‘पाञ्चजन्य’ अपनी यात्रा के 75वर्ष पूर्ण कर मकर संक्रांति के दिन आज अपनी ‘हीरक जयंती’ मना रहा है। कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली के होटल अशोक में किया जा रहा है, जिसमें देशभर के कई दिग्गज शामिल हुए हैं। इस दौरान प्रख्यात शिक्षाविद् मुकुल कानिटकर ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था और रिसर्च पर कई तथ्यों को साझा किया। उन्होंने ये भी बताया कि किसी समय दुनिया की आर्थिक व्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी दो तिहाई से अधिक थी।
मुकुल कानिटकर ने कहा कि कर्म वही है जो बंधन में न बांधे और विद्या वही है जो मुक्त करे। भारत अपनी स्वाधीनता का अपना अमृत महोत्सव मना रहा है। पाञ्चजन्य भी शंखनाद का अमृत महोत्सव मना रहा है। मुकुल कानिटकर ने कहा कि 75 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी अपना स्वयं का संविधान प्रदान करने के बाद भी, स्व के अधीन होने के बाद भी आज हम जब अपने चारों तरफ देखते हैं तो क्या हम अपनी व्यवस्थाओं में भारत को देख पाते हैं। भारत तेजी से प्रगति कर रहा है हो सकता है कि हम नंबर एक पर पहुंच जाएंगे। लेकिन इस पर विचार किया क्या कि ऐसी कौन सी व्यवस्था थी कि विश्व की अर्थव्यवस्था में भारत की भागीदारी दो तिहाई रही, 15वीं शताब्दी तक। क्या स्वतंत्र होने के बाद इस पर विचार नहीं करना चाहिए। इतिहासकार विल डोरा को कहना पड़ा कि भारत संसाधन का वितरण करने वाला देश रहा। जो हिस्सेदारी दो तिहाई थी वह अंग्रेजों के समय यह 23 प्रतिशत पर आ गई।
1835 तक साक्षरता का स्तर 100 प्रतिशत था, ऐसा अंग्रेजों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है। सभी वर्ग के लोगों को शिक्षा मिलती थी। 1947 में शिक्षा का स्तर 18 प्रतिशत और दुनिया में जीडीपी की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत रह गई। मैगस्थनीज ने 2300 साल पहला लिखा कि पाटलिपुत्र के पास दो किसान लड़ते हुए मिले वह भी इस विषय पर कि ये सोने का घड़ा मेरा नहीं है।
मुकुल कानिटकर ने कहा कि शिक्षा का तंत्र जीवन बनाती है। समस्त तंत्रों की जड़ है। न जाने कितने आक्रांता आए, उसके बाद भी इस देश के मर्म को नहीं तोड़ पाए। अंग्रेजों के समय शिक्षा का सरकारीकरण हो गया। सरकार की अनुमति से एक शब्द भी नहीं पढ़ा सकते थे। 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू हुई है, पूरा परिणाम दिखने में 2030 तक लग सकते हैं। 1835 का शीर्षासन ठीक करने का काम राष्ट्रीय शिक्षा नीति कर रही है। क्रियान्वयन हम सभी को करना पड़ेगा। समाज के प्रत्येक वर्ग को इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सहयोग देने की जरूरत है। परिवर्तन की नींव है यह नीति। इसके पुष्पन पल्लवन के लिए हमें लगना पड़ेगा, पढ़ना पड़ेगा। अमेरिका सामरिक शक्ति के साथ ही ज्ञानशक्ति के दम पर राज कर रहा है। विश्वविद्यालयों में होने वाला रिसर्च राष्ट्रीय उत्थान पर होना चाहिेए।
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