहते हैं कि मेरा शोध मेरी जानकारी नई पीढ़ी को मिलती रहे, इसलिए मैंने सब कुछ इस लोक संस्कृति संग्रहालय में संरक्षित कर दिया है। ये शोध मैंने तब किए जब शोधार्थी गुफाओं में जाने से कतराते थे डरते थे, जबकि मेरे भीतर हमेशा इस बात को लेकर उत्सुकता जिज्ञासा रहती थी कि इसके भीतर क्या है? हमारे पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि इंसान सबसे पहले गुफाओं में ही रहता था यानी ये उसका प्राकृतिक वास था आज भी हिमालय की गुफाओं में तप करने वाले ऋषियों का उल्लेख मिलता है। मैने दुनियाभर की गुफाओं का इसीलिए अध्ययन किया ताकि मानव सभ्यता जो कई काल खंडों में विकसित हुई उसको प्रमाणित किया जा सके।
अयोध्या में किया था शोध
डॉ यशोधर मठपाल बताते हैं कि अयोध्या में खुदाई के दौरान जो वस्तुएं मिलीं उनका अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों के दल में वे भी शामिल थे। वे इस बात से बेहद खुश हैं कि अयोध्या में प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बन रहा है।
किसी के घर पुरानी पांडुलिपि या कुछ भी हो संग्रहालय में दे आए
डॉ यशोधर मठपाल वृद्ध अवस्था में भी सक्रिय है वे अपने यहां आने वाले लोगों से ये अपील करते हैं कि उनके घर में कोई पुरानी पांडुलिपि, ग्रंथ या कोई बर्तन आदि कुछ भी वस्तु है जो काम नहीं आ रही, उसे लोक संस्कृति संग्रहालय को समर्पित कर जाए, जो जन मानस के लिए अवलोकनार्थ हो जाएगा।
डॉ यशोधर मठपाल और सम्मान
2006 में राष्ट्रपति द्वारा चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
2012 में उन्होंने नई दिल्ली में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा आयोजित “रॉक कला पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन” में भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा सम्मान दिया गया। उन्हें राष्ट्रीय कला श्री सम्मान और उज्जैन का प्रतिष्ठित कालीदास सम्मान भी प्रदान किया गया है।
रचनाएं-
यशोधर मठपाल (1984)। भीमबेटका, मध्य भारत की प्रागैतिहासिक रॉक पेंटिंग। अभिनव प्रकाशन।
जियाकोमो कामुरी; एंजेलो फोसाती; यशोधर मठपाल (1993)। भारत और यूरोप की रॉक कला में हिरण। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र। आईएसबीएन 978-81-85503-02-8.
यशोधर मठपाल (1995)। कुमाऊं हिमालय में रॉक आर्ट। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र। आईएसबीएन 978-81-7305-057-2.
यशोधर मठपाल। समहित। श्री अल्मोड़ा बुक डिपो। आईएसबीएन 978-81-85865-42-3.
यशोधर मठपाल (1998)। केरल में रॉक कला। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र। आईएसबीएन 978-81-7305-130-2.
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